2017-03-16 11:55:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ 81 (भाग-2)


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"हमारे शक्तिशाली ईश्वर के लिये आनन्द का गीत गाओ। याकूब के ईश्वर का जयजयकार करो। गीत गाओ डफली बजाओ, सुरीली वीणा और तानपूरा सुनाओ। पूर्णिमा के दिन, हमारे उत्सव के दिन, नये मास की तुरही बजाओ। यही इस्राएल का विधान है, याकूब के ईश्वर का आदेश है।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 81 वें भजन के प्रथम पाँच पद। इन पदों के पाठ से ही विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। वस्तुतः, स्तोत्र ग्रन्थ का 17 पदों वाला 81 वाँ भजन शिविर पर्व यानि तम्बुओं के पर्व पर गाया जानेवाला आसाफ़ द्वारा रचित गीत है। शिविर पर्व मनाने के कई कारण थे। सर्वप्रथम तो यह नई फसल के कटने पर मनाया जाता था, द्वितीय, यह मिस्र की दासता से मिली मुक्ति हेतु ईश्वर के प्रति धन्यवाद का पर्व है और फिर इस्राएली लोग ग्रीष्म ऋतु के समापन एवं वर्षा के आरम्भ होने के उपलक्ष्य में इस पर्व को मनाया करते थे। शिविर पर्व भक्त समुदाय के लिये ईश्वर से विशिष्ट अनुग्रह की याचना का भी पर्व है। इस अवसर पर वे वर्षा के आने के लिये तो प्रार्थना करते थे क्योंकि वर्षा के बिना उनका जीना असम्भव था और इसी प्रार्थना में वे प्रभु से यह भी याचना करते थे कि वे उनपर अपने आत्मा को प्रवाहित करें।   

श्रोताओ, कोई भी पर्व हो उसका समारोह किसी महत्वपूर्ण या विशेष घटना के स्मरणार्थ मनाया जाता है। पर्वों पर गायन, वादन और खुशियाँ मनाना स्वाभाविक है। इस्राएलियों के शिविर पर्व में भी यही होता था, साथ ही इस्राएली लोग शिविर पर्व के मनाये जाने को ईश इच्छा मानते थे। ग़ौर करें कि 81 वें भजन के शब्द, "आनन्द का गीत गाओ", "ईश्वर का जयजयकार करो" आदि सभी बहुवचन में किये गये आह्वान हैं। यहाँ सम्पूर्ण समुदाय को पर्व मनाने के लिये आमंत्रित किया गया है। सभी को ईश्वर की स्तुति करने के लिये निमंत्रण दिया गया है। पर्व चाहे कोई भी हो, किसी भी धर्म के लोगों का हो, पर्व एक सामुदायिक घटना है, वह एकल व्यक्तियों की घटना नहीं है। वह सदैव एकसाथ मिलकर मनाया जाता है और ऐसा ही प्राचीन व्यवस्थान के युग में भी था। 15 दिनों तक जारी रहनेवाला उत्सव मनाना नये चाँद के साथ डफली, वीणा और तानपूरा बजाकर शुरु होता था तथा पूर्णिमा के दिन नये मास की तुरही से उसका समापन होता था क्योंकि "यही इस्राएल का विधान है, यही याकूब के ईश्वर का आदेश है"। श्रोताओ, "यही याकूब के ईश्वर का आदेश है" शब्दों से भजनकार भक्त समुदाय के समक्ष यह स्पष्ट कर देता है कि शिविर पर्व मनाना ईश्वर का आदेश है, यह ईश इच्छा के अनुकूल है। भजनकार का कहना है कि पर्व मनाना इसलिये आवश्यक है ताकि मानव यह अनवरत ध्यान में रखे कि प्रभु ईश्वर ही उसके सृष्टिकर्त्ता, उसके पालनहार और उसके उद्धारकर्त्ता हैं तथा उनकी स्तुति एवं आराधना कर ही मनुष्य ईशकृपा का भागी बनता है।

आगे, 81 वें भजन के छठवें, सातवें एवं आठवें पदों में भजनकार ने यह सन्देश देना चाहा है कि हालांकि ईश्वर हमारी परीक्षा लेते हैं और हमारी प्रार्थना देर से सुनी जाती है तथापि, जब-जब मनुष्य ने ईश्वर को पुकारा तब-तब उन्होंने उसकी पुकार सुनी तथा उसे उसके संकटों से मुक्ति दिलाई। ये पद इस प्रकार हैं: "जब वह मिस्र के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ, तो उसने युसुफ़ के लिये यह नियम बनाया। उसने एक अपरिचित वाणी को यह कहते सुना, मैंने उनके कन्धों पर से भार उतारा और उनके हाथ टोकरों से मुक्त हो गये। तुमने संकट में मेरी दुहाई दी और मैंने तुमको छुड़ाया। मैंने अदृश्य रहकर तुमको मेघ के गर्जन में से उत्तर दिया। मैंने मरीबा के जलाशय के पास तुम्हारी परीक्षा ली।"

श्रोताओ, सतही दृष्टि से यदि देखा जाये तो 81 वें भजन के रचयिता ने प्राचीन व्यवस्थान के निर्गमन ग्रन्थ में निहित इस्राएली जाति की दासता और मुक्ति की कहानी को पढ़ा था और उसी के आधार पर उसने यह गीत रचा। ऐसा प्रतीत होना स्वाभाविक है तथापि, कोई भी व्यक्ति भले ही वह कितना भी पढ़ा-लिखा और ज्ञानी क्यों न हो प्रभु की स्तुति के लिये तब तक प्रेरित नहीं हो सकता जब तक उसके हृदय में ये भाव प्रस्फुटित न हों। मिस्र की गुलामी से मुक्ति की घटना को पढ़ लेने के बाद भजनकार के हृदय में यह प्रेरणा जागृत हुई कि वह ईश्वर की स्तुति करे तथा सम्पूर्ण इस्राएली समुदाय को ऐसा करने के लिये आमंत्रित करे। उनके मन में यह चेतना जागृत हुई कि वह इस्राएली लोगों को याद दिलाये कि प्रभु ईश्वर ने उनके कन्धों पर से भार उठाया था। उन्हें यह स्मरण दिलाये कि इस्राएली लोग ईश्वर के विरुद्ध बड़बड़ा रहे थे तब मेघ गर्जन के बीच से प्रभु बोले थे जिससे उन्हें मार्गदर्शन मिला था। भजनकार याद दिलाता है कि हालांकि, मरीबा के जलाशय के पास प्रभु ने उनकी परीक्षा ली थी तथापि, सिनई पर्वत को चीरकर निकली ज्वाला के बीच से प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी थी ताकि ईश प्रजा भटक न जाये अपितु अपने गन्तव्य स्थान तक सुरक्षित पहुँच जाये।

81 वें भजन के अग्रिम तीन पदों में यानि 9 से लेकर 11 तक के पदों में भजनकार ईश्वर द्वारा दी गई चेतावनी का स्मरण दिलाता है। वह उन्हें उस क्षण की याद दिलाता है जब ईश्वर ने उनके समक्ष अपने दस नियम प्रस्तावित किये थे। श्रोताओ, इन पदों की व्याख्या हम अपने अगले प्रसारण में करेंगे, आज का प्रसारण हम इनके पाठ से ही समाप्त कर रहे हैं। 81 वें भजन के ये तीन पद इस प्रकार हैं, "मेरी प्रजा! मेरी चेतावनी पर ध्यान दो! इस्राएल मेरी बात सुनो। तुम्हारे बीच कोई पराया देवता नहीं रहेगा, तुम किसी अन्य देवता की आराधना नहीं करोगे। मैं ही तुम्हारा प्रभु ईश्वर हूँ।"








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