2016-10-19 14:57:00

करुणा के प्रथम कार्य पर संत पापा की धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एवं बहनो सुप्रभात,

हम अपने जीवन में बहुत बार जरूरतमंद लोगों के बारे में असंवेदनशील हो जाते हैं। हमें अपने जीवन में सच्चाई को स्वीकार करते हुए उसका सामना करने की जरूर है इस तरह करुणा के सर्वप्रथम कार्य में हमें भूखों और प्यासों की सेवा करने का निमंत्रण मिलता है। हम संचार माध्यमों द्वारा भोजन और पानी की कमी और इसके अभाव में प्रभावित लोगों, विशेषकर, बच्चों के बारे में कितनी बार सुनते हैं।

इस तरह समाचारों में कुछ निश्चित प्रतिरुपों को देख और सुनकर लोग प्रभावित होते और जरूरतमंदों की सहायता हेतु पहल करते हैं। वे उनके लिए उदारतापूर्वक दान देते जिसके द्वारा उनकी मदद की जा सके। इस तरह की उदारता हमारे लिए आवश्यक है यद्यपि ऐसे कार्यों में हम प्रत्यक्ष रुप से सम्मिलित नहीं होते हैं। लेकिन जब हम चौराहों से गुजरते हुए किसी आवश्यकता में पड़े हुए को देखते हैं या कोई गरीब हमारे दरवाज़ों को खटखटाता है तो यह हमारे लिए एक अलग परिस्थिति होती है क्योंकि हम कोई प्रतिरूप को नहीं देखते वरन् हमारा साक्षात्कार व्यक्तिगत रुप से आवश्यकता में पड़े व्यक्ति से होता है। ऐसी परिस्थिति में हम अपनी आँखों के सामने उस व्यक्ति को देखते हैं और ऐसी स्थिति में हम उस व्यक्ति के प्रति कैसी प्रतिक्रिया दिखलाते हैं?  क्या हम उस व्यक्ति से जितनी जल्दी हो सके दूर जाने का प्रयास करते या रुक कर उसके जीवन में रुचि लेते हुए उससे बातें करते और उनकी सहायता करने की कोशिश करते हैं? वह व्यक्ति आप से कुछ खाने या पीने की माँग करता हो। हम एक क्षण सोचें कि कितनी बार हम “हे पिता हमारे” की विनती उच्चरित करते लेकिन फिर भी हम इस प्रार्थना के शब्दों पर ध्यान नहीं देते हैं, “आज की रोटी हमें दे।”
धर्मग्रंथ के स्तोत्र में हम पाते हैं कि ईश्वर सभी जीवित प्राणियों को खाने की चीज़ें देता है। (स्तो.136.25) भूख का अनुभव एक कठिन अनुभव है। लोगों ने युद्ध और आकाल के समय में इसका अनुभव किया है। यह अनुभव आज भी हमारे जीवन में होता है लेकिन हमारे पड़ोस में कितनी ही खाने की चीज़ें बर्बाद होती हैं। संत याकूब हमें अपने पत्र में लिखते हैं, “भाइयो, यदि कोई कहता है कि मैं विश्वास करता हूँ किन्तु उसके अनुसार आचरण नहीं करता, तो इससे क्या लाभ? क्या विश्वास ही उसका उद्धार कर सकता है? मान लीजिए कि किसी भाई या बहन के पास पहनने के लिए कपड़े न हों और न रोज-रोज खाने की चीजें। यदि आप लोगों में कोई उन से कहे, “खुशी से जाइए, गरम-गरम कपड़े पहनिए और भर पेट खाइए,” किन्तु वह उन्हें शरीर के लिए जरूरी चीज़ें नहीं दे, तो इस से क्या लाभ? इसी तरह कर्मों के अभाव में विश्वास पूर्ण रूप से निर्जीव होता है।” (याकू.2.14-17) मैं इस कार्य हेतु किसी को अपना प्रतिनिधि नियुक्त नहीं कर सकता। इस बेचारे को मेरी सेवा और निष्ठा पूर्ण कार्यों की जरूरत है।
धर्मग्रंथ के इन शब्दों के द्वारा येसु हमारा ध्यान उस ओर भी करते हैं जब लोग भीड़ की भीड़ उनके वचनों को सुनने हेतु उनके पीछे आये तो वे अपने चेलों से कहते हैं हम कहाँ से इनके लिए रोटियाँ खरीदे जिससे इतनों को खिलाया जा सके? (यो.6.5) और शिष्य उन्हें उत्तर देते हुए कहते हैं, “यह असंभव है, यह उचित होगा कि आप उन्हें जाने दें।” लेकिन येसु उन से कहते हैं, “नहीं, तुम ही उन्हें खाने को कुछ दो।” इस तरह थोड़ी रोटियों और मछलियों के द्वारा वे लोगों को खिलाते हैं। यह हमारे लिए एक अति महत्वपूर्ण शिक्षा है। यह हमें यही बतलाती है कि हमारे पास थोड़ा है यदि हम इसे येसु के हाथों में चढ़ाते और विश्वास के साथ बाँटते हैं तो यह अत्यधिक हो जाता है।
संत पापा फ्राँसिस ने सेवानिवृत्त संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें के विश्व पत्र “कारीतास इन वेरिताते”  को उद्भृत करते हुए कहा, “भूखों को खिलाना कलीसिया का एक नैतिक महत्वपूर्ण कार्य है। भोजन और पानी लोगों के जीवन का मौलिक अधिकार है अतः हमें जन चेतना जागृत करते हुए बिना भेद-भाव के इसे विश्व के लोगों हेतु उपलब्ध करने की जरूरत है।” संत पापा ने कहा कि हम येसु के वचनों को न भूले,“जीवन की रोटी मैं हूँ।” जो.6.35) और “जो प्यासा है वह मेरे पास आये।” (जो.7.37) येसु के वचन हम सभों के लिए है हम अपने जीवन में भूखों को खिलाते और प्यासों को पिलाते हुए ईश्वर के साथ अपना संबंध स्थापित करते हैं जिसे उन्होंने करुणा के चेहरे के रुप में अपने बेटे येसु ख्रीस्त में हमारे लिए प्रकट किया है।

इतना कहने के बाद संत पापा फ्राँसिस ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और आमदर्शन समारोह में उपस्थित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन किया और उन्हें जयंती वर्ष की शुभकामनाएँ अर्पित करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 








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