2017-06-16 12:04:00

भ्रष्टाचार है एक प्रकार की ईशनिन्दा, सन्त पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 16 जून 2017 (रेई): सन्त पापा फ्राँसिस ने भ्रष्टाचार को एक प्रकार की ईशनिन्दा निरूपित कर कहा है कि यह "मृत्यु की संस्कृति को जन्म देता है"।

"कोर्रोसियोन" अर्थात् भ्रष्टाचार शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक के प्राक्कथन में सन्त पापा फ्राँसिस ने लिखा है, "भ्रष्टाचार "ईशनिन्दा का एक प्रकार है," यह एक हथियार है, यह माफ़िया अपराधी संगठनों की सबसे आम भाषा है, अपराधियों द्वारा प्रयुक्त "एक" अन्तस्थ प्रक्रिया जो मृत्यु की संस्कृति को कायम रखती है।"  

भ्रष्टाचार पर प्रकाशित इस पुस्तक में वाटिकन स्थित अखण्ड मानव विकास सम्बन्धी परमधर्मपीठीय कार्यालय के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर टर्कसन के साथ भेंटवार्ता निहित है। पुस्तक का विमोचन गुरुवार को किया गया। इसमें भ्रष्टाचार के विनाशक परिणामों पर लोगों को आलोकित किया गया है जिसे सन्त पापा फ्राँसिस एक "अभिशाप" और एक "कैंसर" निरूपित करते हैं जो लोगों का जीवन नष्ट कर डालता है।

पुस्तक के प्रक्कथन में सन्त पापा प्रत्येक मनुष्य के ईश्वर के साथ, पड़ोसी के साथ तथा प्रकृति के साथ विद्यमान रिश्तों के टूट जाने की बात करते हैं।

सन्त पापा लिखते हैं, "जब मनुष्य ईमानदार होता है तब वह "जनकल्याण के लिये" ज़िम्मेदाराना जीवन व्यतीत करता है। दूसरी ओर, जिस व्यक्ति को रिश्वत दी जाती है वह "गिर" जाता है तथा उसका असमाजिक आचरण, लोगों के बीच सहअस्तित्व के स्तम्भों को तोड़कर, रिश्तों के मूल्यों को भंग कर डालता है।"

"भ्रष्टाचार", सन्त पापा लिखते हैं, "शोषण, मानव तस्करी तथा मादक पदार्थों एवं हथियारों  के अवैध व्यापार को जन्म देता है। यह सब प्रकार के अन्याय, अविकास, बेरोज़गारी एवं सामाजिक ह्रास का घर है। भ्रष्ट व्यक्ति क्षमा करना नहीं जानता, वह अन्यों के दुखों के प्रति उदासीन हो जाता और केवल अपना स्वार्थ सोचता है।"

सभी ख्रीस्तीयों एवं समस्त शुभचिन्तकों से सन्त पापा फ्राँसिस अपील करते हैं कि नवीन मानवतावाद के निर्माण में वे अपना योगदान दें। जीवन के यथार्थ सौन्दर्य के मर्म को समझें जो "कॉस्मेटिक उपसाधन" नहीं है बल्कि यथार्थ सौन्दर्य का केन्द्र है मानव व्यक्ति।








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