2017-06-14 15:21:00

हिंसा के खिलाफ और अधिकारों व सम्मान के लिए ख्रीस्तीय महिलाऐं


ढाका, बुधवार, 14 जून 2017 (फीदेस) : "बांग्लादेश में महिलाऐं हिंसा और प्रताड़ना में जीवन बिताती हैं और यह उन्हें उनकी गरिमा और मनुष्य के रूप में अधिकारों के उल्लंघन को महसूस करने से रोकता है। प्रतिदिन की प्रताड़ना उन्हें शिक्षा, काम और अन्य अवसरों से रोकता है।” उक्त बातें बांग्लादेशी ख्रीस्तीय कार्यकर्ता मरिया हलदार ने फीदेस से कहा, जिसने हाल ही में ढाका में "हिंसा के खिलाफ महिलाऐं" विषय पर हो रहे सेमिनार में भाग लिया।

"बांग्लादेश में महिलाओं पर हिंसा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संदर्भ में निहित है और सरकार के ढांचे, सामाजिक संस्थाऐं और कानून इसे जारी रखने के लिए मदद करते हैं। बांग्लादेश में महिलाओं पर अपने ही पतियों द्वारा हिंसा, घरेलू हिंसा, नाबालिगों के दुरुपयोग, यौन उत्पीड़न, बाल-विवाह, मानव तस्करी, शिशु मृत्यु दर, हत्या और दहेज के कारण हिंसा शामिल हैं।

ढाका में सेमिनार का आयोजन एशिया के ख्रीस्तीय सम्मेलन ने बांग्लादेशी कलीसियाओं के राष्ट्रीय परिषद के साथ मिलकर किया। नागर समाज के बहुत से कार्यकर्ताओं और स्थानीय ख्रीस्तीय समुदायों ने देश में लिंग भेद और हिंसा समाप्त करने के लिए कानून को लागू करने हेतु सरकार से मांग की। "कई सरकारी नीतियाँ और सेवाएँ लिंग भेद की प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करती हैं। हिंसा के विभिन्न रूपों के खिलाफ कानूनी सुरक्षा के बावजूद न्यायिक व्यवस्था को अभी भी उन बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है जो सुधार में बाधक हैं।"

हिंसा के खिलाफ एक्यूमेनिकल महिलाओं की कार्रवाई संगठन की प्रधान सुनीला अमार ने फीदेस को बताया, कि जबतक महिलाओं पर हिंसा जारी रहेगा एशिया के किसी भी देश में शांति कायम नहीं की जा सकती। यह लड़ाई नारीवाद या वैचारिक नहीं है, यह कानून और मानवता को संदर्भित करता है। उन्होंने इस बात पर गौर किया कि संयुक्त राष्ट्र के टिकाउ विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लैंगिक समानता और महिलाओं की पदोन्नति भी शामिल है। इसलिए वे कलीसियाओं के नेताओं से आग्रह करती हैं कि वे इस आवश्यक प्रतिबद्धता के प्रति जागरुक बनें तथा सार्वजनिक संस्थानों और सरकारों को संवेदनशील बनाने की चुनौती को स्वीकार करें।








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