2016-12-08 15:32:00

निष्कलंक गर्भागमन महापर्व पर संत पापा का संदेश


वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 8 दिसम्बर 2016 (वीआर सेदोक): संत पापा फ्राँसिस ने बृहस्पतिवार 8 दिसम्बर को माता मरियम के निष्कलंक गर्भागमन महापर्व के उपलक्ष्य में संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में एकत्रित विश्वासियों के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर मुक्ति इतिहास में ईश्वर और मानव के बीच संबंध के कारण दो महत्वपूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डाला, अच्छाई एवं बुराई का प्रादुर्भाव।

संत पापा ने कहा, ″उत्पति ग्रंथ हमें, न केवल सृष्टि को प्रस्तुत करता है जो कि ईश्वर की अपेक्षा अपनी इच्छा को अधिक महत्व देता तथा अपने को संतुष्ट करने का प्रयास करता है किन्तु यह भी दिखलाता है कि मानव किस तरह ईश्वर के सानिध्य से अपने को दूर कर लिया। वह अपने आप को खो दिया तथा भय खाने, छिपने एवं अपने आसपास के लोगों को दोष देने का प्रयास किया।″ संत पापा ने कहा कि यही पाप है किन्तु ईश्वर उनकी बुराई पर उन्हें नहीं छोड़ देते, उन्हें खोजते तथा प्रश्न करते हैं, ″तुम कहाँ हो?″ यह उस माता-पिता के प्रश्न के समान है जो अपने खोये हुए पुत्र को ढूँढ़ते हैं। ईश्वर बड़े धीरज से उस दूरी को पाटते हैं।

दूसरा महत्वपूर्ण कदम जिसको हम सुसमाचार पाठ में पढ़ते हैं वह है ईश्वर हमारे बीच रहने आये, जिसके लिए उन्होंने एक मानव का रूप धारण किया और यह तभी संभव हो पाया जब माता मरियम ने अपने गर्भ में उन्हें स्वीकार किया। जब ईश्वर ने मानव जाति के बीच रहने हेतु अपनी यात्रा आरम्भ की तब वे कुँवारी मरियम से होकर हमारे बीच आये। इस रास्ते पर अपने आरम्भिक महीनों को उन्होंने माता मरियम के गर्भ में व्यतीत किया। वे यद्यपि ईश्वर थे किन्तु मानव का पथ अपनाया, पाप को छोड़ वे सब कुछ में हमारे समान बने। उन्होंने निष्कलंक कुँवारी मरियम को ही क्यों चुना? सुसमाचार उन्हें कृपा पूर्ण कहता है जो कृपाओं से भरी थी अर्थात् उनमें पाप के लिए कोई स्थान नहीं था। जब हम माता मरियम के पास आते हैं हम इस सुन्दरता को देख सकते हैं तथा हम भी उन्हें कृपा पूर्ण कहकर पुकारते हैं।

मरियम ने उत्तर दिया, मैं प्रभु की दासी हूँ। उन्होंने यह नहीं कहा कि मैं अभी प्रभु की इच्छा पूरी करूँगी, मैं तैयार हूँ अथवा मैं इसे देख लूँगी। उन्होंने बिना शर्त पूरा उत्तर दिया। इस प्रकार, मरियम के ‘हाँ’ ने ईश्वर के रास्ते को हमारे तक खोल दिया। यह इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। अंततः इस विनम्र हाँ ने अवज्ञ रूपी स्वार्थ के पाप से चंगाई प्रदान की।

संत पापा ने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा कि हम प्रत्येक का भी एक मुक्ति इतिहास है जो ‘हाँ’ और ‘न’ से बना है। उन्होंने कहा कि हम बहुधा हाँ को टालते और अच्छाई के द्वार को बंद करते हैं और इसका फायदा बुराई उठाता है।

संत पापा ने सभी को सलाह दी कि हम पाप को नहीं किन्तु ईश्वर को हाँ कहें।

उन्होंने आगमन काल का स्मरण दिलाते हुए कहा कि इस यात्रा में ईश्वर हमारा इंतजार करते एवं हमसे हाँ की आशा करते हैं जिसके द्वारा हम उन्हें बता सकें कि हम उन पर विश्वास करते, उन पर भरोसा रखते और उन्हें प्यार करते हैं। उन्हें यह उत्तर दे कि अच्छाई के लिए आपकी इच्छा पूरी हो। माता मरियम की तरह आज हम भी उदारता एवं विश्वास के साथ ईश्वर को हाँ कह सकें। 








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