2017-04-26 15:34:00

भारत का खनन विरोधी कार्यकर्ता 'ग्रीन नोबेल' पुरस्कार से सम्मानित


नई दिल्ली, बुधवार, 26 अप्रैल 2017 (वीआर सेदोक) : भारत स्थित ओडिशा प्रांत के खनन विरोधी कार्यकर्ता प्रतिष्ठित गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार 2017 विजेताओं में से एक हैं। इसे 'ग्रीन नोबेल' पुरस्कार से भी जाना जाता है। 24 अप्रैल को अमेरिका के संत फ्रांचेस्को ओपेरा हाऊस में एक विशेष समारोह के दौरान प्रफुल्ल सामंतारा और अन्य 5 विजेताओं को पुरस्कार दिया गया। सामंतारा ने ओडिशा सरकार और वेदांत संसाधन, लंदन स्थित एक खनन निगम के साथ एक दशक से अधिक समय तक जूझते रहे, जो राज्य में 8,000  डोंगरिया कोंध आदिवासियों के क्षेत्र से बॉक्साइट निकालने की मांग कर रहे हैं। अन्य प्रतिष्ठित गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार 2017 के विजेता स्लोवेनिया, अमेरिका, ग्वाटेमाला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) और ऑस्ट्रेलिया से हैं।

गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार हर साल पर्यावरण के कार्यकर्ताओं को दिया जाता है, जिन्हें दुनिया के छह भौगोलिक क्षेत्रों - अफ्रीका, एशिया, यूरोप, द्वीप राष्ट्र, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण एवं मध्य अमेरिका से चुना जाता है। प्रत्येक विजेता को पुरस्कार राशि के रूप में $ 175,000 अमरीकी डॉलर मिलते हैं।

भारत में सामाजिक न्याय आंदोलनों के प्रतिष्ठित नेता, 65 वर्षीय प्रफुल्ल सामंतारा ने 12 साल की एक ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई का नेतृत्व किया।  इन्होंने डोंगरिया कोंद आदिवासियों के भूमि अधिकारों की पुष्टि की और नियामगिरी पहाड़ियों को एक विशाल, खुले एल्यूमीनियम अयस्क खान बनने से बचाया।

ओडिशा भारत के सबसे अमीर खनिज राज्यों में से एक है। अक्टूबर 2004 में ओडिशा राज्य माइनिंग कंपनी ने नियमगिरी पहाड़ी में बॉक्साइड और एल्यूमीनियम अयस्क खदान के लिए वेदांत संसाधनों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते को डोंगरिया कोंध आदिवासियों से परामर्श किए बिना बनाया गया था जो इस क्षेत्र में कई पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। $ 2 बिलियन की खदान ने 760 लाख टन बॉक्साइड निकालने के लिए 1,660 एकड़ अनछुए वनभूमि नष्ट कर दिया होता और इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर दिया होता। सामंतारा और अन्य कार्यकर्ताओं ने न केवल ओडिशा के नियामगिरी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोगों को उकसाना और अनुप्राणित करना शुरू किया, लेकिन उन्होंने वेदांत की योजनाओं को विफल करने के लिए कानून का इस्तेमाल किया।

12 वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला जारी किया, जिसके अनुसार ओडिशा सरकार का आदिवासी जमीन पर कोई अधिकार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि केवल ग्राम परिषद ऐसे निर्णय ले सकती है। मिसाल-स्थापित नियम राज्य भर में इसी तरह की खनन परियोजनाओं में लागू किया गया था।

पहले भारतीय गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार विजेता नर्मदा बांध कार्यकर्ता मेधा पाटकर, सार्वजनिक हित वकील एम.सी. मेहता, भोपाल कार्यकर्ताओं रशीदा बी और चंपा देवी शुक्ला, और छत्तीसगढ़ पर्यावरण कार्यकर्ता रमेश अग्रवाल, जिन्होंने कोयला खनन का विरोध किया।








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