नई दिल्ली, सोमवार, 14 अगस्त 2017 (मैट्रस इंडिया): झारखंड ने शनिवार को धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017 पारित कर जबरन या प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने को संज्ञेय अपराध माना है। इसके द्वारा ईसाइयों को लक्ष्य बनाते हुए, कलीसियाई नेताओं को एक कानूनी चुनौती का सामना करने के लिए प्रेरित किया गया है।
धर्म स्वतंत्र विधेयक 2017, राज्य सरकार द्वारा राँची के कई समाचार पत्रों में पहले पन्ने पर कथित महात्मा गाँधी के कथन के विज्ञापन द्वारा ईसाई मिशनरियों पर आक्रमण करने की कोशिश के एक दिन बाद पारित किया गया है, जिसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाया गया था।
विधेयक में ″प्रलोभन″ शब्द को नकद, कोई उपहार या सामग्री अथवा आर्थिक लाभ के द्वारा परिभाषित किया गया है तथा ″जबरन″ को किसी प्रकार से नुकसान पहुँचाने के लिए धमकी देने या सामाजिक बहिष्कार के रूप में परिभाषित किया गया है।
झारखंड स्वतंत्र विधेयक 2017 के अनुसार एससी, एसटी के खिलाफ अपराध करने वालों को चार साल की सज़ा एवं एक लाख रूपये का दण्ड भुगतना पड़ेगा। जबकि अन्य समुदायों के वयस्क पुरुषों के जबरन धर्मांतरण के लिए, जेल की अवधि तीन साल एवं 50,000 रुपये का दण्ड निर्धारित किया गया है। स्वेच्छा से धर्मांतरण की मांग करने वालों को डिप्टी कमिश्नर की अनुमति की आवश्यकता होगी, जो पहले धर्मातरण की परिस्थितियों का परीक्षण करेंगे।
विधेयक के शीघ्र पारित होने का विरोध करते हुए विपक्ष दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के सदस्य हेमन्त सोरेन ने कहा, ″वे हमें कोर्ट भेजना चाहते हैं जहाँ वकीलों पर लाखों रूपये खर्च होंगे और हम उनके खेल में फंस गये होंगे। हम एक सार्वजनिक आंदोलन का निर्माण करेंगे।″
उन्होंने कहा, ″यह ख्रीस्तीयों के विरूद्ध में ‘सरना’ (गैर-हिन्दू, गैर-ख्रीस्तीय आदिवासी) लोगों को गिराने का प्रयास है। रघुवरदास ऐसा इसलिए करने का प्रयास कर रहा क्योंकि शिक्षित ख्रीस्तीय आदिवासियों ने उनकी सरकार की भूमि-पकड़ने के प्रयासों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद की।"
झारखंड धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष, जमशेदपुर के धर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो ने कहा कि वे अगले सप्ताह मिलेंगे।
उन्होंने कहा, ″हम सबसे पहले मुख्य मंत्री से मिलेंगे तथा उनसे ईमानदारी पूर्वक अपील करेंगे चूँकि इस कानून के पीछे ख्रीस्तीयों पर अत्याचार दिखाई पड़ता है। (बाद में यदि आवश्यक होगा) हम इसे रोकने के लिए कानूनी काररवाई पर भी विचार करेंगे।″
शुक्रवार के समाचार पत्र पर महात्मा गांधी के कथन का हवाला देते हुए एक विज्ञापन छापा गया था ″यदि ईसाई मिशनरी समझते हैं कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है तो यह काम आप मुझसे या महादेव देसाई से क्यों शुरू नहीं करते। क्यों इन भोले भाले, अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हैं।″
गाँधी जी का हवाला देते हुए आगे कहा गया था, ″वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं...वे ईसा के लिए नहीं ‘चावल’ अर्थात् पेट के लिए ईसाई बनते हैं।″
विज्ञापन में यह नहीं बतलाया गया है कि महात्मा गाँधी ने कहाँ, कब और किन्हें सम्बोधित कर ये बातें कही थीं। आदिवासी कार्यकर्ताओं ने कहा है कि आदिवासियों के लिए गाँधी जी ने ″वनवासी″ शब्द का प्रयोग नहीं किया है बल्कि संघ परिवार ने किया है।
जानकारी के अनुसार दिल्ली में जॉन दयाल, हर्ष मंदर और अन्य कार्यकर्ता, राज्य सरकार के साथ-साथ उन प्रकाशनों एवं एजेंसी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की योजना बना रहे हैं, जिन्होंने विज्ञापन को तैयार किया और प्रकाशित भी किया था।
दयाल ने कहा, ″कलीसिया द्वारा भले कार्यों के बावजूद, राज्य ने विज्ञापन के माध्यम से घृणा फैलाने और हिंसा उत्तेजित करने का प्रयास किया है इसलिए, हम केस दर्ज करेंगे।″
‘द टेलीग्राफ’ ने रिपोर्ट के अनुसार अखिल भारतीय सरना धार्मिक और सामाजिक समन्वय समिति के उपाध्यक्ष विश्वनाथ तुर्की ने कानून की आलोचना की है।
उन्होंने कहा है, ″अगर भाजपा हमारे विश्वास की रक्षा करने में दिलचस्पी रखती है, तो दूसरे धर्मों की तरह हमारे धर्म को भी कोड क्यों नहीं दे रही है जिसकी हम मांग कर रहे हैं।″
उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदायों द्वारा भूमि विरोध और 9 अगस्त के आदिवासी दिवस समारोहों के बाद सरकार डर गई है और वह "बांटो और शासन" करो की नीति अपनाना चाहती है।
All the contents on this site are copyrighted ©. |