2017-04-04 15:50:00

″पोपुलोरूम प्रोग्रेस्सियो″ की 50वीं जयन्ती पर आयोजित सम्मेलन को संत पापा का सम्बोधन


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 4 अप्रैल 2017 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने मंगलवार 4 अप्रैल को वाटिकन स्थित सिनॉड भवन में, द्वितीय वाटिकन महासभा के दस्तावेज ″पोपुलोरूम प्रोग्रेस्सियो″ की 50वीं जयन्ती पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के 300 सदस्यों से मुलाकात की तथा कहा कि लोगों के बीच मात्र एकीकरण का रास्ता ही भविष्य में शांति एवं आशा ला सकता है।

50 साल पहले धन्य संत पापा पौल षष्ठम ने लोगों के विकाश पर प्रेरितिक विश्व पत्र ″पोपुलोरूम प्रोग्रेसियो″ का प्रकाशन किया था जिसमें संत पापा ने राष्ट्रों के विकास हेतु वार्ता एवं सहयोग करने की अपील की थी। विश्व पत्र में एकजुटता के सिद्धांत को अभिव्यक्त किया गया है।

संत पापा ने मानव विकास एवं सार्वजनिक भलाई हेतु उनके प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।

उन्हें सम्बोधित कर उन्होंने कहा कि वे धन्य संत पापा पौल छाटवें द्वारा प्रकाशित दस्तावेज पोपुलोरूम प्रोग्रेसियो के पच्चास साल पूरा होने पर एकत्रित हुए हैं जिन्होंने प्रत्येक व्यक्ति एवं सभी लोगों के विकास के सफल सिद्धांत को प्रस्तुत किया है।

संत पापा ने प्रत्येक व्यक्ति एवं सभी लोगों के विकास का अर्थ बतलाते हुए कहा कि इसका अर्थ पृथ्वी के सभी लोगों को एकीकृत करना है। एकात्मता का कर्तव्य एक सही वितरण प्रणाली की मांग करता है क्योंकि कुछ लोगों के पास बहुत अधिक और कुछ लोगों के पास कुछ नहीं होने के कारण अत्यधिक असमानता है। उन्होंने कहा कि मात्र एकीकरण के रास्ते द्वारा ही भविष्य में मानव के बीच शांति और आशा लाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि समाज के निर्माण हेतु प्रत्येक के योगदान की आवश्यकता है सभी की विशेषताओं को एक साथ जीने के द्वारा ही भलाई के कार्य करने में कोई भी बहिष्कृत नहीं हो सकता। संत पापा ने इसे सभी का कर्तव्य एवं अधिकार कहा तथा कहा कि यदि हम एक खुला मानवीय समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो हमें इसे व्यक्तिगत एवं समूहों में पूरा करना चाहिए।  

अपने पूर्वाधिकारी धन्य संत पापा पौल छाटवें के शब्दों का हवाला देते हुए संत पापा ने कहा, ″विकास को मात्र आर्थिक विकास तक सीमित नहीं कर देना चाहिए। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि अपने अधिक से अधिक धन प्राप्त करना...।″ 

उन्होंने कहा कि मानव व्यक्ति के विकास का अर्थ है शरीर और आत्मा की एकता। उन्होंने गौर किया कि इस एकीकरण का अर्थ है कि तब तक कोई भी विकास का कार्य हासिल नहीं किया जा सकता है जब तक कि इसका मकसद, उस स्थान की कद्र नहीं करता जहाँ हमारे लिए ईश्वर की उपस्थिति है और जहाँ से वे हमारे हृदय में बोलते हैं।








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