2017-09-12 10:10:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय- स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 87


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"प्रभु ने पवित्र पर्वत पर अपना नगर बसाया है। वह याकूब के नगरों की अपेक्षा सियोन के फाटकों को अधिक प्यार करता है। ईश्वर के नगर! लोग तेरा गुणगान करते हैं।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 87 वें भजन के प्रथम दो पद। पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत विगत कुछ समय से हम स्तोत्र ग्रन्थ के भजनों की व्याख्या में संलग्न रहे हैं। इन भजनों पर मनन-चिन्तन हमारे समक्ष इस तथ्य की प्रकाशना करता है कि जीवन एक अनवरत जारी तीर्थयात्रा है और मनुष्य की इस तीर्थयात्रा में केवल ईश्वर ही उसकी ढाल, उसके रक्षक, उसके गढ़ एवं उसके शरणस्थल बनते हैं। ईश्वर हम मनुष्यों की रक्षा करते, हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करते हैं। वे सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदानों की वर्षा करते हैं। आवश्यकता है बस प्रभु में अपने विश्वास को सुदृढ़ करने की।    

स्तोत्र ग्रन्थ के 87 वें भजन पर यदि दृष्टिपात करें तो यह कोराह के पुत्रों का गीत है जो सियोन पर्वत का बखान करते हैं। श्रोताओ, बाईबिल में "सियोन" शब्द 150 बार दुहराया गया है। अनिवार्य रूप से "सियोन" शब्द का अर्थ है किलाबन्दी। वस्तुतः बाईबिल में एक "स्मारक" के रूप में सियोन का विचार किया गया है। सियोन को ईश्वर का निवास स्थान तथा दाऊद के गढ़ रूप में वर्णित किया गया है। बाईबिल धर्मग्रन्थ में "सियोन" शब्द का विस्तार इतने विशाल पैमाने पर विस्तृत है कि यह हम मनुष्यों को इसके आध्यात्मिक अर्थ तक ले जाता है।

87 वें भजन के प्रथम दो पदों के अनुसार, "सियोन" ईश्वर के शहर यानि जैरूसालेम का पर्याय है। यह वह स्थल है जिससे प्रभु ईश्वर प्यार करते हैं। "सियोन" पर्वत वही पहाड़ी है जिसपर दाऊद ने अपना गढ़ बनवाया था, यह है प्रभु का नगर जो दाऊद के वंशजों के लिये स्वयं प्रभु द्वारा सुरक्षित रखा गया था। भजनकार कहता है, "प्रभु ने पवित्र पर्वत पर अपना नगर बसाया है। वह याकूब के नगरों की अपेक्षा सियोन के फाटकों को अधिक प्यार करता है। ईश्वर के नगर! लोग तेरा गुणगान करते हैं।"

श्रोताओ, जैसा कि हमने पहले कहा स्तोत्र ग्रन्थ का 87 वाँ भजन कोराह के पुत्रों का गीत है जो इब्रानी बाईबिल के अनुसार मूसा एवं हारून के रिश्तेदार थे। "सियोन" पर्वत पर बसा जैरूसालेम ईश्वर का नगर है इसीलिये यह इस्राएल तथा ईश प्रजा की अनवरत जारी तीर्थयात्रा का लक्ष्य बन गया है। वस्तुतः, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल में "सियोन" शब्द धर्मसैद्धान्तिक, ईशशास्त्रीय एवं आध्यात्मिक अर्थों में भी प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन व्यवस्थान के इसायह के ग्रन्थ 60 अध्याय के 14 वें पद में लिखा है, "वे तुझे "प्रभु की नगरी" और "परमपावन ईश्वर का सियोन" कहकर पुकारेंगे।"

इसी प्रकार नवीन व्यवस्थान में "सियोन" को ईश्वर के आध्यात्मिक राज्य रूप में वर्णित किया गया है। इब्रनियों को प्रेषित पत्र के 12 वें अध्याय के 22 वें एवं 23 वें पदों में सन्त पौल लिखते हैं, "आप लोग सियोन पर्वत, जीवन्त ईश्वर के नगर, स्वर्गिक जैरूसालेम के पास पहुँचे जहाँ सबका न्यायकर्त्ता ईश्वर और नवीन विधान के मध्यस्थ येसु विराजमान हैं, जिनका छिड़काया हुआ रक्त हाबिल के रक्त से कहीं अधिक कल्याणकारी है।"     

इस प्रकार हम देखते हैं कि स्तोत्र ग्रन्थ के 87 वें भजन में सियोन पर्वत एवं उस पर बसे जैरूसालेम नगर को ईश्वर की पवित्र नगरी कहा गया है। कल्पना कीजिये कि जब श्रद्धालु सियोन की ऊँची पहाड़ी पर चढ़ते हुए जैरूसालेम की तीर्थयात्रा करते थे तब वे क्या देखते थे? वे केवल नगर की दीवारों, घरों, दूकानों एवं चौकों को ही नहीं देखते थे। वे हर्षोल्लास एवं जीवन से परिपूर्ण एक नगर का दीदार करते थे और ऐसा इसलिये था कि इस नगर की आधारशिला मनुष्यों ने नहीं अपितु स्वयं प्रभु ईश्वर ने रखी थी।

पवित्र पर्वत सियोन और उसपर बसी पवित्र नगरी जैरूसालेम ईश्वर की थी जिन्होंने इसे अपनी प्रजा के लिये चुना था। इसायाह के ग्रन्थ के 14 वें अध्याय के 32 वें पद में हम पढ़ते हैं, "प्रभु ने सियोन की नींव डाली है और उसमें उसकी विनम्र प्रजा सुरक्षित रहेगी।" इसीलिये भजनकार कहता है कि ईश्वर "याकूब के नगरों की अपेक्षा सियोन के फाटकों को अधिक प्यार करता है। ईश्वर के नगर! लोग तेरा गुणगान करते हैं।"

87 वें भजन में आगे लिखा है, "मिस्र और बाबुल के लोग उसके नागरिक कहलायेंगे। फिलिस्तिया, तीरूस और इथियोपिया सियोन को अपना जन्मस्थान मानेंगे। सब लोग सियोन को अपनी माता कहेंगे, क्योंकि सब वहीं उत्पन्न हुए हैं। सर्वोच्च प्रभु उसे सुदृढ़ बनाये रखता है।" प्रभु राष्टों की सूची में उनके विषय में लिखता है कि सियोन उनका जन्मस्थान है। सब के सब नृत्य करते हुए सियोन का गुणगान करते हैं।"  

श्रोताओ, इन पदों में सियोन को ईश प्रजा का जन्मस्थल बताया गया है और खास बात तो यह कि इन लोगों में मिस्र एवं बाबुल के लोग भी शामिल हैं। मिस्र जिसने ईशप्रजा को दास बनाकर कई सदियों तक प्रताड़ित किया था। वही मिस्र जिसने गुलामी से मुक्ति पाने के लिये भागते इस्रालियों पर आक्रमण किया था तथा उन्हें उजाड़ प्रदेशों से गुज़रने के लिये मजबूर किया था। साथ ही "बाबुल" का भी नाम लिया गया था जिसने 587 ईसा पूर्व नबूखेदनज़र के शासनकाल में जैरूसालेम का विनाश कर इस्राएलियों को बन्दी लिया था।

प्रश्न उठता है कि भजनकार ने इस्राएल की अन्य जातियों के साथ-साथ मिस्र और बाबुल को क्यों शामिल किया? श्रोताओ, इसका एक ही उत्तर है कि प्रभु ईश्वर दयालु हैं, उनकी दया और उनका प्यार असीम है जो सबको क्षमा देता और सबको नवजीवन जीने के लिये आमंत्रित करता है।








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