2017-04-04 11:12:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय: स्तोत्र ग्रन्थ, 82 वाँ भजन (भाग-2)


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"ईश्वर स्वर्ग सभा में उठ खड़ा हुआ है। वह देवताओं के बीच न्याय करता है। तुम कब तक दोषियों के पक्ष लेकर अन्यायपूर्ण निर्णय देते रहोगे? निर्बल और अनाथ की रक्षा करो, दरिद्र और दीन को न्याय दिलाओ। निर्बल और दरिद्र का उद्धार करो और उन्हें दुष्टों के पंजों से छुड़ाओ।" श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 82 वें भजन के प्रथम चार पद। इन पदों के पाठ से ही विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। आठ पदों वाला 82 वाँ भजन अन्यायी शासकों के विरुद्ध आसाफ़ द्वारा रची गई प्रार्थना है।

इन पदों में भजनकार ने हमारे समक्ष स्वर्ग, ईश्वर और उनके समक्ष प्रस्तुत सभा का चित्रांकन उसी प्रकार किया है जिस प्रकार नबी इसायाह ने स्वर्ग का दृश्य देखा और उसका वर्णन किया है, "मैंने प्रभु को ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके ऊपर सेराफ़िम विराजमान थे, उनके छः छः पंख थे और वे एक दूसरे को पुकार पुकार कर कह रहे थे, "पवित्र, पवित्र, पवित्र है विश्व मण्डल का प्रभु। उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है।" भजनकार ने इसी के सन्दर्भ में स्वर्ग का विवरण प्रस्तुत किया। उसने प्रभु ईश्वर को सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड पर शासन करते तथा विश्व के निरंकुश शासकों को फटकार बताते देखा, ताकि विश्व के शासक जान जायें कि शासक लोगों का सेवक होता है। इस बात पर हम विचार कर चुके हैं कि "ऊँचे सिंहासन पर बैठकर न्याय करनेवाले प्रभु"  का दृश्य भले ही हमारे युग के लोगों के लिये अटपटा सा लगे किन्तु उस युग के लिये यह बुद्धिगम्य था इसलिये कि इसायाह के समय में अस्सिरियाई राजा और फिर नबी येरेमियाह के समय में बाबिलोन या बाबुल के राजा सब के सब स्वतः को राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु घोषित करते थे तथा लोगों पर मनमाना शासन करते थे। इसी पृष्ठभूमि में 82 वाँ भजन रचा गया था इस भजन में याद दिलाया गया है कि केवल ईश्वर ही यथार्थ राजा हैं, समस्त राष्ट्र उनके अधीन हैं। भजनकार यह नहीं बताता कि ईश्वर कौन हैं? अपितु यह कि ईश्वर की शक्ति का मर्म क्या है? उनकी शक्ति लौहदण्ड में अपितु दया में प्रदर्शित होती है, वह पीड़ित मानवजाति के लिये सामाजिक न्याय में परिलक्षित होती है।

आगे, 82 वें भजन के 05 से लेकर 08 तक के पदों में भजनकार अन्यायी शासकों के विरुद्ध अपनी फटकार को जारी रखता है। वह स्मरण दिलाता है कि शासक हो अथवा प्रजा सभी का अन्त मनुष्यों की तरह होगा। मृत्यु के आगे न कोई छोटा है न कोई बड़ा, न कोई राजा और न कोई रंक। ये पद इस प्रकार हैं, "वे न तो जानते हैं और न ही समझते हैं, वे अन्धकार में भटकते रहते हैं। पृथ्वी के सब आधार डगमगाने लगे हैं। मैं तुम से कहता हूँ कि तुम देवता हो, सब–के-सब सर्वोच्च ईश्वर के पुत्र हो। तब भी तुम मनुष्यों की तरह मरोगे, शासकों की तरह ही तुम्हारा सर्वनाश होगा।" फिर अन्तिम पद में भजनकार कहता है, "ईश्वर! उठ और पृथ्वी का न्याय कर, क्योंकि समस्त राष्ट्र तेरे ही हैं।" 

श्रोताओ, प्राचीन काल के इतिहास पर यदि ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि छोटे-मोटे राजाओं ने किसी न किसी प्रकार अपनी प्रजा को अपने से नीचा ही समझा तथा उसपर मनमाना शासन करते रहे। समानता और न्याय का मर्म वे कभी समझ ही न पाये तथा अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते रहे। वास्तव में उनका कार्य केवल अन्याय को रोकना नहीं था अपितु दुर्बल एवं ज़रूरतमन्द की सुरक्षा हेतु रचनात्मक कदम उठाना भी था जिसमें प्रायः राजा कहलना वाले विफल ही रहे। इस दृष्टि से यदि स्तोत्र ग्रन्थ के 82 वें भजन का पाठ किया जाये तो वास्तव में यह निर्धन एवं प्रताड़ित लोगों के पक्ष में दैवीय आवाज़ प्रतीत होती है। धरती के किसी भी राजा या शासक ने कभी भी स्वतः को अपनी प्रजा से छोटा कभी नहीं माना, उन्होंने दुर्बल और कमज़ोर का पक्ष नहीं लिया और न ही सामाजिक न्याय की बहाली की किन्तु प्रभु ईश्वर न्यायी हैं, वे सबका न्याय करते तथा समान प्रतिष्ठा के आधार पर सभी को अपना पक्ष रखने का मौका देते हैं। ईश्वर की अद्वितीयता इसी में है, इसीलिये ईश्वर अद्वितीय एवं एकमात्र न्यायकर्त्ता हैं।

82 वें भजन का पाठ करते समय एक बात और ध्यान में रखना हितकर होगा कि बाईबिल सम्बन्धी विचारधारा में "इस विश्व" एवं "इस विश्व से परे" में तथा "ऊपर के देवताओं" एवं "धरती के देव सदृश राजाओं" के बीच कोई निश्चित्त रेखा नहीं खींची जा सकती। यह भी ध्यान में रखना होगा कि अनगिनत देवताओं का अस्तित्व केवल मानव मन की उपज है, ईश्वरीय सत्य के साथ इसका कोई वास्ता नहीं। इसमें मानव-निर्मित सत्ताएँ, विश्व प्रभुत्व के लिए इस दुनिया के शासकों की राष्ट्रवादी आकांक्षाएँ, नस्ल और जातिगत पूर्वाग्रह, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की पहुँच जिनके दिशा निर्देशन के लिये कोई भी व्यक्ति ज़िम्मेदार नहीं है, युद्ध के प्रति ग़ैर-वैयक्तिक बहाव, जिसपर किसी का नियंत्रण नहीं रह सकता, आदि आदि शामिल हैं।

श्रोताओ, सच तो यह है कि हालांकि, हमने अपना व्यक्तिगत जीवन ईश आज्ञा के प्रति समर्पित कर दिया है तथापि, आज यही सत्ताएँ विश्व पर हावी हैं। देवताओं के सदृश ही ये शक्तियाँ, ये अभियान तथा ये विचार धाराएँ हमारे नियंत्रण के बाहर निवास करती प्रतीत होती हैं। इसके विपरीत हैं बाईबिल धर्मग्रन्थ के प्राचीन एवं नवीन व्यवस्थान। दोनों ही व्यवस्थान सर्वोच्च ईश्वर के अस्तित्व पर बल देते हैं जो स्वर्ग एवं पृथ्वी के सृष्टिकर्त्ता, उसके राखनहार एवं उद्धारकर्त्ता हैं। इसायाह के ग्रन्थ के 24 वें अध्याय का 21 वाँ पद घोषित करता है कि प्रभु ईश्वर ही राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु हैं, लिखा है, "उस दिन प्रभु आकाश के नक्षत्रों को और पृथ्वी के राजाओं को दण्ड देगा।" और फिर 23 वें पद में, "चन्द्रमा को नीचा दिखाया जायेगा और सूर्य को लज्जित होना पड़ेगा। सर्वशक्तिमान् प्रभु सियोन पर्वत पर, येरूसालेम के नेताओं के सामने महिमान्वित होगा।" 








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