2017-09-10 15:39:00

शिष्य होने की माँग


संत पापा फ्रांसिस ने कोलंबिया की अपनी प्रेरितिक यात्रा के तीसरे दिन मेडेलिन में मिस्सा बलिदान अर्पित करते हुए अपने प्रवचन में येसु के शिष्य होने की माँग पर चिंतन प्रस्तुत किये।

उन्होंने तीन मुख्य बिन्दुओं विशेषकर कर आवश्यकता पर ध्यान, नवीनीकरण और सहभागिता पर जोर देते हुए कहा कि बागोटा में मिस्सा बलिदान के दौरान हमने येसु को अपने प्रथम शिष्यों को बुलाते हुए सुना था जो लूका रचित सुसमाचार में बराह शिष्यों के बुलावे द्वारा खत्म होता है। सुसमाचार लेखक हमें क्या संदेश देना चाहते हैंॽ येसु के कार्यों हेतु अपने को देना, उनके अनुयायियों के रूप में हमें परिशुद्ध करने की मांग करता है। संत पापा ने कहा, “ईश्वर हमसे क्या चाहते हैंॽ” येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि उनका अनुसरण करना और उनके साथ चलने के दौरान हमारी मुलाकात कोढ़ियों, अपंगों और पापियों से होती है। जीवन की ये सच्चाइयाँ एक नीति और निर्धारित नियमों से हमें ऊपर उठने की मांग करता है। यह हमें फरीसियों की मनोभावनाओं से ऊपर उठने की माँग करता है। यह हमें अपने स्वामी का तरह बनने में मदद करता है। शिष्य अपने में येसु की इस माँग के प्रति सचेत हैं। येसु के द्वारा दी जाने वाली स्वतंत्रता उस समय के शास्त्रियों द्वारा नियमों के अनुपालन की स्वतंत्रता से अगल थी क्योंकि वे कठोर नियमों के द्वारा अपने में अपंग थे। येसु नीतियों को दिखावे मात्र पूरा करने हेतु अपने जीवन को नहीं जीते वरन वे उन्हें परिपूर्णता प्रदान करते हैं। वे हम से चाहते हैं कि हम अपने जीवन में उनका अनुसरण इस रुप में करें कि ज़रूरतों की पूर्ति हो, हम अपने में नवीकृत हो तथा हम अपने को किसी भी कार्य हेतु दे सकें। इन तीन मनोभावों द्वारा हम येसु के शिष्य होने के मनोभाव को अपने में धारण करते हैं।

ज़रूरतों की पूर्ति संत पापा ने कहा कि इसका अर्थ उस सारी चीजों को खंडित करना जो हमारे लिए सहायक नहीं हैं क्योंकि येसु नियमों को मिटाने हेतु नहीं वरन उन्हें पूरा करने हेतु आये। (मत्ती.5. 17) इसका अर्थ हमारे लिए यही है कि हम उन बातों की गहराई में जायें जो जीवन को महत्व और उसे बढ़ावा देती हैं। येसु हमें इस बात की शिक्षा देते हैं कि ईश्वर के साथ हमारा जुड़ा रहना हमें उन नियमों और विधानों का अक्षर-सा पालना करना नहीं है जो जीवन को सही रुप में प्रोत्साहित और परिवर्तित नहीं करते हैं। हम उन नियमों को इस खातिर अपने जीवन में पालन नहीं कर सकते जो जीवन को बढ़ावा नहीं देते हैं, क्योंकि हमने बपतिस्मा संस्कार को ग्रहण किया है। येसु की शिष्यता हमें ईश्वर के अनुभव, उसके प्रेम से प्रभावित होने की माँग करती है। यह अपने में जड़त्व को धारण नहीं करता है बल्कि यह हमें येसु के वचनों को अपने जीवन में सुनते हुए सक्रिय और क्रियाशीलता में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। ईश वचन हमें अपने भाई-बहनों की ज़रूरतों के प्रति ठोस रुप से कार्य करने का माँग करता है।

नवीकृत होना, संत पापा ने कहा कि जिस प्रकार येसु ने फरीसियों के कठोर नियमों को झोकझोरते हुए नम्रता का रुप दिया उसी प्रकार वर्तमान परिस्थिति में कलीसिया पवित्र आत्मा से संचालित की जाती और अपने आरामदायक और आसक्ति से बाहर निकलने हेतु बुलाई जाती है। संत पापा ने कहा कि हम अपने जीवन में नवीकरण से न डरें। कलीसिया को सदैव अपने को नवीकृत करने की जरूरत है। कलीसिया अपनी सनक का नवीनीकरण नहीं करती वरन वह अपने विश्वास को सुदृढ़ और मजबूती प्रदान करते हुए उस आशा से विचलित नहीं होती जो सुसमाचार द्वारा प्राप्त हुआ है। (कलो.1. 23) यह नवीकरण हमसे त्याग और साहस की माँग करता है जिससे हम अपने को उत्तम न माने वरन ईश्वर के बुलावे को सुन सकें। ख्रीस्त हमें भूखों और न्याय के प्रति प्यासों के लिए नई पहल करने को निमंत्रण देते हैं। कोलंबिया में ऐसी बहुत सारी परिस्थितियाँ हैं जहाँ शिष्यों को ख्रीस्त के जीवन को गले लगाने की आवश्यकता है विशेषकर प्रेम को अहिंसा, मेल-मिलाप और शांति के रुप में निरूपित करने की जरूरत है।

तीसरा है कार्य में हमारी सहभागिता संत पापा ने कहा कि यदि आप को लगता है कि किसी काम में आप के हाथ गंदे हो रहे हैं तो भी आप को उस कार्य में संलग्न होने की जरूरत है। दाऊद और उसके साथियों ने मंदिर में घुस कर भेंट की रोटियाँ खायीं क्योंकि वे भूखे थे और येसु के शिष्यों ने खेतों से गेहूँ ही बालियों को मसल कर खाया। उसी प्रकार हमारे प्रेरितिक कार्य आज हमसे साहस की माँग करते हैं। यह प्रेरितिक साहस की उत्पत्ति हमारे ज्ञान के कारण होती है क्योंकि हम अपने भाई-बहनों को ईश्वर के भूखे और सम्मान जनक ज़िंदगी के प्यासे पाते हैं क्योंकि वे इससे वंचित हैं। एक ख्रीस्तीय के रुप में हमें उन्हें ईश्वरीय अनुभूति देने की जरूरत है। संत पापा ने कहा कि हमें उन्हें न रोकें। “प्रवेश निषेध” के चिन्ह द्वारा हम उन्हें अपनी ख्रीस्तीयता की पहचान नहीं देते और न ही यह कहते हुए कि यह स्थान मेरा है और वह तुम्हारा। कलीसिया हमारी नहीं है यह ईश्वर की है क्योंकि वे हमारे मंदिर और जमीन के मालिक हैं जहाँ कोई भी आने तथा एक स्थान और अपनी जीविका की प्राप्ति हेतु स्वतंत्र है। संत पापा ने कहा कि हम तो केवल सेवक मात्र हैं। (कोल, 1.23) हम उन्होंने नहीं रोक सकते हैं। इसके विपरीत येसु कहते हैं जैसे कि उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम उन्हें खाने को कुछ दो।” (मती.14.16) यह एक सेवा का कार्य है। संत पीटर क्लावेर जिसका त्योहार माता कलीसिया मनाती है उन्होंने इस बात को अपने जीवन में अच्छी तरह समझा। वे उनकी सेवा हेतु “सदैव गुलामों के गुलाम” बने रहे क्योंकि उन्होंने इस बात को समझा की वे जरूरतमंद, पीड़ितों, असहाय और दुर्व्यवहार के शिकार लोगों के प्रति उदासीन नहीं बने रह सकते हैं।  

संत पापा ने कहा कि कोलंबिया की कलीसिया अधिक साहस के साथ हमें एक समर्पित जीवन हेतु निमंत्रण देती है जैसा कि सन् 2007 को धर्माध्यक्षों ने अपारेचीदा के सम्मेलन में कहा था कि शिष्य अपने जीवन में इस बात से वाकिफ हैं कि उन्हें अपनी आंखों से जीवन की कठिनाइयों को देखना है, उन्हें उसे येसु की आंख और हृदय से देखना है। शिष्यों को अपने जीवन में जोखिम उठाते हुए समर्पित रुप में कार्य करने की जरूरत है। 

संत पापा फ्राँसिस ने अपने प्रवचन के अंत में कहा कि उनकी कोलंबिया की प्रेरितिक यात्रा का मुख्य उद्देश्य विश्वासियों में सुसमाचार के प्रति विश्वास और आशा को मजबूती प्रदान करना है। उन्होंने विश्वासियों का आहृवान करते हुए कहा कि आप येसु में स्वतंत्र और दृढ़ बने रहें जिससे आप उन्हें अपने जीवन के सभी कार्यों में व्यक्त कर सकें। आप अपनी सारी शक्ति से येसु के मार्ग का चुनाव करें, आप उन्हें जाने और अपने को उनके द्वारा बुलाये जाने और शिक्षित होने दें जिससे आप उन्हें प्रसन्नता पूर्वक अपने जीवन में घोषित कर सकें।

हम कंन्डेलारिया की माता मरियम से निवेदन करें कि वे हमें येसु के शिष्यता के मार्ग में मदद करे जिससे हम उन्हें अपना जीवन समर्पित कर सकें और लोगों के बीच खुशी और ज्योति के सुसमाचार को प्रसारित करने के योग्य प्रेरित बन सकें।








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