2016-09-27 16:01:00

भारत में भूख के खिलाफ 3 हजार कार्यकर्ता


मुम्बई, मंगलवार, 27 सितम्बर 2016 (एशिया समाचार): भारत के 15 राज्यों से करीब 3 हजार  कार्यकर्त्ताओं ने झारखंड के रांची शहर में, भारत में भूख की समस्या पर चर्चा करने और मातृत्व लाभ के समर्थन हेतु 23 से 25 सितम्बर तक आंदोलन के छठी राष्ट्रीय सभा में भाग लिया। आम सभा में पश्चिम बंगाल के भोजन का अधिकार अभियान “राइट टु फूड कम्पेन” (आरटीएफ) के समन्वयक फादर हृदय ज्योति एस.जे और वे सभी कार्यकर्त्ता शामिल थे जो भूख और कुपोषण से मुक्त देश के निर्माण के लिए संघर्ष करते हैं।

येसु समाजी फादर हृदय ज्योति ने एशिया न्यूज से कहा, "हम सरकारी आर्थिक सहायता मुहैया कराने हेतु कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करते हैं जिससे कि सभी लोगों को पौष्टिक भोजन मिल सके।"

फादर ज्योति, कोलकाता येसु समाजियों द्वारा संचालित "उदायनी" समाज संस्थान के समन्वयक और एक प्रमुख कार्यकर्ता हैं जिन्होंने महिलाओं के स्व-सहायता प्रशिक्षण समूह की 252 महिलाओं और 15 पुरुषों के साथ छठे राष्ट्रीय सभा में भाग लिया।  23 सितम्बर को हजारों की संख्या में कार्यकर्ता रांची रेलवे स्टेशन से जुलूस के साथ गोसनर हाई स्कूल के परिसर पहुँचे जहाँ दो दिवसीय सभा का आयोजन किया गया था।

केंद्रीय सरकार द्वारा भूख कम करने के लिए त्रिस्तरीय कीमत पर खाद्य पदार्थों की बिक्री, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माताओं के लिए मुफ्त अन्न देने की योजना है हालांकि इस योजना के कार्यान्वयन हेतु बहुत कुछ करना है।  कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के कार्यन्वयन के लिए नारे लगाते हुए खुशियाँ मनाई।

भारत में तीव्र गति से आर्थिक विकास के बावजूद यह देश दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है। 2015 के नवीनतम एफ.ए.ओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15.2% आबादी कुपोषण के शिकार हैं, प्रतिदिन 3 हजार बच्चे भूखों मरते हैं। दो से कम वर्ष के 58% बच्चों में वृद्धि की समस्या है और पांच वर्ष के 30.7% बच्चों का औसत वजन कम है।

सन् 2015 के वैश्विक भूख सूची के अनुसार 104 देशों में भारत का 80 वाँ स्थान था। इसलिए आर.टी.एफ के राष्ट्रीय समन्वयक कविता श्रीवास्तव ने कहा, “भूख लोकतंत्र के लिए खतरा है। भूख से मुक्ति एक दूर का सपना है महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों के सामूहिक रूप से मरने तथा दलितों और मुसलमानों को जो गाय के संरक्षण के नाम पर मार डाले जाते हैं तथा गरीबों और हाशिए पर जीने वालों के प्रति सरकार की उदासीनता को लेकर हम चिंतित हैं।”

विभिन्न वक्ताओं में, सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेज़वादा  विल्सन भी शामिल थे जिन्होंने 1994 के बाद से सिर पर मैला उठाने की प्रथा को समाप्त करने हेतु आंदोलन का नेतृत्व किया था और इसके लिए उन्हें रामोन म्यागासेसे पुरस्कार से नवाजा गया था।








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