2017-08-02 16:59:00

दुनिया को ईश्वरीय ज्योति से प्रकाशित करें


वाटिकन सिटी, बुधवार 02 अगस्त 2017, (रेई) जुलाई महीने के ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद  संत पापा फ्राँसिस ने 02 अगस्त को अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह की शुरूआत यथावत की और पौल षष्टम् के सभागार में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

एक समय था जब कलीसिया पूर्वी रीति के अनुरूप अपने को संचालित करती थी। पवित्र स्थल में प्रवेश करने हेतु पश्चिम के द्वार खुले रहते थे और विश्वासियों को पूर्व को ओर सिर करते हुए प्रवेश करना होता था। यह अतीत के लोगों हेतु एक महत्वपूर्ण निशानी थी लेकिन यह प्रथा इतिहास में विकास के साथ समाप्त हो गई। हम जो आधुनिक समय के लोग हैं पृथ्वी की इस बड़ी विधि व्यवस्था की ओर बहुत ही कम ध्यान देते हैं। पश्चिम सूर्यास्त हेतु महत्वपूर्ण है जहाँ हम प्रकाश को धूमिल होता पाते हैं। इसके विपरीत पूर्व की ओर हम सूर्योदय को देखते हैं जहाँ हमारे लिए दिन की शुरूआत होती जो हमें येसु ख्रीस्त की याद दिलाती है जो जीवन के प्रतीक हैं। प्रचीन काल में बपतिस्मा की धर्म विधि के दौरान दीक्षार्थियों को पश्चिम की ओर अभिमुख करते हुए उनके विश्वास की अभिव्यक्ति ली जाती थी। उन्हें पूछा जाता था, “क्या आप शैतान, उसके कार्यों और उसके सभी प्रपंचों का परित्याग करते हैं।” और दीक्षार्थियों को इसके उत्तर में एक साथ कहना पड़ा था,“जी हाँ।” इसके बाद उन्हें पूर्व की मुहाकर जिधर से सूर्योदय होता है पुनः पूछा जाता था,“क्या आप स्वर्ग और पृथ्वी के निर्माता पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा ईश्वर पर विश्वास करते हैंॽ” इसका उत्तर देते हुए वे सभी एक साथ “मैं विश्वास करता हूँ हाँ” कह कर उत्तर देते थे।

वर्तमान समय में धर्म विधि की यह सुन्दरता समाप्त-सी हो गई है। हम बह्माण्ड के प्रति अपनी भाषा की संवेदनशीलता को भूल गये हैं। हम स्वाभाविक रुप से केवल अपने विश्वास की अभिव्यक्ति की ओर ध्यान देते हैं जैसे की बपतिस्मा संस्कार की धर्म विधि के दौरान पूछा जाता है जो स्नान संस्कार के अनुष्ठान हेतु उचित है। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय होने का अर्थ क्या है। हमारे लिए इसका अर्थ ज्योति की ओर देखना है और दुनिया जो अंधकार और रातों से घिरी हुई है इसके मध्य भी अपने विश्वास की ज्योति में मजबूत बनाये रखना है।

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तियों को अंधकार से, आंतरिक और बाह्य अंधकार से मुक्ति नहीं मिली है। हम संसार के बाहर नहीं रहते हैं यद्यपि येसु ख्रीस्त में अपने बपतिस्मा के कारण हम अंधकार की नहीं वरन ज्योति की संतान बनते हैं। हम रात्रि से मूर्च्छित नहीं होते वरन प्रभात में अपनी आशा सुदृढ़ बनाये रखते हैं। हम मृत्यु से हार नहीं मानते वरन पुनर्जीवित होने की चाह रखते हैं। हम बुराई के द्वारा अपने जीवन में दबे और कुचले नहीं जाते वरन अनंत अच्छाई की संभावना में विश्वास करते हैं।

हम अपने ईश्वर पर विश्वास करते हैं जो कि हमारे लिए पिता, एक ज्योति के समान हैं। हम विश्वास करते हैं कि येसु ख्रीस्त हमारे बीच में आये, वे हमारे जीवन में एक मित्र के रुप में साथ चलते हैं विशेषकर हम जो अति गरीब और अपने में एकदम टूटे हुए हैं, वे हमारे लिए ज्योति हैं। हम विश्वास करते हैं कि पवित्र आत्मा हम में और दुनिया में अथक रूप से क्रियाशील हैं जिस के फलस्वरूप हम दुनिया की किसी भी असहाय दुःख-दर्द से अपने को निजात पाते हैं। यह हमारी आशा है जो प्रतिदिन हमारे लिए प्रतिध्वनित होती है। हम अपने में यह विश्वास करते हैं कि हर प्रेम, मित्रता, अच्छाई की चाह यहाँ तक की अपने में छोड़ दिये गये भी एक दिन ईश्वर में परिपूर्णता को प्राप्त करेंगे। यह हमारे लिए वह शक्ति है जो हमें प्रति दिन प्रेरित करती जिसके द्वारा हम हर दिन को अपने जीवन में आलिंगन करने के काबिल बनते हैं।

संत पापा फ्राँसिस ने कहा कि बपतिस्मा की धर्म विधि में और एक अति सुन्दर निशानी है जो हमें ज्योति की महत्वपूर्ण की याद दिलाती है। धर्म विधि के अंत में, यदि यह किसी छोटे बच्चे का बपतिस्मा है तो माता-पिता को और किसी प्रौढ़ का बपतिस्मा हो तो उस व्यक्ति को पास्का मोमबत्ती से प्रदीप्त की गई एक मोमबत्ती सुपुर्द की जाती है। इस चिन्ह के द्वारा हम पुनर्जीवित येसु ख्रीस्त को अपने जीवन में और अपने भाई-बहनों के जीवन में धीरे-धीरे लाते हैं। इस तरह येसु ख्रीस्त की ज्योति हम सभों को अपने में समाहित कर लेती है।

अपने बपतिस्मा की याद कर हम अपने जीवन के द्वारा अन्यों को एक अति सुन्दर संदेश देते हैं। एक बार हमारा जन्म स्वाभाविक रुप में तो दूसरी बार हमारा जन्म बपतिस्मा के द्वारा येसु ख्रीस्त में होता और इस तरह हम अपने को दुबारा जन्म लेते हुए पाते हैं। इस भाँति हम अपने ईश्वर में पुनर्जीवित होते और उनके बेटे-बेटियों के रुप में इस संसार में जीवनयापन करते हैं। संत पापा ने कहा कि यही कारण है कि हमें अपने जीवन के द्वारा ईश्वरीय कृपा की सुगंध को प्रसारित करने की जरूरत है जिसे हम सभों ने अपने बपतिस्मा में पाया है। हम सभों में येसु की आत्मा कार्यरत  है वह हम सबों में निवास करती जो हमें दुनिया के अंधकार और मृत्यु से बचाये रखती है।

संत पापा ने कहा कि “ख्रीस्त के धारक” होना हमारे लिए दुनिया में कितनी बड़ी कृपा है विशेषकर उनके लिए जो अपने जीवन में दुःख, हताशी, अंधकारमय, और घृणा जैसी स्थिति से होकर गुजर रहते होते हैं। इसे हम अपने जीवन के विभिन्न परिस्थितियों में समझते हैं जैसे की अपने जीवन के कठिन परिस्थिति से होकर गुजरते हुए भी अपने में शांति का एहसास करना, अपने जीवन के निराशा भरी अनुभूति के बावजूद नये उमंग में जीवन की शुरूआत करना। संत पापा ने लोक धर्मियों से प्रश्न करते हुए कहा, “भविष्य में जब आप हमारे जीवन की कहानी लिखेंगे तो आप अपने बारे में क्या लिखेंगेॽ” यही कि हम अपने में आशावान बने रहें या हमें अपने जीवन में ईश्वरीय ज्योति को लाठी तले दबा दिया। यदि हम अपने बपतिस्मा के प्रति निष्ठावान बन रहते हैं दो हम ईश्वर की आशा रूपी ज्योति को अपने आने वाली पीढ़ी के लिए प्रसारित करते हैं जो उनके लिए जीवन का कारण बनती है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की सभों तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन पर ईश्वरीय आशा की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 








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