2017-05-09 11:37:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ, 84 वाँ भजन


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"विश्वमण्डल के प्रभु! कितना रमणीय है तेरा मन्दिर! प्रभु का प्राँगण देखने के लिये मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उल्लास के साथ तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ। गौरया को बसेरा मिल जाता है, अबाबील को अपने बच्चों के लिये घोंसला। विश्व मण्डल के प्रभु! मेरे राजा! मेरे ईश्वर! मुझे तेरी वेदियाँ प्रिय हैं।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 84 वें भजन के प्रथम पद। विगत सप्ताह हमने इन्हीं पदों के पाठ से पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 84 वाँ भजन 12 पदों वाला  भजन है जिसमें तीर्थयात्राओं में गाया जानेवाला गीत निहित है। इसमें इस तथ्य को प्रकाशित किया गया है कि हज़ार दिनों तक कहीं और रहने की अपेक्षा एक दिन ईश्वर के प्राँगण में व्यतीत करना अत्यन्त सुखद और रमणीय है।

84 वें भजन के इन पदों के पाठ के उपरान्त हमने आपका ध्यान इस बात की ओर आकर्षित कराया था कि प्राचीन व्यवस्थान के युग में नववर्ष सितम्बर माह के अन्तिम दिनों में पड़ता था और यह एक धार्मिक पर्व हुआ करता था जिसे बड़ी धूमधाम से लोग मनाया करते थे। खुशहालियाँ मनाने के अतिरिक्त, यह एक गहन आध्यात्मिक और पवित्र दिन हुआ करता था, इसलिये कि इसी दिन लोग सृष्टिकर्त्ता ईश्वर की चमत्कारिक रचनाओं पर चिन्तन करते तथा उनके लिये ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया करते थे। वे उसी प्रकार प्रभु ईश्वर का स्मरण किया करते थे जैसा कि उत्पत्ति ग्रन्थ के पहले अध्याय के पहले पद में किया गया है, "प्रारम्भ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।" इस प्रकार इस्राएल के लोग यह याद किया करते थे कि प्रभु ईश्वर सृष्टिकर्त्ता हैं, वे सबकुछ को अनवरत नया करते रहते हैं। वस्तुतः, सितम्बर माह का अन्त तथा अक्टूबर माह का आरम्भ कृषि वर्ष का भी आरम्भ हुआ करता था और अपनी फसलों में लोग प्रभु ईश्वर के प्रेम के दर्शन किया करते थे।

इस्राएली लोग सृष्टि की रचना के पर्व को मनुष्य के प्रति प्रभु ईश्वर के असीम प्रेम एवं उनकी महती दया के पर्व रूप में भी मनाते थे। इसीलिये यह पर्व "दया और क्षमा" का भी पर्व कहलाता था और इसी अवसर पर वे 84 वें भजन के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत गीत को गाया करते थे। वे कहते हैं, "विश्वमण्डल के प्रभु! कितना रमणीय है तेरा मन्दिर! प्रभु का प्राँगण देखने के लिये मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उल्लास के साथ तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ।"       

नववर्ष इस्राएल के लिये प्रभु से वर्षा के आने के लिये प्रार्थना का दिवस था। इस दिन लोग अनुनय-विनय करते थे कि वर्षा के पानी से सूखी हुई भूमि फिर से उर्वरक बन जाये। उन्होंने उसे प्रभु की सृष्टि पर मनन-चिन्तन का दिन माना था क्योंकि उनका विश्वास था कि जिस तरह गौरया को बसेरा मिल जाता है उसी प्रकार मनुष्य भी प्रभु ईश्वर का कृपा पात्र बनेगा।  पवित्रआत्मा के सामर्थ्य से इस्राएल के कठोर हृदय भी नवजीवन प्राप्त करेंगे।   

आगे, 84 वें भजन के 05 से लेकर 08 तक के पदों में तीर्थयात्री इस तरह ईश्वर का गुणगान करते हैं, "तेरे मन्दिर में रहने वाले धन्य हैं! वे निरन्तर तेरा स्तुतिगान करते हैं। धन्य हैं वे जो तुझसे बल पाकर तेरे पर्वत सियोन की तीर्थयात्रा करते हैं। वे सूखी घाटी पार करते हुए उसे निर्झर भूमि बनाते हैं – प्रथम वर्षा उसे आशीर्वाद प्रदान करती है। चलते-चलते उनका उत्साह बढ़ता है और वे सियोन में प्रभु के सामने उपस्थित होते हैं।"

श्रोताओ, ईश्वर ने अपने शब्द मात्र से स्वर्ग और पृथ्वी दोनों की रचना की। उन्होंने सृष्टि एवं मानव दोनों की सुधि ली। यह वास्तव में एक अनुपम रहस्य है जिसके विषय में नवीन व्यवस्थान भी साक्ष्य देता है। नवीन व्यवस्थान प्रभु येसु ख्रीस्त में पिता ईश्वर के कार्यों को पूरा होते हुए दर्शाता है। प्रेरित चरित ग्रन्थ के तीसरे अध्याय के 20 वें एवं 21 वें पदों में हम पढ़ते हैं, "तब वह पूर्वनिर्धारित मसीह को, अर्थात् ईसा को आप लोगों के पास भेजेगा। यह आवश्यक है कि वह उस विश्वव्यापी पुनरुद्धार के समय तक स्वर्ग में रहें, जिसके विषय में ईश्वर प्राचीन काल से अपने पवित्र नबियों के मुख से बोले हैं।" 

श्रोताओ, 84 वें भजन में हमारे समक्ष इस्राएल के पुरुषों, स्त्रियों, माता-पिताओं एवं उनकी सन्तानों सहित सम्पूर्ण परिवारों का दृश्य प्रस्तुत किया गया है जो अपने घरों एवं गाँवों को पीछे छोड़कर जैरूसालेम की पहाड़ी की चोटी तक पहुँचने के लिये चलते चले जा रहे हैं। उनके हृदय हर्षोल्लास से परिपूर्ण हैं। वे मन्दिर के प्राँगण तक पहुँचने के लिये आतुर हैं ताकि प्रभु ईश्वर के दर्शन पा सकें क्योंकि वहीं वे जीवन्त ईश्वर के दर्शन कर पायेंगे। यह सत्य उनपर प्रकट हो चुका था कि केवल जीवन्त ईश्वर ही सृष्टि के चक्र का अनवरत सृजन किया करते हैं। इस्राएल की तपती गर्मी से निर्जीव हुई सृष्टि को तथा ईश प्रेम के विरुद्ध खड़े होने वाले मनुष्यों के कठोर हृदयों को वे ही नवजीवन प्रदान कर सकते हैं। वस्तुतः, श्रोताओ, "गौरया को बसेरा मिल जाता है, अबाबील को अपने बच्चों के लिये घोंसला", यह कहकर भजनकार ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहा है कि गौरेया जीवन का प्रतीक है। उसके अण्डों से नया जीवन, एक नई पीढ़ी उत्पन्न होती है और जिस प्रकार वह अपने बच्चों के लिये घोंसले का इन्तज़ाम कर लेती है उसी प्रकार प्रभु ईश्वर भी अपने द्वारा सृजित मनुष्य की देख-रेख करते हैं। भजनकार ने यहाँ कहना चाहा है कि जो लोग अपने दैनिक जीवन में प्रभु के रास्ते चलते हैं उनमें अनवरत नवजीवन का संचार होता रहता है। भजनकार हमसे आग्रह करता है कि हम उत्पत्ति ग्रन्थ के नूह का अनुसरण करें। इस ग्रन्थ के  छठवें अध्याय के नवें पद के अनुसार: "नूह सदाचारी था तथा ईश्वर के मार्ग पर चलता था।"








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