2017-03-29 17:00:00

विश्वास और आशा पर संत पिता की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 29 मार्च 2017 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात

संत पौलुस रोमियों के नाम लिखित अपने प्रेरितक पत्र में अब्राहम का जिक्र करते हैं जो न केवल विश्वास वरन आशा के भी पिता है, उनके संदर्भ में हमारे लिए पुनरुत्थान और जीवन का संदेश दिया जाता है।

संत पौलुस लिखते हैं, “अब्राहम ने ईश्वर पर विश्वास किया जो मृतकों को पुनर्जीवित करता है और जो नहीं है उसे भी अस्तित्व में लाता हैं।” (रोमि.4.17) वे आगे लिखते हैं, “यद्यपि वे जानते थे कि मेरा शरीर अशक्त हो गया है-उनकी अवस्था लगभग एक सौ वर्ष की थी और सारा बाँझ थी।” (रोमि.4.19) संत पापा ने कहा कि हम भी अपने जीवन में इसी विश्वास को जीने हेतु बुलाये गये हैं। ईश्वर जो अपने को अब्राहम के लिए बचाने वाले ईश्वर के रुप में व्यक्त करते हैं,वे हमारे जीवन के निराशा भरे क्षणों में आते और मृत्यु से हमें ऊपर उठाते हुए जीवन प्रदान करते हैं। अब्राहम के वृतांत में सारी चीज़ें ईश्वर के लिए एक संगीत समान हो जाती हैं जो स्वतंत्र करते और सारी चीजों को उन्हें देते हैं, सारी चीज़ें भविष्यवाणी की तरह हो जाती हैं। ये सारी चीजें हमारे जीवन में भी होती हैं जहाँ हम येसु के पास्का रहस्य पर विश्वास करते और उसकी यादगारी मानते हैं। ईश्वर ने अपने पुत्र को मृतकों में से पुनर्जीवित किया है (रोमि. 4.24) जिससे हम उनके द्वारा मृत्यु से जीवन में प्रवेश कर सकें। अब्राहम सचमुच में बहुत से राष्ट्रों के पिता कहलाते हैं क्योंकि ईश्वर ने उनके द्वारा राष्ट्रों को स्थापित किया और उन्हें अपने बेटे में पाप और मृत्यु से बचाया है।

संत पौलुस हमारे लिए यहाँ विश्वास और भरोसे की घनिष्ठता को स्पष्ट करना चाहते हैं। वे हमें कहते हैं कि अब्राहम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रखकर विश्वास किया। हमारा विश्वास हमारी तर्क, पूर्वानुमान और मानव आश्वासन पर आधारित नहीं होता है वरन यह उस समय परिलक्षित होता है जब हम हताश और निराशाजनक परिस्थिति से हो कर गुजर रहे होते हैं जैसा कि अब्राहम के साथ हुआ। वह बूढ़ा हो चला था और उसकी पत्नी बाँझ थी। संत पापा ने कहा कि  हमारी आशा की सुदृढ़ता हमारे विश्वास में निहित है। यह हमारे शब्दों पर आधारित नहीं हैं लेकिन यह ईश्वर के वचनों पर है। अतः हम सभी अब्राहम के जीवन का अनुसरण करने हेतु बुलाये जाते हैं जो अपने को जीवन दाता ईश्वर को हाथों में सौंप देते हैं। “उसे पक्का विश्वास था कि ईश्वर ने जिस बात की प्रतिज्ञा की है वह उसके पूरा करने में समर्थ हैं।” (रोमि.4.21) अब्राहम के जीवन में हम एक ओर विरोधाभास की स्थिति तो दूसरी ओर उनकी आशा की पराकाष्ठा को देखते हैं। आशा जो मानवीय सोच और दृष्टिकोणों से असंभव और अनिश्चित लगती है लेकिन यह ईश्वर की प्रतिज्ञा में सबल बना रहती है। यह हमारा ध्यान पुनरुत्थान और जीवन की ओर करती है।

संत पापा ने भक्त समुदाय का आहृवान करते हुए कहा कि आज हम ईश्वर से इस कृपा हेतु निवेदन करें कि हम अपनी सुरक्षा और शक्ति पर नहीं वरन अब्राहम की संतान की भाँति उनकी प्रतिज्ञा के अनुरूप आशा पर अटल बने रहें। ऐसा करने से ही हमारे जीवन में ईश्वर की ज्योति का उदय होता है जिन्होंने अपने बेटे को मृतकों में से पुनर्जीवित किया है, जो हमें भी विश्वास के कारण उनके साथ एक बनना चाहते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्म शिक्षा माला समाप्त की और सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासियों का अभिवादन करते हुए कहा, मैं अंग्रजी बोलने वाले तीर्थयात्रियों और विश्वासियों विशेष कर इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड, फिनलैण्ड, नार्व, फिलिपीन्स और संयुक्त राज्य अमेरीका के आये आप सभों का अभिवादन करता हूँ। संत पापा ने विशेष रूप से ब्रिटेन के ऑल-पाटी संसदीय समुदाय के कार्यों की सराहना करते हुए वाटिकन में उनका स्वागत किया। और अंत में उन्होंने सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को चालीसा काल की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

 








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