2017-07-03 15:34:00

मिशन पर येसु का अंतिम उपदेश


वाटिकन सिटी, सोमवार, 3 जुलाई 2017 (रेई): वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 2 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, ″अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।″

″आज की धर्मविधि संत मती रचित सुसमाचार के अध्याय 10 में निहित मिशन पर अंतिम उपदेश को प्रस्तुत करता है। (मती. 10: 37-42) जहाँ येसु 12 शिष्यों को पहली बार मिशन हेतु गलीलिया एवं यहूदिया भेजने के पूर्व निर्देश देते हैं। इसके अंतिम भाग में येसु मिशनरी शिष्यों के जीवन के लिए दो महत्वपूर्ण बातों पर जोर देते हैं, पहला कि वे अन्य किसी भी व्यक्ति से बढ़कर येसु के साथ संबंध मजबूत रखें। दूसरा कि एक मिशनरी अपने आपका नहीं किन्तु येसु का प्रचार करता है और उसके द्वारा पिता ईश्वर के प्रेम को प्रकट करता है।″

संत पापा ने कहा कि ये दोनों पहलू एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं क्योंकि एक शिष्य के हृदय एवं जीवन के जितने केंद्र में येसु होते हैं, वह शिष्य उतना ही अधिक उनकी उपस्थिति का साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है अतः ये दोनों साथ-साथ चलते हैं।

येसु कहते हैं, ″जो पुत्र अपने माता या पिता को मुझसे अधिक प्रेम करता है, वह मेरा शिष्य बनने के योग्य नहीं...″(पद.37) संत पापा ने कहा कि पिता का स्नेह, माता की कोमलता, भाई-बहनों के मधुर संबंध से जब वे एक-दूसरे से बहुत अच्छी तरह रहते हैं, तब भी यह ख्रीस्त का स्थान नहीं ले सकता। इसका अर्थ यह नहीं है कि येसु चाहते हैं कि हम बेरहमी बनें और अहसानमंद न हों, बल्कि इसलिए क्योंकि एक शिष्य के लिए प्रभु के साथ संबंध, प्राथमिकता की मांग करता है।

कोई भी शिष्य चाहे वह एक लोकधर्मी हो, पुरोहित हो अथवा धर्माध्यक्ष, येसु के साथ संबंध का स्थान प्रथम होता है। एक ख्रीस्तीय के रूप में हमारे लिए पहला सवाल है, ″क्या हम येसु से मुलाकात करते हैं?″ क्या हम येसु से प्रार्थना करते हैं? हम यहाँ उत्पति ग्रंथ के उस संदर्भ को इस तरह ले सकते हैं इसलिए पुरूष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और येसु ख्रीस्त के साथ संबंध जोड़ेगा और वे दोनों एक हो जायेंगे। (उत्पति 2:24) जो येसु ख्रीस्त के साथ संबंध स्थापित करते हैं वे उनके प्रतिनिधि एवं उनके राजदूत बन जाते हैं, खासकर, अपने जीवनशैली द्वारा।

इस बिन्दु पर कि येसु स्वयं शिष्यों को मिशन हेतु भेज रहे हैं, वे उन्हें बतलाते हैं, ″जो तुम्हारा स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है वह उसका स्वागत करता है जिसने मुझे भेजा है।" (मती. 10,40)  आवश्यकता है कि लोग उस शिष्य में यह देख सकें कि येसु सचमुच प्रभु हैं, वे उनके जीवन के केंद्र, उनके सम्पूर्ण जीवन में हैं। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता कि एक सामान्य व्यक्ति की तरह उसमें कमजोरियाँ और सींमाएँ हैं, आवश्यकता इस बात की है कि उसमें अपनी कमजोरियों को स्वीकार करने की दीनता निहित हो। संत पापा ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि उसमें दोहरा हृदय न हो, यह निश्चय ही खतरनाक होता है। मैं एक ख्रीस्तीय हूँ, मैं येसु का शिष्य हूँ, मैं एक पुरोहित हूँ एक धर्माध्यक्ष हूँ फिर भी मेरा हृदय दोहरा हो सकता है। संत पापा ने दोहरे हृदय के प्रति असहमति जताते हुए कहा कि हममें दोहरा हृदय नहीं होना चाहिए बल्कि सरल एवं संगठित हृदय होना चाहिए। हम दो जूतों पर एक पैर नहीं डाल सकते। उन्होंने सलाह दी कि हम अपने आप एवं दूसरों के प्रति वफादार बनें। संदेह ख्रीस्तीयता नहीं है यही कारण है कि येसु पिता से प्रार्थना करते हैं, कि शिष्य दुनियावी भावना के जाल में न फंसें। वे या तो येसु के साथ, उनकी आत्मा से जुड़े रह सकते हैं अथवा संसारिकता की भावना के साथ बह सकते हैं।   

संत पापा ने पुरोहितों से कहा कि यहाँ हमारा याजकीय अनुभव अति सुन्दर एवं महत्वपूर्ण चीज सिखलाता है। ‘एक गिलास ठंडा पानी’ (पद.42) का अर्थ है ईश प्रजा को स्वीकार करना। आज के सुसमाचार में प्रभु कहते हैं कि स्नेह पूर्ण विश्वास के साथ देना, हमें अच्छे पुरोहित बनने में मदद देता है। मिशन में भी आदान-प्रदान है। यदि हम येसु के लिए सब कुछ त्याग देते हैं तब लोग हममें प्रभु को पहचानते हैं किन्तु इसके लिए हमें प्रतिदिन मन-परिवर्तन करने, नवीकृत किये जाने तथा समझौता करने एवं प्रलोभनों पर विजय पाने की आवश्यकता है। एक पुरोहित जितना अधिक ईश प्रजा के करीब होता है उतना ही अधिक वह येसु के करीब रहने का एहसास करेगा और जब वह येसु के अधिक करीब होता है उतना ही अधिक ईश प्रजा के करीब होने का एहसास करेगा।

संत पापा ने माता मरियम की याद करते हुए कहा कि धन्य कुँवारी मरियम ने सबसे पहले यह अनुभव किया कि अपने आप का त्याग कर येसु से प्रेम करने का अर्थ क्या है। यह पारिवारिक रिश्तों को नया अर्थ देता है तथा उन पर विश्वास द्वारा आरम्भ होता है। अपनी ममतामय मध्यस्थता द्वारा वे हमें स्वतंत्र किये जाने एवं सुसमाचार के प्रसन्नचित्त मिशनरी बनने में मदद करें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 देवदूत प्रार्थना के उपरांत उन्होंने देश-विदेश से एकत्रित तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों का अभिवादन किया। उन्होंने कहा, ″मैं रोम वासियों एवं सभी तीर्थयात्रियों का अभिवादन करता हूँ।″ संत पापा ने बेल फास्ट एवं स्काटडॉर्ट (स्वीटज़रलैंड) के दृढ़ीकरण संस्कार प्राप्त करने वाले युवाओं का अभिवादन किया। उन्होंने विभिन्न पल्लियों एवं संगठनों के सदस्यों का भी अभिवादन किया।

अंत में उन्होंने प्रार्थना का आग्रह करते हुए सभी को शुभ रविवार की मंगलकामनाएँ अर्पित की। 








All the contents on this site are copyrighted ©.