2017-06-03 15:23:00

गड़ेरिये ईश प्रजा की सेवा विनम्रता से करें, संत पापा


वाटिकन सिटी, शनिवार, 3 जून 2017 (वीआर सेदोक): येसु ने अपनी भेड़ों को पेत्रुस को सौंपा जो अन्य ग्यारह शिष्यों से अधिक पापी था तथा उसकी गलती एवं पापों के बावजूद उसे निमंत्रण दिया कि वह ईश प्रजा की देखभाल दीनता एवं प्रेम से करे। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने शुक्रवार को वाटिकन स्थित प्रेरित आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही। 

संत पापा ने प्रवचन में संत योहन रचित सुसमाचार से लिए गये पाठ पर चिंतन किया जहाँ पुनर्जीवित येसु उस झील के किनारे पेत्रुस से मुलाकात करते हैं जहाँ उन्होंने पहली बार उनसे मुलाकात की थी। (यो. 21:15-19)

संत पापा ने कहा कि यह मित्रों के बीच एक शांत बातचीत थी तथा पुनरूत्थान के बाद की गयी थी। इस घटना में येसु ने पेत्रुस से तीन सवाल करते हुए उन्हें अपनी भेड़ों को सौंप दिया था।

संत पापा ने कहा, ″येसु ने अपने प्रेरितों में से सबसे पापी को चुना। येसु को छोड़कर दूसरे सभी भाग गये थे किन्तु पेत्रुस ने उन्हें अस्वीकार किया था कि मैं उन्हें नहीं जानता हूँ। जिसके कारण येसु ने उन्हें प्रश्न किया, ″क्या तुम मुझे इनसे अधिक प्यार करते हो?″  

संत पापा ने कहा कि अपनी भेड़ों के गड़ेरिये के रूप में येसु द्वारा बारहों में सबसे पापी का चयन, हमें चिंतन हेतु प्रेरित करता है। उन्होंने धर्मगुरूओं से कहा, ″एक विजेता की तरह अपना सिर ऊँचा करके एक गड़ेरिये को कार्य नहीं करना है बल्कि उसे विनम्रता एवं प्रेम से येसु के समान सेवा देना चाहिए। यही मिशन येसु ने संत पेत्रुस को सौंपा। संत पापा ने कहा कि अपनी गलतियों एवं पापों के बावजूद उसने प्रेम से अपने कार्य को पूरा किया।

संत पापा ने याद किया कि पेत्रुस किस तरह येसु को महायाजकों के सामने अस्वीकार किया था किन्तु जब येसु की नजर उस पर पड़ी तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। संत पापा ने कहा कि वह एक ऐसा शिष्य था जिसने अस्वीकार करने का साहस किया किन्तु उसके लिए आँसू बहाकर पश्चाताप भी किया। उसके बाद सारा जीवन प्रभु की सेवा में बिताया। उनके जीवन का अंत प्रभु के समान क्रूस पर हुआ फिर भी उसने कभी घमंड नहीं किया। उन्होंने येसु के समान सीधा नहीं बल्कि सिर नीचे एवं पैर ऊपर करके क्रूसित किये जाने की मांग की तथा कहा कि मैं प्रभु नहीं किन्तु उनका सेवक हूँ। संत पापा ने संत पेत्रुस के जीवन से प्रेरणा लेने की सलाह देते हुए कहा कि हम प्रभु से शांत रहकर मित्रता पूर्ण वार्ता करें। ईश्वर प्रदत्त प्रतिष्ठा के लिए अपना सिर अवश्य ऊँचा करे किन्तु अपनी कमजोरियों का एहसास करते हुए उसे झुकाना भी सीखें क्योंकि मात्र येसु ही प्रभु हैं और हम सभी उनके सेवक। 








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