2017-05-15 15:38:00

मुसलमानों द्वारा बांग्लादेश के पहाड़ियों में प्रोटेस्टेंट गिरजाघर में हमला


ढाका, सोमवार, 15 मई 2017 (वीआर सेदोक) : बंगाली मुस्लिमों के एक समूह ने बांग्लादेश के चित्तागोंग हिल ट्रैक्टस के एक दूरदराज इलाके में एक प्रोटेस्टेंट गिरजाघर पर हमला किया और दो आदिवासी ख्रीस्तीय छात्रों का बलात्कार करने का प्रयास किया।

पादरी स्टेफन त्रिपुरा ने ऊका समाचार को बताया कि 10 मई की रात को खागराछारी जिले के दर्जन से अधिक मुसलमानों ने सेवेंथ डे अडवेंटिस्ट गिरजाघर में पथराव किया।

उन्होंने गिरजाघर के दरवाजे को लाथ मार कर तोड़ दिया और गिरजाघर में घुस आये। उन्होंने मेरी बहन और मेरी भतीजी जो वहीं रहती हैं, के कपड़े फाड़ दिये और उनका बलात्कार करने की कोशिश की। उनका रोना और चिल्ला सुनते ही स्थानीय ख्रीस्तीय उन्हें बचाने आये और उन्हें देखकर हमलावर भाग गए।

उन्होंने कहा कि उसकी बहन और भतीजी वहाँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए आई थी पर अब उन्हें बहुत बड़ा आघात पहुँचा है।

पादरी ने कहा कि वहाँ के ख्रीस्तीयों का स्थानीय मुस्लिमें के साथ कोई भी समस्या नहीं है परंतु वे संदेह करते हैं कि यह हमला भूमि विवाद की वजह से हुई है।

वे यहाँ दो वर्षों से काम कर रहे हैं पर मुसलमानों के साथ कोई समस्या नहीं हुई थी। उसे मालुम हुआ कि मुसलमानों और ख्रीस्तीयों के बीच एक अनसुलझी भूमि विवाद थी।

कलीसिया के अधिकारियों ने एक शिकायत दर्ज की, लेकिन आपराधिक मामले की नहीं। पादरी त्रिपुरा ने कहा, "हमने स्थानीय मुस्लिमों को परेशान करने और अधिक हिंसा को आमंत्रित करने के डर के लिए एक मामला दर्ज नहीं किया है।"

दिघीनाला पुलिस थाने के प्रभारी मिजानुर रहमान ने सांप्रदायिकता के आरोपों को दूर कर दिया।

रहमान ने उका समाचार से कहा,"हम घटना के बाद गए थे और यह एक सांप्रदायिक या ख्रीस्तीयों पर हमला नहीं लगता, बल्कि एक व्यक्तिगत मुद्दा है। बहरहाल, हम गिरजाघर की सुरक्षा के बारे में चिंतित हैं क्योंकि हम सभी धार्मिक पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए हैं। "

बांग्लादेश का एकमात्र पर्वतीय क्षेत्र चितगोंग पहाड़ी इलाका है जिसमें 12 जातियों के आदिवासी रहते हैं जो ज्यादातर बौद्ध हैं और कुछ ख्रीस्तीय हैं।

1970 के बाद से तनाव पैदा हो गया है जब सरकार ने स्थानीय जनसांख्यिकी को बदलकर आदिवासियों की भूमि को हड़प कर भूमिहीन बंगाली मुसलमानों को बैठाना शुरू कर दिया था। आदिवासियों ने इसका विरोध किया और वापस जमीन पाने हेतु लड़ने के लिए एक मिलिशिया समूह का गठन किया।

सरकार ने आदिवासियों के 20 वर्षों से चल रहे गुरिल्ला युद्ध के विरोध को रोकने के लिए इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सैन्य बल तैनात किया जो 1997 में शांति समझौते के साथ समाप्त हुआ।








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