2017-06-14 16:37:00

माता-पिता का प्रेम ईश्वर का प्रेम


वाटिकन सिटी, बुधवार, 14 जून 2017 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

हम प्रेम के बिना अपने आप में नहीं रह सकते हैं। हममें से हर कोई प्रेम पाने की चाह रखता है। हम बहुधा अपने में इस सोच के शिकार हो जाते कि जब तक हम अपने में मजबूत, सुन्दर और आकर्षक न हो तो कोई हमें प्रेम या हमारी चिंता नहीं करेगा। कई लोग हैं जो आज भी अपने इस बाह्य खालीपन को भरने का प्रयास करते हैं मानो यह अति आवश्यकता हो। संत पापा ने कहा कि क्या हम एक ऐसे संसार की कल्पना कर सकते हैं जहाँ लोग एक-दूसरे को अपनी ओर आकर्षित होने की कामना करते हों जबकि दूसरी ओर ऐसा कोई नहीं है जो स्वेच्छा और स्वतंत्रता पूर्वक किसी को प्रेम करने की चाह रखता हो। यह देखने में मानव संसार प्रतीत होता हो लेकिन यह वास्तव में एक नारकीय स्थिति है। मानव के जीवन में अकेलेपन की स्थिति उसके जीवन में बहुत से अहंकारों को जन्म देती है। इस अवर्णनीय व्यवहार के पीछे उसके जेहन में एक प्रश्न उठता है कि क्या मैं एक नाम से बुलाया नहीं जा सकता हूँॽ

एक युवा के रुप में प्रेम नहीं किये जाने का एहसास हिंसा के भाव उत्पन्न करता है। मानव समाज में बहुत सारी सामाजिक बुराइयों और घृणा के पीछे एक बात यह होती है कि कोई व्यक्ति समाज में अपनी एक पहचान बना पाने में अपने को असमर्थ पाता है। बच्चे अपने में खराब नहीं होते और न ही वयस्क अपने में बुरे होते हैं लेकिन हम उनमें असंतुष्टि के भाव को पाते हैं। यह प्रेम के आदान-प्रदान की कमी है जो हमें अपने जीवन में नाखुश करती है। मानव का जीवन नज़रों का विनिमय है, यदि कोई हमें देख कर मुसकुराता है तो हम उस मुस्कान का प्रति उत्तर स्वेच्छा से देते हैं जो हमें अपने बंद उदासी से बाहर निकलने में मदद करता है।

संत पापा ने कहा कि इस संदर्भ में ईश्वर अपनी ओर से पहल करते और हमें अपने शर्त हीन प्रेम की निशानी प्रदान करते हैं। वे हमें इसलिए प्रेम नहीं करते कि हम अपने में प्रेम के योग्य है। वे हमें प्रेम करते हैं क्योंकि वे स्वयं प्रेम हैं, उनका स्वभाव ही प्रेम करना है। संत पौलुस ईश्वर के प्रेम की चर्चा करते हुए रोमियों के नाम अपने पत्र में लिखते हैं, “हम पापी ही थे, जब मसीह हमारे लिए मर गये थे। इस से ईश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम का प्रमाण दिया” (रोमि.5.8)। हम ऊड़ाव पुत्र के समान पिता के प्रेम से “दूर” थे। “वह दूर ही था कि पिता ने उसे देख लिया और दया से द्रवित हो उठा...”(लूका. 15.20)। हमारे प्रेम के कारण ईश्वर अपने आप से बार निकलते और हमें खोजने आते हैं। वे हमारी गलतियों और पापों में पड़े रहने के बावजूद हमें प्रेम करते हैं।

संत पापा ने कहा कि माता-पिता के सिवाय कौन हमें ऐसा प्रेम करता है। माता अपने बेटे को तब भी प्रेम करती है जब वह कैदखाने में बंद रहता है। वह अपने में शर्म का अनुभव नहीं करती क्योंकि वह उसका पुत्र है। संत पापा ने कहा कि माता-पिता को अपनी संतान के कैदखाने में बंद होने के कारण कितना दुःख और अपमान का सामना करना होता है लेकिन वे अपनी संतान को प्रेम करना नहीं छोड़ते हैं। यह माता-पिता का प्रेम है जो हमें ईश्वर के प्रेम को समझने में मदद करता है। एक माँ मानवीय न्याय के निराकरण की माँग नहीं करती क्योंकि हर एक गलती की सज़ा होती है लेकिन वह अपने बेटे को दुःख की स्थिति में भी प्रेम करना नहीं छोड़ती है। उसके दोषी होने पर भी वह उससे प्रेम करती है। ईश्वर हमारे साथ भी ऐसा ही करते हैं क्योंकि हम उनकी प्रिय संतान हैं। वे हमें हमारी गलतियों के लिए सज़ा और श्राप नहीं देते हैं। यह हमारे लिए इस सत्य को प्रकट करता है कि प्रेम के इस संबंध में हम पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा में सदैव कृपा की दशा में रहते हैं। येसु ख्रीस्त में हम सभी प्रेम किये गये हैं, हम प्रिय हैं और पिता हमारी चिंता करते हैं। संत पापा ने कहा कि कोई तो है जो हमें मौलिक सुन्दरता से विभूषित करता है जिसे कोई भी पाप हम से पूर्ण रूपेण नहीं छीन सकता है। हम सदैव ईश्वर की आंखों से सामने रहते हैं जहाँ हमारे लिए जीवन की जलधारा प्रवाहित होती है। येसु ने समारी स्त्री से कहा, “जो पानी मैं तुम्हें दूंगा वह तुम में अनंत जीवन का स्रोत बन जायेगा (यो.4.14)

एक नाखुश व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन करने की दवा क्या हैॽ संत पापा ने कहा, एक व्यक्ति जो खुश नहीं है उसके जीवन को हम कैसे बदल सकते हैंॽ विश्वासी समुदाय ने कहा कि प्रेम के द्वारा। संत पापा ने विश्वासियों के जवाब हेतु धन्यवाद अदा करते हुए कहा कि हमें अपने प्रेम करने वाले को सर्वप्रथम गले लगाना है जिससे वे महत्वपूर्ण होने की अनुभूति प्राप्त करें और अपने दुःख से बाहर निकल सकें। प्रेम हमसे प्रेम की मांग करता है जो घृणा से अधिक शक्तिशाली है क्योंकि घृणा मृत्यु की ओर ले चलता है। येसु हमारे लिए मृत नहीं हैं वरन् वे हमारे लिए जीवित हैं उन्होंने हमें पापों से मुक्त किया है। यह हमारे लिए पुनरुत्थान का समय है जो हमें अपने निराश भरे क्षणों से बाहर निकलने को कहता, विशेषकर, उन्हें जो अपने में तीन दिनों से अधिक कब्र में पड़े हुए हैं। यह हमारे लिए आशा का संदेश और उपहार है कि पिता हम सभों को प्रेम करते हैं चाहे हम जैसे भी हों।  
इतना कहने के बाद संत पापा ने सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और उन्हें खुशी और शांति की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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