2017-03-18 16:45:00

ऑनलाइन पद्धति द्वारा प्रवासियों की मदद हेतु कलीसिया का प्रयास


नई दिल्ली, शनिवार, 18 मार्च 2017 (ऊकान): भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के श्रमिकों की मदद करने वाले विभाग ने प्रवासियों की सुरक्षा एवं संकटकालीन स्थिति में उनकी मदद करने हेतु ऑनलाईन पद्धति की व्यवस्था की है।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डिनल बेसलियोस क्लेमिस ने 15 मार्च को नई दिल्ली में वेब आधारित, प्रवासी आँकड़ा प्रबंधन प्रणाली जारी करते हुए कहा, ″यह उन प्रवासियों की रक्षा करने का मार्ग प्रशस्त करेगा जो नौकरी खोजने के लिए गाँवों को छोड़ शहर की ओर आते हैं। यह गाँवों और शहरों के बीच सम्पर्क को बढ़ाने में मदद करेगा जो प्रवासी श्रमिकों का आधार है। यह उन्हें सरकार और कलीसिया से भी जानकारी प्रदान करेगा। " 

श्रमिक देशभर के विभिन्न काथलिक धर्मप्रांतों के 78 केंद्रों में अपना नामांकन करा सकते हैं, जहाँ उन्हें अपना पता, जन्म स्थान तथा कार्य स्थल का पता दर्ज करना होगा। 

कार्डिनल ने जानकारी दी कि नामांकन के अलावा, इसके द्वारा प्रवासियों को प्रेरितिक सहायता, कल्याण सेवाएँ तथा परामर्श भी मुहैया करायी जायेंगी।

राष्ट्रीय सर्वेक्षण कार्यालय के मुताबिक, भारत में आंतरिक प्रवासियों की संख्या 309 मिलियन है, जिनमें से अधिकतर आर्थिक कारणों से घर से दूर रहते हैं।

छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, बिहार, राजस्थान तथा उत्तरप्रदेश देश के प्रमुख राज्य हैं जहाँ से लोग बड़े शहरों की ओर काम की खोज में जाते हैं और जो मुख्यतः निर्माण कार्यों, घरेलू कार्यों, वस्त्र कारखानों, ईंट भट्टों, परिवहन और कृषि कार्य में लगाये जाते हैं।

भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के श्रमिक भाग के सचिव जेइसन वडासेरी ने कहा, ″उन्हें अक्सर भोजन, आवास, पेयजल, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और बैंकिंग सेवा आदि तक पहुंचने सहित, मूलभूत अधिकारों से वंचित होना पड़ता है। वे बहुधा सामाजिक सुरक्षा और कानूनी सुरक्षा से रहित खराब स्थितियों में काम करते हैं।″

उन्होंने कहा कि हालांकि भारत में लाखों प्रवासी हैं, लेकिन उनके आंदोलनों और संपर्क विवरणों को प्रलेख करने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है। जब लोग विस्थापन करते हैं, तब उन्हें कुछ नियम और प्रलेखन की आवश्यकता होती है। प्रवास अच्छा है, यदि यह संरचित और सुरक्षित है।

उन्होंने कहा कि नई प्रणाली इन श्रमिकों के लिए यह सुनिश्चित करने में मदद करेगी कि वे तस्करी या शोषण के शिकार न हों। इसके अलावा किसी भी कठिनाई के मामले में, वे सुविधा केंद्रों पर रिपोर्ट कर सकें।








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