2017-06-12 16:50:00

सांत्वना बनावटी नहीं हो सकती, संत पापा फ्राँसिस


वाटिकन सिटी, सोमवार, 12 जून 2017 (आरईआई) : सोमवार 12 जून को वाटिकन स्थित प्रेरितिक निवास संत मर्था के प्रार्थनालय में संत पापा फ्राँसिस ने प्रातःकालीन ख्रीस्तयाग का अनुष्ठान किया। संत पापा ने अपने प्रवचन को सांत्वना के अनुभव पर केंद्रित करते हुए कहा कि सांत्वना दूसरों की सेवा हेतु ईश्वर की ओर दिया गया एक उपहार है। कोई भी खुद को सांत्वना नहीं दे सकता है, एसा होने से आईने में देखकर खुद को सांत्वना दे देता।

सांत्वना की विशेषता पर गौर करते हुए संत पापा ने कहा, ″19 लाइन के पहले पाठ पाठ में सांत्वना शब्द आठ बार आया है। उन्होंने कहा कि सांत्वना की पहली विशेषता "स्वायत्तता" नहीं है : सांत्वना का अनुभव एक आध्यात्मिक अनुभव है। इसे अनुभव करने के लिए हमें दूसरों की आवश्यकता होती है। कोई भी खुद को सांत्वना नहीं दे सकता, जो खुद को सांत्वना देता और दूसरों की आवश्यकता महसूस नहीं करता वह खुद में बंद हो जाता है और बढ़ने की सारे रास्ते बंद कर बनावटी सांत्वना से संतुष्ट रहता है।

संत पापा ने कहा, हम सुसमाचार में भी पाते हैं कि फरीसी और कानून के पंडित खुद में संतुष्टि पाते हैं। एक फरीसी ने मंदिर में यह करते हुए प्रार्थना की, ″मैं आपको धन्यवाद देता हूँ क्योंकि मैं इन लोगों के सदृश नहीं हूँ।″ संत पापा ने कहा कि यह व्यक्ति अपने आप को आइने में देखता था। अपने विचारों से बनी बनावटी आत्मा के लिए धन्यवाद दिया। येसु इस तरह के लोगों को जीवन और आत्मा की वास्तविकता दिखाना चाहते थे।

सांत्वना दूसरों की सेवा है।

संत पापा ने सांत्वना की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कहा, ″सबसे पहले ईश्वर हमें सांत्वना का दान देते हैं ताकि हम दूसरों की सेवा में इसका प्रयोग कर सकें। सच्ची सांत्वना की दो विशेषताएँ हैं यह एक दान है तथा सेवा भी। सेवा के लिए एक निर्मल हृदय की आवश्यकता है।

आशीर्वचन में हम पाते हैं जो अपने को दीन-हीन समझते हैं वे ही धन्य और खुश हैं। वे जो शोक करते हैं, जो दयालु हैं, जो मेल कराते हैं, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं इन लोगों के पास येसु सांत्वना के रुप में आते हैं और दूसरों को भी सांत्वना देने का प्रेरिताई कार्य सौंपते हैं। जबकि जिसका हृदय दूसरों के लिए बंद है, जो अपने आप से संतुष्ट हैं, उन्हें दूसरों की आवश्यकता नहीं है। उन्हें शोक करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे सोचते हैं कि उनके पास सांत्वना है। उन्हें अपने पापों से क्षमा मांगने की आवश्यकता महसूस नहीं होती जबकि उनका हृदय पाप के मलिन से भरा हुआ है। ऐसे लोगों का हृदय बंद है।

प्रवचन के अंत में संत पापा ने विश्वासियों को अपना हृदय प्रभु के लिए खोलने और सांत्वना का दान पाने हेतु पिता ईश्वर से प्रार्थना करने की प्रेरणा दी।








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