2017-09-08 16:52:00

संत पापा ने कोलंबिया के धर्माध्यक्षों के साथ मुलाकात की


बोगोटा, शुक्रवार, 8 सितम्बर 2017 (रेई) : संत पापा फ्राँसिस ने बोगोटा स्थित कार्डिनल भवन में कोलंबिया के धर्माध्यक्षों से मुलाकात की।

संत पापा ने कहा, ″आपको शांति मिले। मृत्यु पर विजयी हुए जी उठे येसु ख्रीस्त ने इन्हीं शब्दों से अपने लोगों का अभिवादन किया था। मेरी यात्रा की शुरुआत में मैं इन्हीं शब्दों से आपका अभिवादन करता हूँ।″

संत पापा ने अपने अभिनंदन हेतु धन्यवाद देते हुए कोलंबिया के सभी धर्माध्यक्षों से मुलाकात करने की खुशी जाहिर की और कहा कि संत पेत्रुस के उतराधिकारी के रुप में मैं आप लोगों के माध्यम से कोलंबिया की कलीसिया का हृदय से आलिंगन करता हूँ। धर्माध्यक्ष के रूप में आपके प्रेरितिक कार्यों के प्रति मैं बहुत आभारी हूं, और मैं आपको नए सिरे से उदारता के साथ इसे जारी रखने हेतु आग्रह करता हूँ। मैं विशेष रुप से सेवानिवृत धर्माध्यक्षों का अभिवादन करता हूँ और आग्रह करता हूँ कि अपनी प्रार्थनाओं और विवेकपूर्ण उपस्थिति के द्वारा आप  मसीह की दुल्हन को बनाए रखने का प्रयास करें जिसके लिए आपने उदारतापूर्वक अपने आप को समर्पित किया है। मैं मसीह का प्रचार करने के लिए आया हूं, और उनके नाम पर शांति और मेल-मिलाप की यात्रा कर रहा हूं। मसीह हमारी शांति हैं! उन्होंने हमें ईश्वर और एक दूसरे के साथ मेल मिलाप कराया है।

संत पापा ने कहा, “मुझे विश्वास है कि कोलंबिया की अपनी उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं । यह देश संस्कृति और  मानवता का धनी है और प्राकृतिक संसाधनों से भरा है। यहाँ ख्रीस्तीयों के अपने विश्वास की विरासत और इसके सुसमाचार प्रचारकों की यादें विद्यमान हैं। यहाँ के विश्वासियों में मुसमाचार को जीने का आदम्य साहस है। मैं आपके भाई के रुप में जी उठे येसु ख्रीस्त की खुशी को बांटना चाहता हूँ जिसे किसी तरह का भय या कोई भी दीवार रोक नहीं सकती।″

संत पापा ने कहा कि उनके देश आने वाले वे पहले परमाध्यक्ष नहीं हैं उनके पहले दो परमाधिकारी आ चुके हैं। द्वितीय वाटिकन महासभा के तुरंत बाद धन्य पौल छठे और सन् 1986 ई. में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने लतीनी अमेरिका की कलीसिया और धर्माध्यक्षों को ख्रीस्तीय सामुदायिक जीवन जीने हेतु प्रोत्साहित किया था। उन्होंने जो दिशानिर्देश दिये थे वो उनके लिए एक बड़ी विरासत है।

प्रथम चरण के संस्कार और संरक्षक

संत पापा ने कहा, "आइये, हम पहला कदम उठाएं" यही मेरी यात्रा का विषय है। जैसा कि आप जानते हैं कि हमारे ईश्वर पहला कदम उठाने वाले ईश्वर हैं। पवित्र बाइबिल में हम पाते हैं कि ईश्वर ने अंधकार और अथाह गर्त से पृथ्वी की रचना की और सभी जीव जन्तुओं को बनाया। (उत्पत्ति, 1:2.4), आदि-मानव को पाप मुक्त करने के लिए ईश्वर ने ही पहला कदम उठाया (उत्पत्ति, 3:8-9), इब्राहीम की तम्बू में यात्री के रुप में ईश्वर ने प्रवेश किया और बुढ़ापे में दम्पति को पुत्र का वरदान दिया। (उत्पत्ति, 18:1-10)। ईश्वर ने इस्राइलियों को अपने लिए चुना उनका मार्गदर्शन किया और जब समय पूरा हुआ तो अपनी चुनी हुई प्रजा के बीच उन्होंने अपने आप को प्रकट किया। उन्होंने अपने बेटे येसु को दाऊद के वंश में भेजा। इसप्रकार येसु ईश्वर के प्रथम प्रेम की जीवित अभिव्यक्ति हैं।

संत पापा ने कहा कि ईश्वर हमेशा हमारे आगे-आगे चलते हैं। वे दाखलता हैं और हम सिर्फ उनकी डालियाँ हैं। अतः ईश्वर ने हमें जो काम सौंपा है उसे खुशीपूर्वक करते चलें। हमारे मिशन की सफलता हमारी क्षमता या शक्ति पर निर्भर नहीं करती, पर ईश्वर पर निर्भर करती है। धर्माध्यक्ष के लिए प्रार्थना बहुत महत्वपूर्ण है प्रार्थना वह रस है जो बेल के माध्यम से डालियों तक आती है जिसके बिना शाखाएं सूख जाती हैं और फल उत्पन्न नहीं कर पाती। अतः ईश्वर के साथ प्रार्थना में जुड़े रहें। याकूब के समान रात में भी उसे जाने न दे जबतक कि वो आपको आशीर्वाद न दे।(उत्पत्ति, 32:25-27)

स्पष्ट रूप से दिखाएं कि आप ईश्वर के पहले चरण के संस्कार हैं

संत पापा ने संत अगुस्टीन की बातों को स्वीकार करते हुए कहा कि ईश्वर के पहले चरण के संस्कार को स्पष्ट रुप से दिखाने के लिए हमसे निरंतर आंतरिक पलायन की मांग करता है।"प्रेम में आशा करने की तुलना में प्रेम करने से बड़ा कोई निमंत्रण नहीं है" (संत अगुस्टीन, डे काटेकिजांदिस रुदिबुस,1,4,7,26 पीएल 40) संत पापा फ्राँसिस सभी धर्माध्यक्षों से आग्रह करते हैं कि वे पवित्र आत्मा के अधीन रहकर सुसमाचार का प्रचार करें। अपने आराम और सुरक्षा की परवाह किये बिना येसु के पदचिन्हों पर चलें। येसु को भी अपना सिर रखने को भी जगह नहीं थी पर उन्होंने अंत तक ईश्वर की इच्छा पूरी की। (लूकस, 9:58.62) अपने प्रेरितिक कार्यों को करते समय मापदंड का उपयोग न करें,बल्कि अपनी आँखें उस प्रभु में स्थिर रखें जिन्होंने आपको अपनी दाखबारी में काम करने हेतु बुलाया है। उसके ही न्याय को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रहें। दूसरों के पास जाने, उनसे संवाद करने हेतु पहला कदम आप लें। दूसरों के विचारों को समझने का प्रयास करें। कलीसिया के विकास में दूसरों के सहयोग को सहर्ष स्वीकार करें, परंतु प्लेग जैसी छिपी एजेंडा से बचे रहें। अपने अफ्रो-कोलम्बियाई लोगों के प्रति विशेष संवेदनशीलता दिखाएं जिन्होंने इस देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

ख्रीस्त के घायल शरीर का स्पर्श करें

संत पापा ने कहा, ″मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप अपने इतिहास, अपने लोगों के घावों को स्पर्श करने से न डरें। एक अविभाजित दिल से और विनम्रता के साथ ऐसा करें। केवल ईश्वर ही प्रभु है और हम उसके चरवाहे हैं, उनके अलावा हमारा दिल किसी भी अन्य कारण के अधीन नहीं होना चाहिए।″ आप अपने लोगों के साथ रहें। देश और कलीसिया के निर्माण में आप बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रसिद्ध लेखक गाब्रिएल ग्रासिया ने लिखा था कि ″युद्ध को शुरु करना जितना आसान है उतना ही कठिन है युद्ध को समाप्त करना।″ हम सभी जानते हैं कि शांति एक अलग तरह के नैतिक साहस की मांग करती है। युद्ध हमारे हृदय की सबसे बुनियादी प्रवृत्ति का अनुसरण करता है, जबकि शांति हमें स्वयं से ऊपर उठने के लिए मजबूर करती है।

सुलह के शब्द

संत पापा ने कहा,″इस देश की चुनौतियों का सामना करने में बहुत से लोग सहायता कर सकते हैं, लेकिन आपका मिशन अद्वितीय है। आप मेकानिक या राजनेता नहीं हैं, आप एक चरवाहे हैं। मसीह आपके हृदय पर लिखा सुलह का शब्द है। ईश्वर द्वारा आपको न केवल गिरजाघरों में उपदेश देने या अखबारों के आलेख लिखने, बल्कि व्यक्तिगत रुप से पुरुषों और महिलाओं के दिलों में भी प्रचार करने की शक्ति मिली है। आपके पास उनके विवेक के अंतरतम में भी प्रचार करने की शक्ति है, जहां वे स्वर्गीय आवाज़ सुनते की आशा करते हैं जो कि "उन लोगों के लिए शांति जिसे ईश्वर प्यार करते हैं"(लूका, 2:14) संत पापा ने धर्माध्यक्षों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे कलीसिया को मेल-मिलाप और एक दूसरे के प्रति आदर सम्मान का स्थान बनाने का सतत् प्रयास करें।             

कलीसिया का मिशन

संत पापा फ्राँसिस ने कोलंबिया के परिवारों की समस्याओं जैसे नशापान, पिता की अनुपस्थिति में बच्चों की परवरिश, युवाओं द्वारा नशीली दवाओं के उपयोग, और एक विद्रोही एवं तुच्छ जीवन शैली को अपनाना आदि पर धर्माध्यक्षों का ध्यान आकर्षित कराया। संत पापा ने याद दिलाया कि आज के युवा उपदेश नहीं परंतु गवाही चाहते हैं। आप उन्हें यह अनुभव करायें कि आप उन्हें स्वीकार करते और प्रेम करते हैं। उन्हें आशावादी बनने की प्रेरणा दें।

 धर्माध्यक्ष के रुप में आपको अपने युवा पुरोहितों की देखभाल करनी है। सर्वप्रथम आप उनके लिए पिता तुल्य हैं उन्हें आश्वस्त करना है कि जिन हाथों ने उनका अभिषेक किया वे उनके जीवन का हिस्सा बने गये हैं। उन्हें यह देखना है कि क्या वे मसीह के चेलों की भांति जीवन व्यतीत कर रहे हैं या दोहरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसलिए अपने पुरोहितों के आध्यात्मिक जीवन के प्रति सावधान रहें। समय-समय पर उन्हें कैसरिया फिलिपी प्रदेश की ओर ले जाये जहाँ येसु उनसे प्रश्न करेंगें कि तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ? अपनी बुलाहट के प्रति सजग न होने पर पुरोहित धीरे धीरे अपने हृदय में यह जवाब देने में सक्षम नहीं हो पाता कि "आप मसीह हैं, परमेश्वर का पुत्र"(मत्ती 16 :13-16) संत पापा ने धर्माध्यक्षों को अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे अमाजोन की कलीसिया की विशेष देखभाल हेतु प्रोत्साहित किया। 








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