2017-03-23 12:03:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ 81 वाँ भजन (भाग-3)


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"मेरी प्रजा! मेरी चेतावनी पर ध्यान दो! इस्राएल मेरी बात सुनो। तुम्हारे बीच कोई पराया देवता नहीं रहेगा, तुम किसी अन्य देवता की आराधना नहीं करोगे। मैं ही तुम्हारा प्रभु ईश्वर हूँ।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 81 वें भजन के 9 से लेकर 11 तक के पद। इन पदों में भजनकार ईश्वर द्वारा दी गई चेतावनी का स्मरण दिलाता है। वह उन्हें उस क्षण की याद दिलाता है जब ईश्वर ने उनके समक्ष अपने दस नियम प्रस्तावित किये थे। इन पदों के पाठ से ही विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। 81 वाँ भजन शिविर पर्व यानि तम्बुओं के पर्व पर गाया जानेवाला गीत है। ईश्वर से विशिष्ट अनुग्रह की याचना यह पर्व है।  इसमें वर्षा के आने के लिये प्रार्थना की गई है तथा नई फसल के कटने एवं मिस्र की दासता से मिली मुक्ति हेतु प्रभु को धन्यवाद ज्ञापित किया गया है। प्रभु से याचना की गई है कि वह मनुष्य पर अपने आत्मा को प्रवाहित करे। मन्दिर का उपदेशक भक्त समुदाय का आह्वान करता है कि वह प्रभु के आदर में "आनन्द का गीत गाये और ईश्वर का जयजयकार करे"। वे उत्सव के 15 दिनों के दौरान "डफली, वीणा और तानपूरा बजाकर" प्रभु ईश्वर का जयजयकार करें इसलिये कि "यही इस्राएल का विधान है, यही याकूब के ईश्वर का आदेश है"।

आगे, 81 वें भजन के छठवें, सातवें एवं आठवें पदों में भजनकार ने यह सन्देश देना चाहा है कि जब-जब मनुष्य ने ईश्वर को पुकारा तब-तब उन्होंने उसकी पुकार सुनी तथा उसे उसके संकटों से मुक्ति दिलाई। वस्तुतः, श्रोताओ, मिस्र की गुलामी से मुक्ति की घटना को पढ़ लेने के बाद भजनकार के हृदय में यह प्रेरणा जागृत हुई कि वह ईश्वर की स्तुति करे तथा सम्पूर्ण इस्राएली समुदाय को ऐसा करने के लिये आमंत्रित करे। उसके मन में यह चेतना जागृत हुई कि वह इस्राएली लोगों को याद दिलाये कि प्रभु ईश्वर ने उनके कन्धों पर से भार उठाया था। उन्हें यह स्मरण दिलाये कि इस्राएली लोग ईश्वर के विरुद्ध बड़बड़ा रहे थे तब मेघ गर्जन के बीच से प्रभु बोले थे जिससे उन्हें मार्गदर्शन मिला था।

और अब आइये 81 वें भजन के 9 से लेकर 11 तक के पदों को समझने का प्रयास करें, प्रभु कहते हैं: "मेरी प्रजा! मेरी चेतावनी पर ध्यान दो! इस्राएल मेरी बात सुनो। तुम्हारे बीच कोई पराया देवता नहीं रहेगा, तुम किसी अन्य देवता की आराधना नहीं करोगे। मैं ही तुम्हारा प्रभु ईश्वर हूँ। मैं तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया अपना मुँह पूरा-पूरा खोलो और मैं उसे भर दूँगा।"

श्रोताओ, 81 वें भजन के पहले भाग में हमने भक्तों की प्रार्थना सुनी और अब नौ से लेकर 11 तक के पदों में ईश्वर बोल रहे थे। वे उन्हें चेतावनी दे रहे थे। भजनकार ने इन पदों से यह कहना चाहा है कि लोगों को उन नियमों का पालन करना चाहिये जो प्रभु ईश्वर ने नबी मूसा के द्वारा  सिनई पर्वत पर दिये थे। ईश्वर के दस हुक्मों की वह याद दिलाता है, जिनमें सबसे पहला हुक्म हैः "ईश्वर के सिवाय मनुष्य अन्य देवी-देवताओं की आराधना न करे।" उक्त पदों में ईश्वर इस्राएलियों से और उनके माध्यम से समस्त मानवजाति से कहते हैं, कि मनुष्य अपना मुँह खोलें ताकि प्रभु  उसे अपने वचनों से भर सकें।

आज के सन्दर्भ में, श्रोताओ, इसे हम सुसमाचारी निमंत्रण कहकर पुकार सकते हैं। ये हमें नबी इसायाह के ग्रन्थ में निहित प्रभु ईश्वर के शब्दों का स्मरण दिलाते हैं। इसायाह के ग्रन्थ के 55 वें अध्याय के प्रथम दो पदों में हम पढ़ते हैं: "तुम सब जो पयासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रुपया नहीं हो तो भी आओ, मुफ्त में अन्न ख़रीद कर खाओ, दाम चुकाये बिना अँगूरी और दूध ख़रीद लो। जो भोजन नहीं है, उसके लिये तुम अपना रुपया क्यों खर्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता, है उसके लिये परिश्रम क्यों करते हो?" इस स्थल पर श्रोताओं को याद दिला दें कि प्रभु येसु मसीह ने भी ईश्वर के निकट अपने शिष्यों को ले जाने के लिये इसी प्रतीक का उपयोग किया था, "जो प्यासा है वह आये और जीवन जल प्राप्त करे" यानि कि जो अपने जीवन से असन्तुष्ट है, दुःखी है, कष्ट में पड़ा है वह प्रभु के पास आये उनसे विनती करे और उसकी प्यास बुझेगी, उसकी प्रार्थना पूरी होगी और वह आनन्द मनायेगा क्योंकि प्रभु ही हमारा ईश्वर है, तमाम देवी-देवता तृप्ति नहीं दिला सकते हैं, केवल ईश्वर ही प्रभु हैं उन्हीं की आराधना और स्तुति की जाये।

आगे स्तोत्र ग्रन्थ के 81 वें भजन के 12 से लेकर 17 तक के पदों में भजनकार उन लोगों को सचेत करता है जो ईश्वर के हुक्मों का पालन नहीं करते। ये पद इस प्रकार हैं: "मेरी प्रजा ने मेरी वाणी पर ध्यान नहीं दिया, इस्राएल ने मेरी एक भी नहीं सुनी इसलिये मैंने उस हठधर्मी प्रजा का परित्याग किया और वह मनमाना आचरण करने लगी। ओह! यदि मेरी प्रजा मेरी बात सुनती, यदि इस्राएल मेरे पथ पर चलता, तो मैं तुरन्त ही उसके शत्रुओं को नीचा दिखाता और उनके अत्याचारियों पर अपना हाथ उठाता। तब ईश्वर के बैरी मेरी प्रजा की चाटूकारी करते और उनकी यह स्थिति सदा के लिये बनी रहती, जब मैं इस्राएल को उत्तम गेंहूँ खिलाता और उसे चट्टान के मधु से तृप्त करता।"   

श्रोताओ, निर्गमन ग्रन्थ में इस्राएली जाति की प्रतिज्ञात देश तक जटिल यात्रा के बारे में हम जानते हैं। हम जानते हैं कि कई जगह इस्राएली जाति ईश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाने लगी थी। यहाँ तक कि उनमें से कुछेक जातियों ने मिलकर सोने का बछड़ा बनाया था तथा ईश्वर को चुनौती देते हुए उसकी पूजा की थी। इसी के सन्दर्भ में 81 वें भजन का रचयिता अपने मुख से ईश्वर की बात कहता है। वह बताता है कि मिस्र की गुलामी से निकली इस्राएली जाति के दुःख उसी के दुष्कर्मों का फल था। उन्होंने ईश्वर की वाणी पर ध्यान नहीं दिया और अपने हठधर्म के कारण ईश्वर की नहीं सुनी। यही उनके दुःख और असन्तोष का कारण रहा।








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