2017-03-09 10:37:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचयः स्तोत्र ग्रन्थ, भजन 81


पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"विश्व मण्डल के ईश्वर! वापस आने की कृपा कर, स्वर्ग से हम पर दया दृष्टि कर। आ कर उस दाखबारी की रक्षा कर, जिसे तेरे दाहिने हाथ ने रोपा है। तेरी दाखलता काटकर जलाई गयी है। तेरे धमकाने पर तेरी प्रजा नष्ट होती जा रही है। अपने कृपा पात्र पर अपना हाथ रख, उस मनुष्य पर, जिसे तूने शक्ति प्रदान की थी। तब हम फिर कभी तुझे नहीं त्यागेंगे। तू हमें नवजीवन प्रदान करेगा। और हम तेरा नाम लेकर तुझसे प्रार्थना करेंगे। विश्वमण्डल के प्रभु ईश्वर! हमारा उद्धार कर, हम पर दयादृष्टि कर और हम सुरक्षित रहेंगे।" 

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 80 वें भजन के अन्तिम पाँच पद। इन पदों की व्याख्या से ही हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। इन पदों में ईश प्रजा प्रभु से आर्त याचना करती है कि वे वापस उसके पास आयें तथा उसके कष्टों से उसे उबारें। इस तथ्य का हम सिंहावलोकन कर चुके हैं कि 80 वें भजन के एक से लेकर सात तक के पद ईश प्रजा की पहली प्रार्थना थी, 08 से लेकर 14 तक के पद दूसरी प्रार्थना और 15 से लेकर 20 तक के पदों में तीसरी प्रार्थना जिसमें इस्राएली जाति ईश्वर को एक प्रकार से चुनौती देती है और उनसे कहती है कि वे उस दाखबारी को आकर स्वयं देखें कि किस निष्ठुरता से उसकी दाखलताएँ काट डाली गई हैं। वह प्रभु ईश्वर को याद दिलाती है कि वह उनका पहलौठा पुत्र है। इस्राएल ही वह प्रजा है जिसे प्रभु ने शक्ति प्रदान की थी और अब जब उसकी दाखलताएँ काट कर जलाई जा रही थी प्रभु आयें और उसका उद्धार करें।

एक प्रकार से स्तोत्र ग्रन्थ का 80 वाँ भजन इस्राएल रूपी उस अँगूरी की कहानी है जो अपने मिशन में विफल हो गई थी। बाईबिल आचार्यों का मानना है कि 80 वें भजन में इस्राएल की उन नौ जातियों की प्रार्थना निहित है जो निष्कासन से कभी वापस नहीं लौटी थीं। तथापि, हमें नबी एज़ेकियल की आशा पर ग़ौर करना चाहिये जिन्होंने कहा था कि कुछ वापस लौटी थीं और उन्होंने ईश आज्ञा का पालन किया था। इस स्थल पर यह ध्यान में रखना हितकर होगा कि प्रभु ईश्वर की संविदा सदा सर्वदा के लिये है। ईश आज्ञाओं का उल्लंघन करनेवालों को ही ऐसा कष्ट होता है जैसा इस्राएल की कुछेक जातियों को हुआ था किन्तु जो ईश्वर के आदेशानुकूल जीवन यापन करते हैं वे सुख समृद्धि एवं मुक्ति के भागीदार बनते हैं।

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 81 वें भजन पर दृष्टिपात करें। 17 पदों वाला 81 वाँ भजन शिविर पर्व के अवसरों पर गाया जानेवाला आसाफ़ द्वारा रचित गीत है। यह भजन शिविर पर्व यानि तम्बुओं के पर्वों पर गाया जानेवाला गीत है। जैसे-जैसे समय बीता इस्राएल में तम्बू या शिविर पर्व के विकसित होने के तीन कारण देखें जा सकते हैं। सर्वप्रथम तो यह पर्व तीसरी फसल कटने पर मनाया जानेवाला पर्व था। लगभग सितम्बर माह में अंगूर की फसल काटी जाती है और यह उसी समय का उत्सव रहा करता था। द्वितीय, जैसा कि 81 वें भजन के छठवें पद में हम पढ़ते हैं, यह गीत मिस्र की गुलामी से इस्राएल को मिली मुक्ति हेतु ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन का गीत है। इस पर्व के उपलक्ष्य में इस्राएली लोग वृक्षों की छालटियों एवं पत्तों से बने तम्बुओं में रहते थे जिससे वे उन दिनों का ना भूले जब लाल सागर पार कर लेने के उपरान्त, प्रतिज्ञात देश तक जानेवाली तीर्थयात्रा के दौरान, सिनई पर्वत के बीहड़ों में उन्होंने कष्टकर जीवन यापन किया था। तृतीय, ग्रीष्म ऋतु समाप्त हो चुकी थी और वर्षा ऋतु आरम्भ होने को थी। वर्षा के आने पर ही नव कृषक वर्ष का चक्र चल सकता था और इसी के अनुसार इस्राएली लोगों ने इसे नववर्ष की शुरुआत का पर्व मान लिया।

इसी पर्व का सन्दर्भ नवीन व्यवस्थान में सन्त योहन रचित सुसमाचार में हमें मिलता है। सुसमाचार के सातवें अध्याय के 37 वें पद में हम पढ़ते हैं, "पर्व के अन्तिम दिन और मुख्य दिन येसु खड़े हुए और उन्होंने पुकार कर कहा, यदि कोई प्यासा हो, तो वह मेरे पास आये।" श्रोताओ, ध्यान देने योग्य तथ्य यह कि 81 वें भजन के रचयिता के युग में इस्राएल ने प्रभु से वर्षा के आने के लिये प्रार्थना की थी जिसके बिना उनका जीना असम्भव था और उसकी इस प्रार्थना में यह याचना भी जुड़ी थी कि प्रभु ईश्वर अपना आत्मा ईशप्रजा तक प्रवाहित करें।

81 वें भजन के प्रथम पाँच पद इस प्रकार हैं: "हमारे शक्तिशाली ईश्वर के लिये आनन्द का गीत गाओ। याकूब के ईश्वर का जयजयकार करो। गीत गाओ डफली बजाओ, सुरीली वीणा और तानपूरा सुनाओ। पूर्णिमा के दिन, हमारे उत्सव के दिन, नये मास की तुरही बजाओ। यही इस्राएल का विधान है, याकूब के ईश्वर का आदेश है।"

भजन के इन शब्दों से स्पष्ट है कि किसी पर्व के आयोजन पीछे कोई न कोई महत्वपूर्ण बात होती है जिसके बिना कोई पर्व नहीं होता और 81 वें भजन का पर्व इसलिये मनाया जा रहा था कि यह प्रभु की इच्छा था कि लोग शिविर पर्व मनायें। उक्त पदों के "आनन्द का गीत गाओ", "ईश्वर का जयजयकार करो" आदि सभी बहुवचन में किये गये आह्वान हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई भी पर्व सामुदायिक रूप से मनाई जानेवाली घटना है, वह एकल व्यक्तियों की घटना नहीं हो सकता। पर्व सदैव एकसाथ मिलकर मनाया जाता है और ऐसा ही प्राचीन व्यवस्थान के युग में भी था। 15 दिनों तक जारी रहनेवाला उत्सव मनाना नये चाँद के साथ डफली, वीणा और तानपूरा बजाकर शुरु होता था तथा पूर्णिमा के दिन नये मास की तुरही से उसका समापन होता था क्योंकि "यही इस्राएल का विधान है, यही याकूब के ईश्वर का आदेश है"। 








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