2017-08-24 16:35:00

″कंधमाल दिवस″ मनाने के पीछे लोगों की मनसा


भारत, बृहस्पतिवार, 24 अगस्त 17 (वीआर अंग्रेजी): उड़ीसा के कंधमाल जिला ने वर्ष 2008 में एक भयंकर सांप्रदायिक हिंसा का सामना किया था जिसमें ख्रीस्तीयों के 395 से अधिक गिरजाघरों एवं पूजा स्थलों को ध्वस्त कर दिया गया था जबकि 5,847 घरों को ढाह दिया गया था। करीब 100 लोग मृत्यु के घाट उतार दिये गये थे, चालीस महिलाओं के साथ बलात्कार, छेड़छाड़ और अपमान की घटना हुई थी। कई शिक्षण संस्थाओं, समाज सेवा केंद्रों और स्वास्थ्य केद्रों को नष्ट कर लूट लिया गया था तथा 56,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे। करीब 12,000 से अधिक बच्चे, वर्षों तक स्कूल नहीं जा सके अथवा स्कूल से पूरी तरह वंचित हो गये।

कंधमाल के लोग 25 अगस्त को हर वर्ष इस सांप्रदायिक हिंसा की यादगारी में ″कंधमाल दिवस″ मनाते हैं तथा इसके शिकार लोगों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते एवं उनके लिए न्याय की मांग करते हैं।

नौ सालों के बाद क्या इस हमले के शिकार लोगों को न्याय मिल पाया है? कटक भुनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा एस वी डी ने ″कंधमाल दिवस″ का महत्व बतलाते हुए वाटिकन रेडियो से कहा कि इस दिन को खास तौर से अत्याचार के शिकार लोगों की यादगारी में आयोजित की जाती है।

उन्होंने कहा कि इस दिन को मनाने के लिए करीब 10,000 लोग कंधमाल के जी. उदयगिरि में सुबह 10 बजे से शाम 4.00 बजे तक जमा होकर प्रार्थना, आमसभा, रैली, भाषण आदि कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

इसका आयोजन विभिन्न कलीसियाओं के साथ हिंसा से बचे लोगों के द्वारा किया जाता है जिसमें हिन्दू और मुसलमान भी भाग लेकर एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं।  

इस आयोजन के द्वारा लोग सरकार से यही मांग करते हैं कि वह पीड़ित लोगों को न्याय दे तथा उनकी क्षतिपूर्ति करे।

कंधमाल में जब सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़की महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा रौरकेला के धर्माध्यक्ष थे। कंधमाल रौरकेला धर्मप्रांत के अंतर्गत आता है।

सांप्रदायिक दंगा 2008 में उस घटना से शुरू हुई जब 23 अगस्त को हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मानन्दा की हत्या हो गयी थी जिसका गलत आरोप हिन्दू चरमपंथियों ने ख्रीस्तीयों पर लगाया था। 








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