2017-07-25 15:27:00

10 अगस्त, भेदभाव के शिकार दलित ख्रीस्तीयों के लिए 'काला दिन', धर्माध्यक्ष


नई दिल्ली, मंगलवार 25 जुलाई 2017 (एशिया न्यूज) : अगस्त 10 दलित ख्रीस्तीयों के 67 वर्षों के भेदभाव को उजागर करने के लिए "काला दिवस" होगा। यह भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित और पिछड़े वर्ग हेतु बने विभाग द्वारा शुरू की गई पहल है। हाल के दिनों में, धर्माध्यक्षों ने दलित मूल नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की थी। वे भी लोगों को याद दिलाना चाहते हैं कि देश उन दलितों के खिलाफ संवैधानिक-आधारित भेदभाव को लागू करता है जिन्होंने ख्रीस्तीय धर्म को स्वीकार किया है।

भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद  द्वारा 10 अगस्त 1950 को हस्ताक्षरित "अनुसूचित जाति" पर 1950 का संवैधानिक आदेश कहता है कि "हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्म का कोई भी व्यक्ति अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता" इसके बाद सन् 1956 में सिख और सन् 1990 में बौद्ध धर्म को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए इस आदेश को संशोधित किया गया। ख्रीस्तीय और मुस्लिम दलित हाशिए पर हैं।

धर्माध्यक्षों की शिकायत हैं कि नागरिक याचिका 180/2004, जिसमें 1950 के आदेश के अनुच्छेद 3 को हटाने का अनुरोध किया है, अभी भी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है। उनका तर्क हैं कि "धर्म के कारण ख्रीस्तीय और मुस्लिम दलितों के संवैधानिक अधिकारों को 67 साल से वंचित किया गया है।

विशेष रूप से, ख्रीस्तीय धर्माधिकारियों का मानना है कि अनुच्छेद 3 "असंवैधानिक है, यह संविधान के बाहर लिखा गया और एक कार्यकारी आदेश के काले दरवाजे के माध्यम से डाला गया एक काला पृष्ठ है।"

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के दलित और पिछड़े वर्ग हेतु बने विभाग के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष अन्तोनीसामी नीथीनाथन भारत के सभी ख्रीस्तीयों को आमंत्रित करते हुए कहा,  आप अपने क्षेत्र, धर्मप्रांतों और संस्थानों में 10 अगस्त को एक काला दिवस के रूप में लें।" धर्माध्यक्ष ने कहा,″अपने क्षेत्रों में आप उन ख्रीस्तीयों को समर्थन और एकजुटता दिखायें जो दलित मूल होने के कारण भेद-भाव से पीड़ित हैं। मैं आपको समाज में समाचार प्रसारित करने के लिए मीडिया, और विशेष रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करने का आग्रह करता हूँ।"

 








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