2017-06-07 15:15:00

“पिता हमारे” पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 07 जून 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।

येसु की प्रार्थना में कुछ तो अति आश्चर्यजनक करने वाली बात थी जिसके कारण शिष्यों ने उनसे एक दिन प्रार्थना करने हेतु सिखलाने का आग्रह किया। संत लूकस रचित सुसमाचार हमारे लिए येसु की प्रार्थना के रहस्य का वृतांत प्रस्तुत करता है। शिष्यों ने येसु के जीवन में इस बात को देखा था कि वे सुबह और शाम को एकांत में जाते और प्रार्थना में “लीन” हो जाते थे। येसु के जीवन की यह दिनचर्या उन्हें प्रभावित करती है और वे आग्रह करते हैं कि वे उन्हें भी प्रार्थना करने को सिखलाये।

इस तरह येसु हमें अपने पिता के पास प्रार्थना करने को सिखलाते हैं जो ईसाइयों की एक प्रार्थना “पिता हमारे” बन जाती है। संत पापा ने कहा कि वास्तव में संत मत्ती की तुलना में संत लूकस हमें येसु की प्रार्थना का एक छोटा रूप देते हैं जो “पिता” की पुकार से शुरू होती है।

संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय प्रार्थना का रहस्य इस बात में समाहित है कि हम ईश्वर को पिता कह कर पुकारने का साहस करते हैं। यूख्रारिस्त धर्मविधि के दौरान येसु द्वारा सिखलाई गई प्रार्थना को एक समुदाय के रुप में करने के पूर्व हम इस तथ्य की घोषणा करते हैं, “हम यह कहने का साहस करते हैं...”

संत पापा ने कहा कि हम अपने में ईश्वर को “पिता” कह कर बुलाने के योग्य नहीं हैं। हमें ईश्वर को उनकी सर्वशक्तिमत्ता के अनुसार और अधिक आदरसूचक संबोधन करने की जरूरत है लेकिन उन्हें “पिता” कह कर पुकारना हमें एक विश्वास के संबंध में संयुक्त करता है मानों एक अबोध बालक अपने पिता की ओर अभिमुख होता हो क्योंकि वह अपने में विश्वस्त है कि पिता प्रेम में उसकी चिंता करते हैं। संत पापा ने कहा कि ख्रीस्तीय धर्म के अनुसार हम यहाँ दुनिया के सामने मानव की धार्मिकता में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य को रखते हैं जो अपने में एक महान क्रांति है। ईश्वर का रहस्य जो हमें सदैव आश्चर्यचकित करता और हमें अपने में नगण्य होने की अनुभूति प्रदान करता है लेकिन यह हमें अपने ईश्वर के सम्मुख आने से भयभीत नहीं करता और न ही हम हतोत्साहित और अपने में दुःख का अनुभव करते हैं। उन्होंने कहा कि यह एक हमारे हृदय के लिए एक मुश्किल क्रांति है क्योंकि पुनरुत्थान की घटना में जहाँ नरियों ने कब्र को खुला और वहाँ स्वर्ग दूतों के बैठा पाया तो “वे आश्चर्यचकित हो कर काँपती हुई वहाँ से निकल कर भाग गयीं और उन्होंने डर के मारे किसी से कुछ नहीं कहा।” (मारकु16.8) लेकिन येसु हमें इस बात को प्रकट करते हैं कि ईश्वर एक अच्छे पिता हैं अतः “हमें उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं है।”

संत पापा ने कहा कि हम करुणावान पिता के दृष्टांत पर चिंतन करें।(लूका.15.11-32) इसके द्वारा येसु हमें उस पिता के बारे में कहते हैं जिनके हृदय में अपने बच्चों के लिए सिर्फ स्नेह है। वे अपने बेटे को उसके घमंड की सज़ा नहीं देते हैं। वे उसे उसकी संपत्ति का हिस्सा दे देते और घर से दूर जाने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। येसु हमें कहते हैं कि ईश्वर पिता के सामन हैं लेकिन मानवीय पिता के समान नहीं क्योंकि दुनिया में कोई ऐसा पिता नहीं है जो उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत के पिता की तरह पेश आयेगा। ईश्वर अपने में उस पिता के समान हैं जो हम मानव की स्वतंत्रता के सम्मुख निःसहाय हैं, वे अपने में केवल “प्रेम” रूपी क्रिया को जानते हैं। इस तरह जब घर से दूर गया हुआ पुत्र अपनी धन संपत्ति उड़ा कर अंत में वापस घर लौट कर आता तो वह पिता मानवीय व्यवहार के अनुसार उसका न्याय नहीं करते हैं लेकिन वे सर्वप्रथम उसकी गलतियों को क्षमा करते की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। वे अपने आलिंगन द्वारा उस पुत्र को इस बात का एहसास दिलाते हैं कि उसकी अनुपस्थिति उनके लिए कितना दुखदायी रही। संत पापा ने कहा कि यह हमारे ईश्वर का अपने बच्चों हेतु प्रेम का एक गूढ़़ रहस्य प्रकट करता है जिसकी गहराई हम कभी माप नहीं सकते हैं।

यही कारण है कि प्रेरित संत पौलुस रोमियों और गलातियों के नाम अपने पत्र में येसु के द्वारा उपयोग किये गये शब्द “अब्बा” को ज्यों का त्यों रखते हैं (रोमि. 18.5, गला.4.6) क्योंकि यह पिता और संतान के बीच की घनिष्ठ को प्रदर्शित करता है।

संत पापा ने कहा कि हम अपने में कभी अकेले नहीं हैं। हम अपने में ईश्वर के बिना, उनसे दूर और उनसे क्रोधित हो सकते हैं लेकिन येसु सुसमाचार में हमें इस बात से स्पष्ट कराते हैं कि वे हमारे बिना नहीं रह सकते हैं। वे “मानव के बिना” एक ईश्वर कभी नहीं हो सकते। संत पापा ने जोर देते हुए कहा, “वे हमारे बिना नहीं रह सकते, वे मानव के बिना नहीं रह सकते जो कि एक महान रहस्य है...। यह हमारे लिए निश्चय ही आशा का स्रोत है जो पिता की पुकार में सदैव बना रहता है। जब हमें सहायता की जरूरत होती है तो येसु हमें विश्वास में अपने पिता की ओर उन्मुख होने को कहते हैं। हमारे जीवन की सारी आवश्यकताएं जैसे कि भोजन, स्वास्थ्य, कार्य, क्षमा प्राप्ति और परिक्षाओं से बचे रहना हमारे अकेलेपन में नहीं वरन पिता की प्रेम भरी नज़रों में सदैव पूरी होती है क्योंकि वे हमें जीवन में कभी नहीं छोड़ते हैं।

अपनी धर्मशिक्षा के अंत में संत पापा ने कहा कि मैं आप सभों से निवेदन करना चाहता हूँ, हमारे जीवन में बहुत सारी तकलीफ़ें और आवश्यकताएं हैं। आइए हम थोड़ी देर मौन रह कर उन पर चिंतन करें। हम उस पिता के बारे में, हमारे स्वर्गीय पिता के बारे में भी विचार करें जो हमारे बिना कभी नहीं रह सकते, जो अभी भी हमें देख रहे हैं। आइए हम सब मिलकर विश्वास और आशा में उसी पिता के पास प्रार्थना करें। इतना कहने के बाद संत पापा ने विश्वासी समुदाय के साथ “हे पिता हमारे” की प्रार्थना की और तदोपरान्त उन्होंने सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन किया और सभों को शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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