2017-06-22 11:05:00

पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय स्तोत्र ग्रन्थ भजन 86


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इसे 5 खंडों में विभक्त किया गया है और विगत सप्ताह हमने तीसरे खंड के छियासिवें भजन की व्याख्या शुरु की थी। बाईबिल विद्वानों का कहना है कि छयासिवां भजन राजा दाउद के द्वारा लिखी गई विपत्ति से उबरने हेतु प्रार्थना थी। इस भजन पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि दाउद ने सिलसिलेवार इस भजन को नहीं लिखा है परंतु अपने द्वारा लिखित अन्य भजनों और अन्य धार्मिक ग्रंथों से कर उन्हें एक साथ परो दिया है। यह भजन विपत्ति के दौरान प्रभु से की गई विनय प्रार्थना है हम कह सकते हैं कि छयासिवां भजन प्रभु के दाऊद के हृदय से निकली जीवन के हताश और निराश घड़ी की उस प्रभु से प्रार्थना है जिसे वह अच्छी तरह जानता है। 17 पदों वाले इस भजन को दाऊद ने प्रभु से 15 अनुरोध को मिलाकर संकलित किया था।

इस भजन को 4 छोटे खण्डों में विभक्त किया जा सकता है प्रथम खंड है पद संख्या 1 से 7 तक । इन पदों में दाउद ने प्रभु से उसकी विनय सुनने और पूरा करने की गुहार लगाई है। पद 8 से 10 में दाऊद ने प्रभु को एक मात्र सच्चे ईश्वर, राष्ट्रों के प्रभु यहोवा के रुप में स्तूति प्रार्थना की थी। पद 11 से 13 में दाऊद ने प्रभु से उसके मार्ग को सिखाने और उनसे भय रखते हुए एक हृदय एक प्राण यानि उनसे जुड़े रहने हेतु सीख देने का आग्रह करता है तथा पद संख्या 14 से लेकर अंतिम पद 17 में दाउद अपने दुश्मनों और अत्याचारियों से बचाने हेतु प्रभु की दया और अनुकम्पा की याचना करता है।

श्रोताओ, राजा दाऊद के इस विनय प्रार्थना में हम हमारे आध्यात्मिक जीवन में उठने वाले सवालों और उनके जवाब पाते हैं। वे सवाल हैं 1. हमें क्यों प्रार्थना करनी चाहिए ? 2, हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए ? 3. हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहए ?  और अंतिम है, हमें किस बात के लिए प्रार्थना करनी चाहिए ?

आइये हम पहले प्रश्न पर गौर करें. हमें क्यों प्रार्थना करनी चाहिए ? हमें प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि हमें प्रार्थना की बहुत आवश्यकता है। 86 भजन के प्रथम तीन पदों को हम पढ़ते हैं, ″ प्रभु, मेरी प्रार्थना सुन, मुझे उत्तर दे। मैं दरिद्र और निसहाय हूँ। मेरी रक्षा कर। मैं तेरा भक्त हूँ। तुझपर मेरा भरोसा है, अपने दास का उद्धार कर। प्रभु, तू ही मेरा ईश्वर है। मुझपर दया कर। मैं दिनभर तुझे पुकारता हूँ। दाउद को प्रभु के साथ संयुक्त रहने से जो खुशी और आनंद उसकी आत्मा को मिलती थी उसका एहसास उसे था। अतः वो अपनी आत्मा को प्रभु की ओर उनमुख करने की आवश्यकता महसूस करता था चौथे पद में हम पढ़ते है, ″प्रभु, अपने दास को आनन्द प्रदान कर, क्योंकि मैं अपनी आत्मा को तेरी ओर अभिमुख करता हूँ।″

 पद संख्या 7 में हम पढ़ते हैं मैं संकट के दिन तुझे पुकारता हूँ। दाऊद निस्सहाय और संकट में हैं। कौन सा संकट ? इसका जवाब हम पद संख्या 14 में पाते हैं, प्रभु, धमंडियों ने मुझपर आक्रमण किया, अत्याचारियों का झुंड मुझे मारना चाहता है। दाऊद अपने आप को कमजोर और निस्सहाय पाता है और प्रभु की शरण में जाता है उसे प्रभु से विनय करने और प्रार्थना करने की आवश्यकता महसूस हुई।

श्रोताओ, अगर हम अपने दैनिक जीवन को गौर करें तो हम पाएँगे कि हम अपनी कठिनाईयों को दूर करने का जी तोड़ प्रयास करते हैं हमें अपने आप पर पूरा भरोसा है कि हम अपनी समस्याओं को सुलझा पाएंगे। अगर ना सुलझा पाये तो अपने दोस्तों या सगे-संबंधियों के पास जाते हैं और फिर उनसे भी बात नहीं बनती तो अंत में हम कहते हैं अब तो हमने सबकुछ आज़मा लिया और अब अंतिम चीज बाकी रह गई है। प्रार्थना करना और यही आखिरी उपाय है और भगवान भरोसे अपने आप को छोड़ देते हैं। जबकि प्रथम चरण में ही प्रभु पर भरोसा रखते हुए अपनी समस्याओं को सुलझाने हेतु कदम उठाते तो शायद हम अलग तरीके से समस्याओं को सुलझा पाते।

एक और कारण हो सकता है हम सोचते हैं कि हम सामान्य रुप से एक अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं हम खुद को बड़े आतंकवादियों, बाल-उत्पीड़कों, डाकुओं या शोषणकर्ताओं से तुलना करते हैं और सोचते हैं कि चलो हम एकदम शुद्ध और पवित्र जीवन तो व्यतीत नहीं कर रहे हैं परंतु उतने भयानक पापी भी नहीं हैं। हमारी यह संतुष्टि और धमंड की भावना हमें प्रभु के चरणों में जाने और प्रार्थना करने की आवश्यकता को महसूस करने नहीं देती। दाऊद के समान हमें भी प्रभु से प्रार्थना करने की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए। यह तभी संभव होगा जब हम अपने अहं का त्याग कर सच्चे मन से प्रभु की ओर उन्मुख होकर कह पाएंगे ″हे प्रभु मेरी प्रार्थना सुन, मुझे उत्तर दे मैं दरिद्र और निस्सहाय हूँ।″

दाऊद प्रभु से विनय करता है कि प्रभु उसकी सुने और उसका उत्तर दे।  पदसंख्या 6 में हम पढ़ते हैं, ″प्रभु, मेरी प्रार्थना सुनने और मेरी दुहाई पर ध्यान देने की कृपा कर।″ दाऊद को भरोसा है कि अगर ईश्वर चाहें और उसकी कृपा हुई तो वे उसे संकट से उबार सकते हैं और उसे आनंद प्रदान कर सकते हैं। 








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