2017-05-06 16:47:00

औपचारिकता और पुरोहितवाद के प्रलोभन से दूर रहें, संत पापा


वाटिकन सिटी, शनिवार, 6 मई 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने शनिवार, 6 मई को कम्पानेल्ला के पोसिल्लीपो परमधर्मपीठीय समिनरी के गुरूकुल छात्रों, पुरोहितों एवं धर्माध्यक्षों से मुलाकात की।

सेमिनरी की स्थापना 1912 ई. में संत पापा पीयुस दसवें ने की थी तथा उसे जेस्विट पुरोहितों की देखरेख में समर्पित किया था।

संत पापा ने सेमिनरी के सभी प्रशिक्षकों को सम्बोधित कर कहा कि संत इग्नासियुस की शिक्षा पद्धति के अनुसार धर्मप्रांतीय पुरोहित को आध्यात्मिक प्रशिक्षण देना उनका मिशन है। उन्होंने कहा, ″निश्चय ही, यह चुनौतीपूर्ण है किन्तु उत्साहवर्धक भी, जिसकी जिम्मेदारी है भावी पुरोहित के मिशन को दिशा देना। संत इग्नासियुस की पद्धति के अनुसार शिक्षा देने का अर्थ है येसु ख्रीस्त को केंद्र मानते हुए व्यक्ति को सामंजस्यपूर्ण आत्मसात करने हेतु प्रोत्साहन देना।″ उन्होंने कहा कि यह प्रभु के साथ संबंध को महत्व देना है जो हमें मित्र पुकारते हैं। यह संबंध बुलाहट को मजबूत एवं प्रगाढ़ बनाता किन्तु अव्यवस्थित आध्यात्मिकता में पड़ने नहीं देता। यह इसीलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें अपने आपको निरंतर जानने, स्वीकार करने एवं सुधारने की आवश्यकता है अतः सुधार करने से नहीं थकना चाहिए।

संत पापा ने बुलाहट की यात्रा को समझाने हेतु सिमोन पेत्रुस एवं प्रथम शिष्य का उदाहरण देते हुए कहा कि यह उनके प्रेम एवं मित्रतापूर्ण वार्ता के आस-पास घूमती है। हम येसु में मसीह को देखें जो हमारे जीवन के स्वामी हैं और वे हमें नया नाम प्रदान करते हैं। येसु के साथ मित्रता हमारी बुलाहट को घेर लेती तथा हमारी प्रेरिताई का पथ प्रशस्त करती है, जिसकी रक्षा पिता हमेशा करते हैं।

संत पापा ने कहा कि नये नाम हमें प्रत्यक्ष बनाते हैं। उन्होंने कहा कि चीजों को नाम लेकर पुकारना आत्मज्ञान का प्रथम चरण है और इस प्रकार, हम अपने मन में ईश्वर की इच्छा को पहचानते हैं।

संत पापा ने सभी गुरूकुल छात्रों को सम्बोधित कर कहा, ″चीजों को नाम लेकर पुकारने से न डरें, अपने जीवन की सच्चाई को देखने, उन्हें पारदर्शिता एवं सच्चाई के सामने खोलने से भयभीत न हों, विशेषकर, प्रशिक्षकों के सामने। औपचारिकता और पुरोहितवाद के प्रति झुकाव, दोहरी जिंदगी का मूल है।

संत पापा ने आत्म परख पर जोर देते हुए कहा कि सेमिनरी का समय, आत्मपरख का समय है। एक पुरोहित को सच्ची आत्मपरख का व्यक्ति बनना चाहिए क्योंकि वह विश्वासियों का नेतृत्व करता है अतः उसे समय के चिन्ह को पहचानना एवं भीड़ की उलझी आवाज में ईश्वर की पुकार को सुन सकना चाहिए। संत पापा ने आत्म परख अच्छी तरह कर पाने के लिए ईश वचन को सुनने की सलाह दी, साथ ही साथ, अपने अंदर की भावनाओं एवं डर के साथ अपने आपको जानने की आवश्यकता बतलायी। आत्मपरख के व्यक्ति बनने के लिए साहस की जरूरत है ताकि हम सच्चाई को स्वीकार कर सकें।

संत पापा ने आत्म परख को सीखने का अर्थ कठोर नियमों के संरक्षण में जाने के प्रलोभन से बचना बतलाया।

संत इग्नासियुस की शिक्षा अनुसार पुरोहितों के निर्माण हेतु अगला उपाय संत पापा ने बतलाया कि ईश्वर के राज्य के लिए हमेशा खुला होना। उत्तम करने हेतु प्रभु एवं भाइयों के लिए अधिक देने की चाह रखना जो उनके प्रशिक्षण को विस्तृत बनायेगा। वे मानवीय एवं आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करें। ईश राज्य की खोज करें। ईश राज्य की खोज करने का अर्थ है धार्मिकता की खोज करना, समुदाय के साथ अच्छा संबंध बनाना, सच्चे न्याय के लिए लालायित होना और अच्छाई की ओर अग्रसर होने हेतु आंतरिक स्वतंत्रता में बढ़ना।

संत पापा ने स्मरण दिलाया कि बुराई पैकेट से होकर प्रवेश करती है तथा घमंड की ओर बढ़ती है और सब कुछ का अंत कर देती है। युवा जिन्होंने पुरोहिताई का रास्ता चुना है उन्हें येसु से मित्रता बढ़ाने की आवश्यकता है, अपनी सादगी द्वारा ग़रीबों के प्रति स्नेह में बढ़ना है। संत पापा ने माता मरियम एवं संतों से प्रार्थना की कि उनकी बुलाहट की यात्रा आनन्द एवं निष्ठा से पूर्ण हो।








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