2017-05-08 16:09:00

झारखंड सरकार पर आदिवासी पहचान पर हमला करने का आरोप लगा


नई दिल्ली, सोमवार, 8 मई 2017 (ऊका समाचार) : भारत के झारखण्ड राज्य में सरकार द्वारा एक कॉलेज के नाम को एक हिन्दू राष्ट्रवादी के नाम में परिवर्तित करने के बाद से राज्य में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी है। कलीसिया एवं मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने आरोप लगाया है कि आदिवासियों की पहचान को ख़त्म करने के लिये सरकार ने ऐसा किया है।

17 अप्रैल को झारखण्ड सरकार ने राज्य के विख्यात राँची कॉलेज का नाम बदल कर इसे डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय का नाम दे दिया था। इसी के बाद से विरोध प्रदर्शन शुरु हो गये हैं।

डॉक्टर मुखर्जी ने सन् 1951 ई. में राष्ट्रवादी भारतीय जन संघ की स्थापना की थी। संघ एक हिन्दू राष्ट्रवादी आन्दोलन है जिसे भाजपा का पूर्वाद्ध माना जाता है।

नई दिल्ली में केन्द्रीय सरकार तथा कई राज्यों में भाजपा के सत्ता में जाने के बाद से हिन्दू चरमपंथी दल भारतीय आदिवासियों और दलितों की उपेक्षा करते आ रहे हैं। वे भारत को एक हिन्दू प्रभुता वाला देश बनाने का जी जान से प्रयास कर रहे हैं।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन की आदिवासी प्रेरिताई संबंधी समिति के अध्यक्ष एवं सिमडेगा धर्मप्रांत के धर्माध्यक्ष विन्सेन्ट बरवा ने ऊका समाचार से कहा, "सरकार का कदम पूरी तरह से अस्वीकार्य है, हम इसका विरोध करते हैं।"  

धर्माध्यक्ष बरवा जो स्वयं एक आदिवासी हैं और उरांव जाति से आते हैं, ने कहा, ″बाहर के लोग आदिवासी समुदायों की पहचान के विरुद्ध लिये गये राज्य सरकार के फैसले और परिणामों के असर को पूरी तरह समझ नहीं सकते हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र में सरकार ने कई आदिवासी नायकों में से एक के नाम पर कॉलेज का नाम बदलने पर विचार भी नहीं किया, जिन्होंने स्वदेशी भूमि और पहचान की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान किया था।"

आदिवासी छात्र नेता आकाश कच्छप ने उका समाचार से कहा कि वे सरकार से स्थानीय आदिवासी नेता के नाम पर कॉलेज का नाम देना चाहते हैं पर यह सरकार हिंदू विचारधाराओं को आदिवासी लोगों पर थोपने के प्रयास में लगी है।

सन् 1926 में रांची कॉलेज की स्थापना हुई और 2015 में इसे विश्वविद्यालय बनाया गया। विश्वविद्यालयके रुप में यह राज्य का पहला कॉलेज है। इसमें करीब 4,000 स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र हैं।

जमशेदपुर में जेसुइट-प्रबंधित जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के एनाबेल बेंजामिन बड़ा ने उका समाचार से कहा कि सरकार का कदम "आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि यह आदिवासी पहचान को नष्ट करने और आदिवासी लोगों को लूटने हेतु अन्य लोगों के लिए रास्ता साफ करने के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रही है।"

नवम्बर 2016 में सरकार ने विकास के नाम पर राज्य को पारंपरिक आदिवासी भूमि को लेने में मदद करने के लिए दो कानूनों को बदल दिया।

बड़ा ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों के नामों को बदलने से लोग ऐतिहासिक नेताओं के नामों को स्वीकार करते हैं। कॉलेज का नाम बदलना " छोटी घटना हो सकती है लेकिन संदेश स्पष्ट है। वे आदिवासी पहचान को समाप्त करना चाहते हैं।″








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