2017-09-27 17:15:00

हमारी आशा को कोई छीन नहीं सकता


वाटिकन सिटी, बुधवार 27 सितम्बर 2017, (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को आशा पर अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

आज की धर्मशिक्षा में मैं आप लोगों के साथ आशा के विरोधी तत्व पर चिंतन करना चाहूँगा क्योंकि आशा जो दुनिया की अच्छाइयों में से एक है इसके कई शत्रु हैं। इस संदर्भ में मैं प्रचीन यूनानी मिथक पैंनडोरा की कथा को स्मरण करता हूँ, “पात्र का मुख खोलने पर विश्व के इतिहास में कई प्रकार के दुःखों का अगमन हुआ।” हम में बहुत कोई मिथक के अंतिम भाग को याद करते हैं पात्र का मुख खुलने से दुनिया में विपत्तियों के आगमन को एक छोटी-सी चीज ने प्रसारित होने से रोका। पैंनडोरा उस वस्तु को सबसे अंत में देखती है जिसे यूनानी मिथक एलपिस की संज्ञा देता है जिसका अर्थ आशा है।

यह पौराणिक कथा हमें इस बात के महत्व की ओर ध्यान आकर्षित करती है कि आशा में बने रहना मानव के लिए कितना महत्व रखता है। संत पापा ने कहा कि कहा गया है कि जब तक जीवन है तब तक आशा है लेकिन यह सत्य नहीं है। यह ठीक विपरीत है यह आशा है जो हमें जीवन में बने रहने हेतु मदद करती है, जो हमें बचाती, सुरक्षित रखती और आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करती है। यदि मानव अपने जीवन में इस आशा को विकसित नहीं किया होता, यदि वे अपने को इस गुण से पोषित नहीं करते तो वे अपने को गुफा से कभी बाहर नहीं निकालते। वे दुनिया के इतिहास में अपनी पहचान कभी नहीं बना पाते। आशा वह दिव्य शक्ति है जो मानव के हृदय में वास करती है।

संत पापा ने कहा कि एक फ्राँसीसी कवि चार्ल्स पेग्यू ने आशा के बारे में हमें एक अति सुन्दर बात कही है। वे काव्यात्मक रुप में हमारे लिए इसे पेश करते हुए कहते हैं कि ईश्वर मानव के विश्वास से उतने अचंभित नहीं होते, न ही उनकी करुणा से वरन यह आशा है जो उन्हें सचमुच आश्चर्य और एक संवेदना से सराबोर कर देता है। पेग्यू लिखते हैं, “वे गरीब बच्चे चीजों को अपने जीवन में देखते और विश्वास करते हैं कि वे कल तक अच्छी हो जायेंगी।” कवि के शब्दों में हम उन लोगों के चेहरों को देखते हैं जो इस दुनिया में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, किसान, गरीब मजदूर, प्रवासी जो अच्छे जीवन की तलाश करते, वे जो अपने जीवन की कटुता पूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अपने जीवन को इस आत्मविश्वास के साथ जीते हैं कि आने वाला दिन उनके बच्चों के लिए एक उचित और शांतिमय जीवन लायेगा।

आशा उन लोगों के हृदय में वह शक्ति है जो अपने घर-बार, अपने संगे संबंधियों और अपनी ज़मीर का परित्याग करते जिससे वे अपने प्रिय जनों को एक अच्छा जीवन प्रदान कर सकें। यह उनके हृदय की भी एक ताकत है जो अन्यों का स्वागत करते हैं, जो दूसरों से मिलने, उन्हें जानने और उनसे वार्ता करने की इच्छा रखते हैं। आशा वह ऊर्जा है जो हमारी “जीवन यात्रा” को एक दूसरे के साथ साझा करने में मदद करती है जैसा कि सेवा अभियान हमें बतलाता है जिसकी शुरुआत हम आज कर रहें हैं। संत पापा ने कहा कि हमें अपने जीवन यात्रा में एक दूसरे का साथ देने हेतु भयभीत नहीं होना है। हमें आशा को एक दूसरे के साथ साझा करने में भयभीत होने की जरूरत नहीं है।

आशा उनके लिए गुण नहीं है जो अपने जीवन में परिपूर्ण हैं। यही कारण है कि गरीब आशा के प्रथम वाहक हैं। दुनिया में आने हेतु ईश्वर को उनकी जरूरत है। योसेफ और मरियम, येरुसलेम के चरवाहे हमारे लिए इसके उदाहरण हैं। ख्रीस्त जयन्ती की रात को पुरी दुनिया अपने में कई रहस्यों को धारण किये सो रही थी लेकिन नम्र स्वभाव के लोग अच्छाई की क्रांति को व्यक्त करने में उन्मुख थे। वे सभी गरीब थे, कुछ लोग जीविका हेतु अपने में संघर्षरत थे लेकिन वे दुनिया में उपलब्ध सभी बातों में धनी थे जो उनके जीवन में परिवर्तन की इच्छा को पेश करती है।

संत पापा ने कहा कि कभी-कभी जीवन में सारी चीजों का होना हमारे लिए दुर्भाग्य का कारण होता है। हम एक युवक के बारे में सोचे जिसने अपने जीवन में आशा और धैर्य जैसे गुणों को नहीं सीखा है, जिसे अपने जीवन में एक भी पसीना बहाना नहीं पड़ा लेकिन बीस साल की आयु में उसे इस बात का पता चला कि दुनिया कैसे चलती है। किसी बात की कमी महसूस न करना उसके लिए सबसे बड़ी समस्या से समान लगती है। यह उसके जीवन में एक तरह से पतझड़ की अनुभूति ले कर आती है।

हृदय में किसी तरह का खालीपन न होना आशा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। यह वह जोखिम है जिसके द्वारा कोई नहीं बच सकता है एक ख्रीस्तीय भी अपने जीवन के मार्ग में इस आशा की परीक्षा के दौरा से होकर गुजरता है। प्राचीनतम समय के मठवासियों ने अपने जीवन में एक सबसे खराब शत्रु उत्साह का परित्याग किया था जो दिन की शुरूआत के साथ उनके व्यस्तम जीवन को नष्ट कर देता है। यह हमें भी परीक्षा की घड़ी में तब डाल देती है जब हम निरुत्साहित और आशाहीन हो जाते हैं। इस स्थिति में हम अपने जीवन में सुस्त और उबाऊ अनुभव करते हैं जो हमें कठिन मेहनत करने से रोकता है। यह आलस्य है जो हमारे जीवन को एक खाली लिफाफे की भांति छोड़ देता है।

ऐसी स्थिति में हमें आलस्य में बन रहने के बजाय इसके विरूद्ध कार्य करने की आवश्यकता है। संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि ईश्वर ने हमें आनंद और खुशी में बने रहने हेतु बनाया है और वे हमें उदासी की सूली पर टँगे रहने नहीं देते हैं। इसके लिए हमें चाहिए कि हम अपने हृदय को उदासी के विरुद्ध सतर्क रखें जो निश्चित रुप से हमारे लिए ईश्वर की ओर ने नहीं आता है। इस तरह जब हम अपने को एक विकट परिस्थिति विशेष कर उदासी से जूझता हुआ पाते हैं तो हम येसु की ओर उन्मुख हों। हम अपने में उस साधारण प्रार्थना को दुहराये जिसे हम सुसमाचार में पाते हैं जो कि बहुत से ख्रीस्तियों के जीवन का आधार स्तंभ बन गया है। “हे प्रभु येसु ख्रीस्त, ईश्वर के पुत्र, मुझ पापी पर दया कर।” 

संत पापा ने कहा कि हम अपने निराशा भरे क्षणों से लड़ने हेतु अकेले नहीं हैं। येसु ख्रीस्त ने हमारे लिए दुनिया की बुराइयों पर विजय पाई है जो सारी अच्छी चीजों का विरोध करता है। यदि ईश्वर हमारे साथ हैं तो हमारे जीवन से उन कृपाओं को कोई भी कभी छीन नहीं सकता जो जीवन जीने हेतु हमारे लिए जरूरी है। हमारी आशा को हमसे कोई छीन नहीं सकता है।
इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और जीवन की यात्रा  में जरुरतमंदों की सहायता का आहृवान करते हुए विश्व के विभिन्न देशों से आये सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया तथा उन पर ईश्वरीय खुशी और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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