2017-08-12 15:52:00

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने में कलीसिया की भूमिका


नई दिल्ली, शनिवार, 12 अगस्त 2017 (ऊकान): भारत की कलीसिया के धर्मगुरूओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा राजनीतिक नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाने हेतु 9 अगस्त को आदिवासियों के साथ एक कार्यक्रम का आयोजन किया तथा आदिवासियों के विकास हेतु कार्य करने तथा उनकी पहचान और संस्कृति को सुरक्षित रखने हेतु उपायों पर विचार किया गया।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (सीबीसीआई) ने देश में आदिवासी लोगों के सामने आने वाले मुद्दों पर विचार करने के लिए राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और समान विचारधारा वाले लोगों की एक बैठक के साथ इस दिवस को चिह्नित किया।

सीबीसीआई के महासचिव धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेनहास ने कहा, ″भारत की कलीसिया आदिवासी लोगों की पहचान को बचाने और उसे सुरक्षित रखने के लिए सरकार, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों तथा स्थानीय संगठनों के साथ काम करना तथा उनके समग्र विकास को सुनिश्चित करना चाहती है।″

सभा के संयोजक, भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के आदिवासी विकास विभाग के सचिव फा. निकोलास बारला ने कहा, ″आदिवासी समुदाय सामान्यतः समाज की मुख्यधारा से बाहर कर दी जाती है। आदिवासी विकास हेतु सरकार की कई योजनाएँ एवं परियोजनाएँ हैं किन्तु उन्हें ठीक ढंग से कार्यान्वित नहीं किया जाता है।″ उन्होंने कहा कि देश के विकास एजेंदा से कोई न छूटे।    

आदिवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 75 प्रतिशत भारतीयों में 104 मिलियन आदिवासी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। अर्थात् उनके पास एक दिन के भोजन के लिए भी पर्याप्त संसाधन मौजूद नहीं है। केवल 20 प्रतिशत लोगों के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध है जबकि 77 प्रतिशत लोगों के पास स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है।

बच्चों के स्कूल छोड़ देने की दर भी उच्च है, साथ ही 70 प्रतिशत छात्रों को स्कूलों में शामिल नहीं किया जाता है। आदिवासियों में शिशु मृत्यु दर काफी उच्च है क्योंकि प्रत्येक 1,000 जन्म में 62 बच्चे मर जाते हैं जबकि राष्ट्रीय शिशु मृत्यु दर केवल 41 है।

ऊका समाचार के अनुसार जेस्विट सोसाईटी द्वारा संचालित भारतीय सामाजिक संस्थान ने आदिवासी युवाओं के लिए एक अन्य कार्यक्रम का आयोजन किया था जिसमें कुल 100 युवाओं ने भाग लिया।

भारतीय सामाजिक संस्थान में आदिवासी शोध विभाग के प्रमुख फादर रंजित तिग्गा ने कहा कि उन्होंने युवाओं पर विशेष ध्यान इसलिए दिया क्योंकि वे देश के भावी कर्णधार हैं और यदि वे शिक्षित हो जायेंगे तो आधी समस्या समाप्त हो जाएगी।

झारखंड के आदिवासी कार्यकर्ता ग्लैडसन डुँगडुँग ने कहा, ″कम से कम लोग इस बात से सचेत हैं कि आदिवासी दिवस के नाम से कोई कार्यक्रम है। इस प्रकार वे धीरे-धीरे अपने अधिकारों से भी अवगत होंगे। उन्होंने कहा कि लगभग सभी प्रमुख शहरों और कस्बों में, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार जैसे आदिवासी गढ़ वाले राज्यों ने बैठकों, संगोष्ठी और कार्यशालाओं द्वारा कलीसिया के लोगों और आदिवासी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इस दिन को चिन्हित किया है।

उन्होंने कहा, "यह एक बहुत ही सकारात्मक संकेत है कि अधिक से अधिक लोग इसमें शामिल हुए हैं और समाज में क्या हो रहा है, इसके बारे में जागरूक हो रहे हैं, जिसके द्वारा कट्टरपंथी और सांप्रदायिक ताक़तों के एजेंडे की हार हुई है।"

तेलंगाना राज्य के एक सांसद अजमेरा सीताराम नाईक ने संसद की आवश्यकता की वकालत की और राज्यों को आदिवासी कानून लागू करने के लिए कहा। उन्होंने इस मुद्दे को गंभीरता से न लेने के लिए सांसदों को दोषी ठहराया।

सभा ने अनुशंसा की कि वह वन अधिकार अधिनियम रक्षात्मक कानून और कानून के अन्य प्रावधानों और संविधान एवं आदिवासियों के अधिकारों तथा उनके सतत विकास लक्ष्य पर 2007 में संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र में निहित शर्तों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।








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