2017-05-03 15:58:00

मिस्र की प्रेरितिक यात्रा का वृतांन्त संत पापा द्वारा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 03 मई 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी 18वीं प्रेरितिक यात्रा मिस्र का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात, आज मैं ईश्वर की कृपा से पूरी हुई मिस्र की अपनी प्रेरितिक यात्रा के बारे में अपने विचार साझा करना चाहूंगा। मेरी यह प्रेरितिक यात्रा गणतंत्र मिस्र के राष्ट्रपति, आर्थोडॉक्स कॉप्टिक कलीसिया के धर्मगुरु, ग्रैंड इमाम अल-अजहर और काथलिक कॉप्टिक कलीसिया के महाधर्माध्यक्ष के चौगुना निमंत्रण के कारण पूरी हुई। मैं हरेक के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूँ क्योंकि उन्होंने मेरा गर्मगोशी से स्वागत किया। मैं पूरे मिस्र के नागरिकों के प्रति अपनी सप्रेम कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ क्योंकि उन्होंने प्रेम से ओत-पोत हो कर कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता दिखलाई और संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी के रुप में मेरी इस यात्रा को सफल बनाया।

राष्ट्रपति और नागरिक अधिकारियों ने मेरी इस यात्रा को सफल बनाने हेतु हरसंभव, अति विशिष्ट कोशिश की जिससे यह पूरे मिस्र के लिए जो दुर्भाग्यवश आतंकवाद और हिंसा से प्रभावित है, शांति की निशानी बने। वास्तव में, मेरी इस यात्रा का नारा, “मिस्र की शांति में पापा की शांति” था।

संत पापा ने कहा कि अल-अजहर विश्वविद्यालय की भेंट जो इस्लाम का प्राचीनतम और सुन्नी इस्लामी शिक्षा का एक श्रेष्ठ संस्थान है, मेरे लिए दोहरी क्षितिज का मिलन रहा, पहला ख्रीस्तीय और मुस्लिमों के बीच वार्ता और दूसरा विश्व में शांति को प्रोत्साहन। इस संदर्भ में मैंने मिस्र के इतिहास जो सभ्यता के विकास और मेल-मिलाप की भूमि रही है, अपना एक चिंतन प्रस्तुत किया। सारी मानवता के लिए मिस्र प्रचीन सभ्यता, कला समृद्धि और ज्ञान की एक निशानी रही है। यह  हमें इस बात की याद दिलाती है कि शांति की स्थापना ज्ञान और विवेक के आधार पर की जा सकती है जो मानवीय आध्यात्मिकता का एक अंतरंग अंग है। इस बात को ग्रैंड इमाम ने अपने संबोधन में बल देते हुए कहा, शांति की स्थापना ईश्वर और मानव के बीच के संबंध को दिखलाता हैं जो मनुष्य के बीच आपसी संबंध की एक आधारशिला है जो कि दस आज्ञाओं के रुप में पत्थर की पाटी पर सिनाई पहाड़ में अंकित किया गया था। लेकिन इससे भी बढ़कर यह हम सभों से हृदय की गहराई में सदैव अंकित है जिसे हम दो बड़ी आज्ञाओं ईश्वर और पड़ोसी प्रेम के रुप में पाते हैं।

यही मूलभूत आधार सभी समाज, देश के नागरिकों, संस्कृतियों और धर्मों के लिए भी लागू होता है जिसे हमें आत्मसात करने की जरूरत है। गणतंत्र मिस्र के राष्ट्रपति, देश के नेताओं और राजनयिकों से वार्ता के दौरान स्वस्थ धर्मनिरपेक्षता की बात खुल कर सामने आयी। मिस्र की ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत और इसके मध्य पूर्वी क्षेत्र हेतु विशेष कार्यान्वयन, कानूनी शक्ति पर नहीं वरन कानून व्यवस्था पर निर्भर करता है।

उन्होंने कहा कि ख्रीस्तीय न केवल मिस्र वरन् पूरी दुनिया में भातृत्व का खमीर बनने हेतु बुलाये गये हैं और यह तब संभव होगा जब हम अपने को येसु ख्रीस्त के साथ संयुक्त रखेंगे। हम ईश्वर का धन्यवाद करते हैं क्योंकि हमने भ्रातृत्व में आर्थोडोक्स कॉप्टिक कलीसिया के धर्मगुरू तावाद्रोस द्वितीय के साथ मिलकर इस एकता को मजबूती प्रदान की है। हमने एक साथ मिलकर चलने हेतु एक सामान्य घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया है जहाँ दोनों कलीसिया एक-दूसरे के बपतिस्मा को स्वीकृति प्रदान करते हैं। हम ने एक साथ मिलकर हाल के हुए हिंसक घटनाओं में मारे गये शहीदों के लिए प्रार्थना की, उनके लोहू ने अन्तरकलीसियाई मिलन वार्ता को सिंचित किया है।

मेरी मिस्र यात्रा का दूसरा दिन काथलिक विश्वासियों के लिए समर्पित रहा। हमने मिस्र के अधिकारियों द्वारा उपलब्ध कराये गये स्टेडियम पर मिस्सा बलिदान अर्पित किया जो हमारे विश्वास को व्यक्त करता है जहाँ हम ने पुनर्जीवित येसु की उपस्थिति का एहसास अपने जीवन में किया। मैंने मिस्र के काथलिक विश्वासियों के छोटे समुदाय से अनुरोध किया कि वे शिष्यों के एम्माऊस की अनुभूति को, येसु को सदैव उनके वचनों, जीवन की रोटी में खोजते हुए विश्वास की खुशी और अपने जीवन को आशा में जीने का प्रयास करें जिससे वे येसु के प्रेम का साक्ष्य

अन्यों को दे सकें।

इस तरह अंत में संत पापा ने कहा कि मैंने पुरोहितों, धर्मसमाजियों, धर्मबन्धुओं और गुरुकुल के विद्यार्थियों से मिला जिन्होंने शब्द समारोह के दौरान समर्पित जीवन की प्रतिज्ञाएँ दुहरायीं। प्रभु की सेवा और उनके राज्य के विस्तार हेतु समर्पित मिस्र के इन भाई-बहनों में मैंने मिस्र की कलीसिया की सुन्दरता देखी। मैंने मध्य पूर्व के पूरे ख्रीस्त समुदाय हेतु प्रार्थना की जिससे वे अपने चरवाहे की अगवाई में अपने को लोगों के लिए नमक और ज्योति बना सकें।

संत पापा ने अपने संबोधन के अंत में पुनः उन सभों का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने अपनी प्रार्थनाओं के माध्यम से उनकी इस यात्रा को सफल बनने में मदद की। उन्होंने अंत में मिस्र के लोगों को शुभकामनाएं अर्पित करते हुए कहा कि पवित्र परिवार जो नील नदी के तट पर राजा हेरोद की हिंसा से बचने हेतु प्रवासी के रुप में यात्रा की, मिस्र से सब लोगों की रक्षा करें और उन्हें समृद्धि, भाईचारा और शांति के मार्ग में ले चलें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने मिस्र की अपनी 18वीं प्रेरितिक यात्रा का वृतांन्त समाप्त किया  और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए सबों पर पुनर्जीवित प्रभु की खुशी तथा आनन्द की मंगलकामना की और उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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