2016-11-22 11:25:00

प्रेरक मोतीः सन्त सिसिलिया


वाटिकन सिटी, 22 नवम्बर सन् 2016:

चौथी सदी में तत्कालीन लोकप्रिय कामुक उपन्यासों की जगह लेने के उद्देश्य से, शुद्ध जीवन की स्तुति में सीसिलिया और वालेरियन नामक व्यक्ति के प्रेम प्रसंगों पर एक ग्रीक धार्मिक उपन्यास लिखा गया था। परिणामस्वरूप, बेहतर सबूत प्रस्तुत होने से पूर्व, यह निष्कर्ष निकाला गया कि रोम में सन्त सिसिलिया का नाम तब तक अज्ञात था जब तक सन्त पापा जेलासियुस (496) ने उनकी प्रस्तावना संस्कार-ग्रन्थ में नहीं कर दी थी। कहा जाता है कि पाँचवी शताब्दी में रोम में सन्त सिसिलिया को समर्पित एक गिरजाघर था जिसमें सन्त पापा सिमाखुस ने एक धर्मसभा का भी आयोजन कराया था। 

सन्त सीसिलिया अपनी योग्यता एवं सौन्दर्य के लिये अपने युग में विख्यात थी किन्तु इसके साथ-साथ यह भी कहा जाता है कि वे ईश्वर के बहुत क़रीब थी तथा अनवरत प्रार्थना में लीन रहा करती थीं।   

रोम शहर में सीसिलिया नामक एक कुंवारी थी जो एक बहुत ही धन-सम्पन्न परिवार से थी तथा जिसका विवाह वालेरियन नामक युवक से कर दिया गया था। वह टाट के कपड़े ओढ़ा करती, उपवास किया करती तथा अपने कौमार्य की रक्षा के लिए संतों, स्वर्गदूतों, और कुंवारी मरियम से विनती किया करती थी।  उसके विवाह समारोह के दौरान, बताया जाता है कि, उसने अपने मन में ईश्वर के लिये गाना गाया और अपने पति को बताया कि वह कौमार्य व्रत ले चुकी थी तथा एक स्वर्गदूत निरन्तर उसकी रक्षा कर रहा था। सबूत के रूप में वालेरियन ने स्वर्गदूत को देखना चाहा तब सिसिलिया ने उनसे कहा कि वे उस स्वर्गदूत को देखने में तब ही सक्षम होंगे जब वे तीसरे मील के पत्थर आपिया मार्ग तक की यात्रा कर सन्त पापा अरबन से बपतिस्मा ग्रहण करेंगे।

बपतिस्मा के बाद, वालेरियान अपनी पत्नी के पास लौटे तथा उन्होंने उसकी बगल में एक दूत को बैठा पाया। उन्होंने यह भी देखा कि देवदूत ने सिसिलिया को गुलाब और लिली के फूलों का एक ताज पहनाया था। जब वालेरियन के भाई ने यह सुना तो उसने भी बपतिस्मा ग्रहण कर लिया  तथा दोनों ने रोम शहर के अध्यक्ष तुर्कियुस आलमाखियुस द्वारा उस युग में मारे जा रहे सन्तों की दफन क्रिया का काम शुरु कर दिया। अंत में दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर लिया गया और नगराध्यक्ष के समक्ष पेश किया गया। उनसे देवताओं को बलि अर्पित करने को कहा गया तथा उनके इन्कार करने पर उन्हें मार डाला गया। 

पति और जेठ की हत्या के उपरान्त सिसिलिया जगह-जगह उपदेश देकर अपना जीवन व्यतीत करने लगी। अपने जीवन काल में वे कम से कम 400 लोगों के मनपरिवर्तन में सफल हुई थी। इन सभी ने सन्त पापा अरबन से बपतिस्मा ग्रहण कर ख्रीस्तीय धर्म का आलिंगन कर लिया था।

बाद में सिसिलिया को भी गिरफ्तार कर लिया गया और स्नानागार में दम घोटने की कोशिश की गई। एक दिन और एक रात उन्हें स्नानागार में ही घायल छोड़ दिया गया तथा बाहर से आग लगा दी गई किन्तु चमत्कारवश सिसिलिया को आँच तक नहीं आई और न ही उनका पसीना छूटा। आलमाखियुस ने जब यह सुना तो वह आग बबूला हो गया तथा उसने एक जल्लाद को सिसिलिया का सिर काटने के लिये भेज दिया। जल्लाद ने उसपर तीन बार प्रहार किया किन्तु उसका सिर धड़ से अलग करने में वह असक्षम रहा जिसके बाद वह रक्तरंजित हालत में सिसिलिया को छोड़कर भाग निकला। जनसमुदाय सिसिलिया को देखने लिये उमढ़ पड़ा जो लहुलुहान होते हुए भी उन्हें उपदेश दे रही थी। लोगों ने सिसिलिया का रक्त जमा किया और उनके प्रति श्रद्धा दर्शाई। तीन दिनों तक अकथनीय दुःख सहने के बाद सिसिलिया ने अपने प्राण त्याग दिये। उनका अन्तिम संस्कार सन्त पापा अरबन के नेतृत्व में ही उनके याजकों द्वारा सम्पन्न हुआ।   

सन्त सिसिलिया संगीत की संरक्षिका मानी जाती हैं क्योंकि अपने विवाह के क्षण उन्होंने अपने दिल में स्वर्गिक संगीत सुना था। कलात्मक कृतियों में सन्त सिसिलिया को वाद्यराज अथवा ऑरगन सहित दर्शाया जाता है। 

1599 ई. में अधिकारियों ने सिसिलिया के शव को कब्र से बाहर निकाला था जो ज्यों का त्यों मिला। समस्त सन्तों में सिसिलिया पहली सन्त हैं जिनका शव बिलकुल भी भ्रष्ट नहीं हुआ था। अधिकारियों ने देखा कि सिसिलिया का शव रेशम के आवरण से ढका था जिन्होंने सोने से कढ़ा हुआ परिधान धारण किया था। इतना देख लेने के बाद अधिकारियों ने जाँच पड़ताल करना व्यर्थ समझा। उन्होंने यह भी बताया था कि सिसिलिया के शव से एक रहस्यमय एवं रमणीय फूल की खुश्बू महक रही थी।      

रोम में सन्त सिसिलिया के अवशेष त्रासतेवेरे के एक गिरजाघर की वेदी के नीचे सुरक्षित हैं।

चिन्तनः "धन्य हैं वे जो अपने को दीन-हीन समझते हैं क्योंकि स्वर्ग राज्य उन्हीं का है" (मत्ती 5: 3)। 








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