2017-05-10 16:03:00

मौत की सजा पर ख्रीस्तीयों में मतभेद


नई दिल्ली, बुधवार, 10 मई 2017 (वीआर सेदोक) : भारत में सामाजिक कार्यकर्ता और कलीसिया के नेताओं में सन् 2012 में नई दिल्ली में चलती बस में एक छात्रा के साथ गिरोह बलात्कार के आरोप में दोषी चार लोगों के लिए मौत की सजा को लेकर मतभेद हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को नई दिल्ली के शहर अदालत के सन् 2013 में दिये गये मूल निर्णय को बरकरार रखा। अदालत ने उनके अपराध को "बर्बरतापूर्ण हवस" बताया।

अदालत ने मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर को 23 वर्षीय पीड़िता के साथ सामूहिक बलात्कार करने, उसे एक लोहे के पाइप से हमला करने और बाद में उसे सड़क के किनारे फेंक देने के अपराध में सन् 2013 में दोषी ठहराया था।

दो सप्ताह बाद सिंगापुर के एक अस्पताल में पीड़ित व्यक्ति की मौत हो गई, जहां उसे स्थानांतरित किया गया था।

इस अपराध में छह लोग शामिल थे। उनमें से एक, राम सिंह, परीक्षण अवधि के दौरान जेल में मर गया। एक अन्य अपराधी किशोर था जब उसने अपराध किया था और एक सुधारक गृह में सजा काटने के बाद सन् 2015 में उसे बरी किया गया।

इस घटना की बर्बरता ने पूरे देश में आक्रोश फैला दिया, जिससे संघीय सरकार को बलात्कार के खिलाफ और गंभीर कानून बनाने के लिए मजबूर किया गया और जेल में 10 साल की अधिकतम सजा को मृत्यु दंड में बदल दिया गया।

मृत्यु दंड पर विभाजित राय :

एक महिला कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने उका समाचार को बताया कि यह फैसला "ऐतिहासिक" था और यह "सभी लोगों को एक संदेश भेजता है कि महिलाओं के प्रति गलत मानसिकता एक अपराध है।"

उतरी भारत की कलीसिया के संयुक्त महिला कार्यक्रम की निदेशिका ज्योत्साना चटर्जी ने उका समाचार से कहा कि यह फैसला उचित था। हालांकि, उसने इस मामले में दोषी किशोर को कम सजा देकर बरी कर दिये जाने पर अपनी असहमति दिखाते हुए कहा,  "मैं उसे किशोर सुधारक गृह में मिली थी और उसे अपने गलत काम पर कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि वह अपने काम से बहुत खुश था।"

अल्पसंख्यक आयोग के एक पूर्व सदस्य ए.सी. माइकेल ने उका समाचार को बताया कि वे इस फैसले का समर्थन करते हैं। "हालांकि कलीसिया मौत की सज़ा के खिलाफ है, पर इस मामले में अपराध की क्रूरता के कारण उचित हो सकता है।"

दिल्ली महाधर्मप्रांत के प्रवक्ता फादर सावरी मुथु शंकर ने कहा कि फैसले को "सार्वजनिक भावनाओं" से परिलक्षित किया गया, तथापि अपराधियों को "खुद को सुधारने का मौका दिया गया होता।" उन्होंने मौत की सजा के खिलाफ काथलिक कलीसिया के निर्णय को दुहराते हुए कहा, ″एक व्यक्ति को खुद को सुधारने हेतु अवसर देने में कोई बुराई नहीं है।″

भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के एक अधिकारी सामुएल जयकुमार ने उका समाचार को बताया कि इस मामले में अपराधियों द्वारा की गई क्रूरता के बारे में कोई संदेह नहीं है और उन्हें बहुत कठोर सजा मिलनी चाहिए थी लेकिन मृत्यु दंड नहीं।″








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