2017-05-04 16:52:00

कलीसिया रास्ते पर, आनन्द के साथ, लोगों की परेशानियों को सुनते हुए


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 4 मई 2017 (वीआर सेदोक): कलीसिया को हमेशा चलते हुए, लोगों को सुनते और आनन्द के साथ आगे बढ़ना चाहिए। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में बृहस्पतिवार को ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही।

प्रवचन में उन्होंने प्रेरित चरित से लिए गये पाठ पर चिंतन करते हुए कहा, ″कलीसिया के सम्पूर्ण इतिहास का सारांश प्रेरित चरित के प्रथम आठ अध्यायों में निहित है। धर्मशिक्षा, बपतिस्मा, मन-परिवर्तन, चमत्कार, अत्याचार, आनन्द और उन लोगों का पाप जिन्होंने अपने व्यापार के लिए कलीसिया को माध्यम बनाया। अपने को कलीसिया के शुभचिंतक बताने वाले अनानियस और सोफिया ने अंततः कलीसिया को धोखा दिया।″

संत पापा ने अपने प्रवचन में इस बात पर प्रकाश डाला कि येसु ने कलीसिया के आरम्भ से ही शिष्यों का साथ दिया। अपनी उपस्थिति को उन्होंने चमत्कार द्वारा प्रमाणित किया तथा विकट परिस्थिति में भी उन्हें नहीं त्यागा।

संत पापा ने प्रथम पाठ के तीन शब्दों पर चिंतन करते हुए निमंत्रण दिया कि हम उस पाठ को पुनः पढ़ें। आत्मा ने फिलीप को आदेश दिया, ″उठिए और जाइये।″ संत पापा ने कहा कि यह सुसमाचार प्रचार करने का चिन्ह है। कलीसिया की बुलाहट है सुसमाचार का प्रचार करना।

उन्होंने कहा कि सुसमाचार प्रचार करने हेतु उठना और जाना है। आत्मा यह नहीं कहता कि अपने घरों में शांत बैठे रहें, जी नहीं, कलीसिया जो प्रभु के प्रति हमेशा विश्वस्त रहना चाहती है उसे उठना एवं चलना होगा। उन्होंने कहा कि जो कलीसिया नहीं उठती और नहीं चलती है वह बीमार हो जाती है। वह कई तरह के मानसिक एवं आध्यात्मिक घाव से भर जाती है। बिना क्षितिज के अपनी छोटी दुनिया में बंद हो जाती है। अतः सुसमाचार प्रचार हेतु कलीसिया को सक्रिय होने की जरूरत है।

आत्मा ने दूसरी बार फिलीप से कहा, ″आगे बढ़िये और रथ के साथ चलिए।″ संत पापा ने रथ पर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि उस रथ पर इथोपिया की महारानी का उच्चाधिकारी तथा प्रधान कोषाध्यक्ष सवार था जो येरूसालेम में ईश्वर की पूजा करने आया था। जब वह यात्रा कर रहा था वह नबी इसायस का ग्रंथ पढ़ रहा था। संत पापा ने कोषाध्यक्ष के मन-परिवर्तन को महान चमत्कार कहा। आत्मा फिलिप को निर्देश देता है कि वह उसके पास जाये। संत पापा ने कहा कि कलीसिया का कार्य है प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की जिज्ञासा को सुन पाना।

उन्होंने कहा कि सभी लोगों के दिलों में चिंता और बेचैनी है जिसे हमें सुनने का प्रयास करना चाहिए।″ आत्मा नहीं कहती कि जाओ और धर्मातरण करो किन्तु जाओ और सुनो।

संत पापा ने कहा कि सुनना दूसरा चरण है। सुनने की क्षमता कि लोग कैसा अनुभव करते हैं, उन लोगों का हृदय कैसा है, वे क्या सोचते हैं आदि आदि। यदि वे गलत सोचते हैं तो उसे भी सुनना और समझने का प्रयास करना कि बेचैनी किस बात में है।

लोगों के उलझन को समझना कलीसिया का महत्वपूर्ण कार्य है। संत पापा ने कहा कि खोजा आशा से भर गया क्योंकि फिलीप उसके पास गया, उसे सुना एवं समझाया।

जब खोजा सुन रहा था ईश्वर उसके अंदर क्रियाशील थे। इस तरह उसने महसूस किया कि नबी इसायस की भविष्यवाणी येसु में पूर्ण हुई है। येसु पर उसका विश्वास इतना बढ़ गया कि वह बपतिस्मा लेने के लिए भी तैयार हो गया क्योंकि आत्मा ने उसके हृदय के अंदर कार्य किया। संत पापा ने अह्वान किया कि हम पवित्र आत्मा को लोगों के हृदयों में कार्य करने दें। खोजा आनन्द से भर कर अपनी राह आगे बढ़ा जबकि आत्मा ने फिलीप को दूसरी ओर ले गया।

संत पापा के चिंतन का तीसरा शब्द है आनन्द। उन्होंने विश्वासियों से कहा कि कलीसिया उठती, सुनती तथा पवित्र आत्मा की कृपा से बोलने हेतु शब्द प्राप्त करती है। 

उन्होंने कहा, ″माता कलीसिया इसी तरह बहुत सारे बच्चों को जन्म देती है। यह धर्मांतरण नहीं है किन्तु आज्ञापालन का साक्ष्य है। आज कलीसिया हमें प्रोत्साहन दे रही है कि हम आनन्द मनायें, विपरीत परिस्थिति में भी क्योंकि स्तेफन के पत्थरवाह के बाद अत्याचार शुरू हुआ और ख्रीस्तीय सभी ओर बिखर गये किन्तु उनका बिखरना भी सकारात्मक फल लाया वे बीज की तरह विभिन्न जगहों में गये और सुसमाचार का प्रचार किया। प्रभु हम सभी को कृपा दे कि हम कलीसिया में लोगों के साथ रहकर उन्हें सुनते हुए आनन्द के साथ जी सकें। 








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