2016-10-17 16:32:00

संत जन प्रार्थना के रहस्य से अभिभूत


वाटिकन रेडियो सोमवार, 17 अक्तूबर 2016 (सेदोख) संत पापा फ्राँसिस ने रविवार 16 अक्टूबर को संत प्रेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए करीब 80 हजार विश्वासियों के साथ “कुरा ब्रोचेरो” के नाम से विख्यात आर्जेटीनाई “गाउको पुरोहित” के अलावे  इटली और फ्राँस के दो, स्पेन के एक और मैक्सिको के एक शहीद जोस संचेज देल रियो को संतों की श्रेणी में पदस्थापित किया।

उन्होंने संत घोषणा की धर्मविधि के दौरान अपने मिस्सा प्रवचन में कहा, “संत जन वे हैं जो अपने को प्रार्थना के रहस्य में पूर्णरूपेण सराबोर करते, वे अपने प्रार्थना में कठिनाई का अनुभव करते लेकिन अपने को पवित्र आत्मा की शक्ति द्वारा निदेशित होने देते हैं।”

संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैं, “हे प्रभु हममें एक उदार और विश्वासी हृदय उत्पन्न कर जिससे हम पवित्र आत्मा की शुद्धता में निष्ठा पूर्वक सदैव तेरी सेवा कर सकें।”

हम अपने प्रयास के द्वारा अपने में ऐसा हृदय तैयार नहीं कर सकते हैं। केवल ईश्वर ही हमारे लिए ऐसा कर सकते हैं अतः हम इस प्रार्थना के द्वारा अपने हृदयों को उनके लिए तैयार करने का विनय करें। इस तरह हम “प्रार्थना” की विषयवस्तु में प्रवेश करते हैं जो आज के पाठों का केन्द्रविन्दु है जो हम सबों को चुनौती प्रदान करती है। संतों ने अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। हम उनकी उदारता और विश्वास भरे हृदय हेतु ईश्वर का धन्यवाद करते हैं। उन्होंने प्रार्थना की और अपने चुनौतियों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए उन पर विजय पायी है।

संत पापा ने कहा कि हम भी मूसा के समान प्रार्थना करें जो ईश्वर भक्त प्रार्थना करने वाला नबी था। आज के प्रथम पाठ में हमने सुन कि अमालेकियों के विरुद्ध युद्ध के समय उन्होंने पर्वत की ऊँचाई में खड़ा होकर अपने हाथों को ऊपर उठे रख प्रार्थना की। लेकिन समय-समय में उनके हाथ थककर गिर जाते थे और उस समय शत्रु चुनी हुई प्रजा पर हावी हो जाती थी। इस तरह हारूण और हूर ने मूसा को पत्थर पर बैठाया और उनके हाथों को पकड़ कर ऊपर की ओर उठाये रखा इस तरह चुनी हुई प्रज्ञा युद्ध में विजय हुई।

कलीसिया हम सभों से इसी प्रकार की आध्यात्मिकता की कामना करती है, युद्ध के द्वारा विजय नहीं अपितु शांति के द्वारा विजय। मूसा की कहानी में हमारे लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है, प्रार्थना के प्रति हमारा समर्पण जो एक दूसरे के लिए हमारी सहायता की माँग करता है। हमारे जीवन में हम निश्चित रुप से थकान का अनुभव करेंगे। कभी-कभी हमें ऐसा लगेगा की हम अपने जीवन में आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं उन परिस्थितियों में भी हमें अपने भाई-बहनों के सहयोग करने की जरूरत है जिससे ईश्वर हमारे द्वारा अपने कार्य को पूरा करें।

संत पौलुस तिमथी अपने शिष्य और सह-कर्मी से निवेदन करते हैं कि वे उन बातों में सुदृढ़ बने रहें जिन्हें उन्होंने सीखा और विश्वास किया है।(2 ति. 3.14) लेकिन वे अपने प्रयास से वैसा नहीं कर पाते हैं उन्हें विश्वासी में बने रहने हेतु संघर्ष करना पड़ता है और इस संघर्ष के दौरान वे अपनी प्रार्थना के माध्यम विजय प्राप्त करते हैं। यह यदाकदा और संकोचपूर्ण प्रार्थना नहीं लेकिन यह येसु द्वारा सुसमाचार में बतलाई गयी, निरन्तर, बिना हताशा हुए की जाने वाली प्रार्थना है। यह हमारा ख्रीस्तीय जीवन है जहाँ प्रार्थनाओं में हमारी निरंतर हमें अपने विश्वास में मजबूत बने रहने और अपने जीवन द्वारा साक्ष्य देने को प्रेरित करता है। लेकिन हमारे हृदय की गहराई में हमें एक आवाज सुनाई पड़ती है, “प्रभु हम कैसे अपने जीवन में थकान का अनुभव न करें.., हम मानव हैं.. यहाँ तक की मूसा ने भी थकान का अनुभव किया।” हाँ हम सभी अपनी जीवन में थकान का अनुभव करते हैं, लेकिन फिर भी हम अपने में अकेले नहीं हैं, हम सभी शरीर के अंग हैं। हम सभी येसु ख्रीस्त, कलीसिया के अंग हैं हमारे हाथ-पैर रात-दिन स्वर्ग की ओर उठे हुए हैं अतः हम पुनर्जीवित येसु और पवित्र आत्मा का शुक्रिया अदा करते हैं। हम केवल कलीसिया और प्रार्थनाओं के माध्यम से ईश्वर का धन्यवाद करते हुए अपने विश्वास में दृढ़़ बने रहते और इसका साक्ष्य देते हैं।

हम सुसमाचार में येसु की प्रतिज्ञा को सुनते हैं, “ईश्वर अपने चुने हुए लोगों के लिए न्याय की व्यवस्था करेगा जो दिन-रात उनकी दुहाई देते हैं।” (लूका. 18.7) यह हमारे प्रार्थना का रहस्य है, हम उनकी दुहाई दें, हम हिम्मत न हारे और यदि हम थक जाते हैं तो दूसरों से मदद की माँग करें कि वे हमारे हाथों को ऊपर उठाये रखने में हमारी मदद करें। यह प्रार्थना येसु ने हमें पवित्र आत्मा को प्रदान करते हुए सिखालाया है। प्रार्थना करने का अर्थ दुनिया के आदर्शों में पनाह लेना नहीं है, यह झूठी चीजों की ओर भागना नहीं और न ही अपने स्वार्थ मय शांति में बने रहना है। इसके विपरीत प्रार्थना करने का अर्थ अपने में संघर्ष करना है साथ ही अपने को पवित्र आत्मा द्वारा संचालित होने देना है क्योंकि पवित्र आत्मा हमें प्रार्थना करने सिखलाते हैं। वे हमारा मार्ग दर्शन करते और हमें बेटे-बेटियों की तरह प्रार्थना करना सिखलाते हैं।

संतों ने अपने को प्रार्थना के रहस्य से सराबोर कर दिया। उन्होंने अपने प्रार्थनामय जीवन में संघर्ष का अनुभव किया और इस संघर्ष में अपने को पवित्र आत्मा द्वारा संचालित होने दिया। वे अपने जीवन के अंतिम समय तक संघर्ष करते रहे और अपने प्रयास के कारण नहीं वरन् ईश्वर की शक्ति द्वारा विजय प्राप्त की। आज के सात साक्ष्य जिन्हें हम संतों की श्रेणी में पदस्थापित करते हैं विश्वास और प्रेम की एक अच्छी लड़ाई और अपने प्रार्थनामय जीवन के द्वारा लड़ी है। अपने प्रार्थनामय जीवन के कारण वे अपने विश्वास, उदारता और अपने हृदय से ईश्वर के प्रति निष्ठावान बने रहें। अपनी प्रार्थना और उदाहरणों के द्वारा वे हमें भी प्रार्थनामय व्यक्ति बनने में मदद करें। हम रात-दिन बिना थके ईश्वर की दुहाई दें। हम पवित्र आत्मा द्वारा संचालित किये जाये और अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा दूसरों की सहायता करें जिससे हमारे हाथ ईश्वर के करुणामय विजय प्राप्ति तक उठे रहें। 








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