2017-04-04 15:22:00

सच्ची प्रतिबद्धता के अभाव में मानव तस्करी में वृद्धि


वाटिकन सिटी, मंगलवार, 4 अप्रैल 2017 (वीआर अंग्रेजी): संत पापा फ्राँसिस ने कहा है कि मानव तस्करी को पूरी तरह समाप्त करने का समय आ गया है जिसमें बाल तस्करी एवं गुलामी सबसे अधिक बढ़ती त्रासदी है।

संत पापा का यह संदेश विस्थापितों एवं शरणार्थियों की सुरक्षा हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के उपसचिव फा. माईकेल चरनी येसु समाजी के द्वारा, वियेन्ना में आयोजित मानव तस्करी के खिलाफ 17वें सम्मेलन में पढ़कर सुनाया गया।  

बाल तस्करी पर प्रस्तुत संदेश में फादर ने कहा कि संत पापा ने इस समस्या को ″गुलामी का एक रूप, मानवता के खिलाफ अपराध, मानव अधिकार का घोर हनन एवं नृशंसता आदि की संज्ञा दी है।″  

उन्होंने कहा, ″आज जटिल विस्थापन परिदृश्य को अफसोस के साथ नई प्रकार की गुलामी के रूप में देखा जा रहा है जो आपराधिक संगठनों द्वारा थोपी जा रही हैं जिसमें स्त्री और पुरूष, महिलाओं एवं बच्चों की खरीद बिक्री की जाती हैं।

संदेश में कहा गया कि मानव तस्करी बढ़ती जा कही है जिसमें कुछ खास व्यक्तियों का हाथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

2014 में पवित्र भूमि में प्रेरितिक यात्रा में कही गयी बात को पुनः दोहराते हुए संत पापा ने संदेश में कहा है कि ″बहुत सारे बच्चे शोषण, दुर्व्यवहार, गुलामी, हिंसा तथा अस्पष्ट तस्करी के शिकार हो रहे हैं। अब भी कई बच्चे निर्वासन में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं अथवा कई बार वे समुद्र में डूब कर मर जाते हैं, खासकर, भूमध्यसागर में। आज हम इन सारी सच्चाईयों को स्वीकारते हुए ईश्वर के सामने लज्जा महसूस करते हैं।″    

सम्मेलन में तस्करी के खिलाफ प्रभावी कदम उठाने हेतु तीन ‘पी’ को प्रोत्साहन दिया गया (रोकने, संरक्षण और मुकदमा चलाने के लिए) जिसमें संत पापा ने चौथा शब्द पार्टनर जोड़ दिया।

रोकने के उद्देश्य के बारे बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह स्वीकार किया जाना होगा कि बच्चे तस्करी के शिकार हो रहे हैं एवं बेचे जा रहे हैं जिसके रोकथाम हेतु क्यों बहुत कम काम किये गये हैं।

उन्होंने कहा कि मांग एवं पूर्ति वास्तव में गहरे रूप से तीन मुख्य मुद्दों संघर्ष एवं युद्ध, आर्थिक निजीकरण तथा प्राकृतिक आपदा से जुडे हैं जो अत्यन्त गरीबी, विकास में बाधा, बहिष्कार, बेरोजगारी तथा शिक्षा के अभाव की स्थिति उत्पन्न करते हैं।

संत पापा ने कहा कि मानव तस्करी से सुरक्षा की शुरूआत परिवार की सुरक्षा से होती है।

उन्होंने कहा कि ‘सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य’ एक बालक होना चाहिए जिसमें परिवार का आयाम होता है जो सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।

बच्चे की सुरक्षा परिवार की सुरक्षा पर निर्भर है अतः परिवारों को ऐसे उपाय एवं कार्यक्रम प्रदान किये जाने चाहिए, जो बच्चों को उनकी दुर्बल स्थिति में रक्षा कर सके।  जिसके लिए आवश्यक साधन हैं, सुरक्षित आवास, स्वास्थ्य देखभाल, काम करने का अवसर, शिक्षा आदि।"

संत पापा ने बच्चों को एक ‘प्रतीक’ कहा। उन्होंने कहा, ″वे आशा के प्रतीक हैं किन्तु वे निवारण के चिन्ह है एक ऐसा चिन्ह जो परिवार, समाज एवं समस्त विश्व के लिए एक स्वास्थ्य का चिन्ह है। जब कभी बच्चों को स्वीकृति, स्नेह, देखभाल एवं रक्षा प्रदान की जाती है परिवार एवं समाज स्वस्थ बनता है तथा विश्व अधिक मानवीय होता है।″








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