2017-03-30 11:28:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ, 81 व 82 वाँ भजन


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"मेरी प्रजा ने मेरी वाणी पर ध्यान नहीं दिया, इस्राएल ने मेरी एक भी नहीं सुनी इसलिये मैंने उस हठधर्मी प्रजा का परित्याग किया और वह मनमाना आचरण करने लगी। ओह! यदि मेरी प्रजा मेरी बात सुनती, यदि इस्राएल मेरे पथ पर चलता, तो मैं तुरन्त ही उसके शत्रुओं को नीचा दिखाता और उनके अत्याचारियों पर अपना हाथ उठाता। तब ईश्वर के बैरी मेरी प्रजा की चाटूकारी करते और उनकी यह स्थिति सदा के लिये बनी रहती, जब मैं इस्राएल को उत्तम गेंहूँ खिलाता और उसे चट्टान के मधु से तृप्त करता।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 81 वें भजन के अन्तिम छः पद। इन पदों के पाठ से ही विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। इस बात का हम सिंहावलोकन कर चुके हैं कि उक्त पदों में 81 वें भजन का रचयिता अपने मुख से ईश्वर की बात कहता है। वह बताता है कि मिस्र की गुलामी से निकली इस्राएली जाति के दुःख उसी के दुष्कर्मों का फल था। उन्होंने ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया और अपने हठधर्म के कारण ईश्वर की नहीं सुनी। यही उनके दुःख और असन्तोष का कारण बना। 81 वें भजन के द्वारा प्राचीन व्यवस्थान के लोगों को ईश्वर के दस नियमों का स्मरण दिलाया गया है जिनमें सबसे पहला हुक्म हैः "ईश्वर के सिवाय मनुष्य अन्य देवी-देवताओं की आराधना न करे।" अपने हठधर्म के कारण मिस्र की गुलामी के बाद प्रतिज्ञात देश तक जानेवाली इस्राएली जाति के लोगों ने यही किया था और इसीलिये उन्हें असन्तोष और दुःख भोगना पड़ा था।

भजन के 15 वें पद में लिखा है, "यदि इस्राएल मेरे पथ पर चलता, तो मैं तुरन्त ही उसके शत्रुओं को नीचा दिखाता और उनके अत्याचारियों पर अपना हाथ उठाता।" अर्थ स्पष्ट है कि इस्राएल प्रभु के पथ पर नहीं चला और इसीलिये उसे कष्ट भोगना पड़ा। प्रभु ने उन्हें जीवन के चयन का आमंत्रण दिया था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। श्रोताओ, एक प्रकार से 81 वाँ भजन केवल उस युग के लोगों के लिये ही एक चेतावनी नहीं थी बल्कि यह हमारे लिये भी और युगयुगान्तर तक विश्व के समस्त लोगों के लिये एक चेतावनी है। भजनकार विधि विवरण ग्रन्थ के 31 वें अध्याय में निहित प्रभु ईश्वर की पेशकश का स्मरण दिलाता है। इसके 19 वें और 20 वें पद में हम पढ़ते हैं, "मैं आज तुम लोगों के विरुद्ध स्वर्ग और पृथ्वी को साक्षी बनाता हूँ – मैं तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें। अपने प्रभु ईश्वर को प्यार करो, उसकी बात मानो और उसकी सेवा करते रहो, इसी में तुम्हारा जीवन है।" 

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 82 वें भजन पर दृष्टिपात करें। आठ पदों वाला यह भजन अन्यायी शासकों के विरुद्ध आसाफ़ द्वारा रची गई प्रार्थना है। इसके प्रथम चार पद इस प्रकार हैं, "ईश्वर स्वर्ग सभा में उठ खड़ा हुआ है। वह देवताओं के बीच न्याय करता है। तुम कब तक दोषियों के पक्ष लेकर अन्यायपूर्ण निर्णय देते रहोगे? निर्बल और अनाथ की रक्षा करो, दरिद्र और दीन को न्याय दिलाओ। निर्बल और दरिद्र का उद्धार करो और उन्हें दुष्टों के पंजों से छुड़ाओ।"

श्रोताओ, इन पदों में भजनकार ने हमारे समक्ष स्वर्ग का चित्र प्रस्तुत किया है। उसकी कल्पना में स्वर्ग जैसा है उसी के अनुकूल उसने हमारे समक्ष स्वर्ग, ईश्वर और उनके समक्ष प्रस्तुत सभा का चित्रांकन किया है। उसने प्रभु ईश्वर को सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड पर शासन करते देखा तथा विश्व के निरंकुश शासकों को फटकारा है, उन्हें स्मरण दिलाया है कि वे नहीं अपितु केवल प्रभु शासक हैं। 82 वें भजन का रचयिता उसी प्रकार स्वर्ग का दृश्य देख रहा था जिस प्रकार नबी इसायाह ने देखा था। इसायाह के ग्रन्थ के छठवें अध्याय के प्रथम तीन पदों में हमें यह विवरण मिलता है, "मैंने प्रभु को ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके वस्त्र का पल्ला मन्दिर का पूरा फर्श ढक रहा था। उसके ऊपर सेराफ़िम विराजमान थे, उनके छः छः पंख थे: दो चेहरा ढकने, दो पैर ढकने और दो उड़ने के लिये और वे एक दूसरे को पुकार पुकार कर कह रहे थे, "पवित्र, पवित्र, पवित्र है विश्व मण्डल का प्रभु। उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है।"   

श्रोताओ, ऊँचे सिंहासन पर बैठकर न्याय करनेवाले प्रभु का दृश्य भले ही हमारे युग के लोगों के लिये अटपटा सा लगे किन्तु उस युग के लिये यह बुद्धिगम्य था इसलिये कि इसायाह के समय में अस्सिरियाई राजा और फिर नबी येरेमियाह के समय में बाबिलोन या बाबुल के राजा सब के सब स्वतः को राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु घोषित करते थे। अन्य देशों के छोटे-छोटे राजाओं को उनका न्याय सुनने के लिये अथवा उनके द्वारा घोषित नये नियमों को जानने के लिये सभा में बुलाया जाता था। उदाहरणार्थ राजा हिज़किया के 14 वें वर्ष अस्सूर के राजा सनहेरीब ने यूदा के सब किलाबन्द नगरों पर अपना अधिकार जमा लिया था। वह स्वतः को राजाधिराज कहता था तथा मनमाना शासन करता था। इसी प्रकार की पृष्ठभूमि में 82 वाँ भजन रचा गया था जिसमें भजनकार निरंकुश शासकों को ललकारता है तथा उन्हें स्मरण दिलाता है कि केवल ईश्वर ही यथार्थ राजा हैं, समस्त राष्ट्र उनके अधीन हैं। वस्तुतः, श्रोताओ, भजनकार को इस प्रकार की भाषा का प्रयोग इसलिये करना पड़ा क्योंकि उस युग के राजा अपने आपको ईश्वर मानने लगे थे। वे अपनी प्रजा को अपने अधीन सेवा करनेवाली मानते थे। इसीलिये भजनकार को यह फटकार बतानी पड़ी। भजनकार यह नहीं बताता कि ईश्वर कौन हैं? अपितु यह कि ईश्वर की शक्ति का मर्म क्या है? उनकी शक्ति लौहदण्ड में अपितु दया में प्रदर्शित होती है, वह पीड़ित मानवजाति के लिये सामाजिक न्याय में परिलक्षित होती है।








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