2017-01-30 15:09:00

कुष्ठ रोगियों को स्वीकृति, एकात्मता एवं न्याय की आवश्यकता, कार्डिनल टर्कशन


वाटिकन सिटी, सोमवार, 30 जनवरी 2017 (वीआर सेदोक): सम्पूर्ण मानव विकास को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर टर्कशन ने विश्व कुष्ठ रोग दिवस के अवसर पर, एक वक्तव्य जारी कर कहा कि इस बीमारी का भय जो मानव इतिहास में एक भयावह बीमारी के रूप में जानी जाती है, लोगों की प्रतिष्ठा को नष्ट कर देती है किन्तु हमें उनकी और अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए ताकि वे स्वीकृति, एकात्मता एवं न्याय की भावना का एहसास कर सकें।

विश्व कुष्ठ रोग दिवस 29 जनवरी को मनाया गया।

कार्डिनल ने कहा कि कुष्ठ रोग जिससे वर्ष 1985 में करीब 50 लाख लोग प्रभावित थे अब प्रत्येक वर्ष इससे करीब 2 लाख लोग ग्रसित होते हैं किन्तु अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

उन्होंने कहा कि मात्र रोग मुक्ति काफी नहीं है। एक व्यक्ति जो इस तरह की बीमारी से चंगा किया जाता है उसे अपने वास्तविक समाज, परिवार, समुदाय, स्कूल तथा कार्य के क्षेत्र में पूरी तरह शामिल किया जाना आवश्यक है। शामिल किये जाने की इस प्रक्रिया को बढ़ावा देने हेतु गठित पूर्व कुष्ठ रोगियों के संघ को समर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाना है। ऐसे लोगों के साथ भारत, ब्राजील तथा गायना ने अच्छी समझदारी दिखाई है जो उनका स्वागत करती, आपसी सहयोग प्रदान करती एवं सच्ची भाईचारा की भावना प्रदर्शित करती है। 

बाइबिल में जब येसु ने कुष्ठ रोगी को चंगाई प्रदान की तब उन्होंने उसे याजकों के पास जाकर अपने को दिखाने और शुद्ध किये जाने को प्रमाणित करने की सलाह दी थी जो दर्शाता है कि येसु ने कुष्ठ रोगी को न केवल चंगाई प्रदान की थी किन्तु समाज में उसकी पूर्ण सहभागिता का दावा करने का भी परामर्श दिया था अर्थात् मानव संघ में प्रवेश करने का।

उन्होंने वक्तव्य में कहा कि कल की तरह ही आज भी कुष्ठ रोगी तथा उनके लिए कार्य करने वालों के लिए भारी चुनौती है। इस बीमारी द्वारा जो एक गहरी निशान छोड़ दी गयी है आज भी बनी हुई है। इस बीमारी का भय जो मानव इतिहास में बहुत अधिक भयावह माना जाता था समुदाय द्वारा ज्ञान के अभाव में, इस रोग से मुक्त लोगों को भी बहिष्कृत मानता जाता था जो अपनी पीड़ा तथा विभिन्न तरह के भेदभाव के कारण अपनी प्रतिष्ठा की भावना को खो देते थे। उन्होंने कहा कि जो लोग कुष्ठ रोग के शिकार हैं हमें उनकी और अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए ताकि वे स्वीकृति, एकात्मता एवं न्याय की भावना का एहसास कर सकें। 








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