काठमाण्डु, सोमवार, 19 सितम्बर 2016 (एशियान्यूज़): मानव तस्करी के विरोध में लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए, कुल 500 बौद्ध धर्मबहनों ने साईकिल पर सवार, 4 हजार किलो मीटर की यात्रा, नेपाल और भारत के बीच पूरी की।
22 वर्षीय धर्मबहन जिगमें कोंकोक लहामो ने कहा, ″गत साल जब हम नेपाल के भूकम्प पीड़ितों की राहत सेवा में मदद कर रहे थे, हमने जाना कि कई गरीब लड़कियाँ अपने ही माता-पिता द्वारा परिवार में आर्थिक मदद हेतु बेच दी गयी हैं। हम उस मानसिकता को बदलने के लिए कुछ करना चाहती हैं जिससे महिलाओं को पुरूषों के कम न आँका जाए। पहाड़ी यात्रा दिखलाता है कि महिलों की उतनी ही शक्ति है जितनी पुरूषों की।″
यात्रा काठमाण्डु में शुरू होकर उत्तरी भारत के लेह शहर में समाप्त हुई। धर्मबहनें ड्रुकपा धर्मसंघ से आती हैं जो तिब्बती बौद्ध धर्म के "आधुनिक" स्कूलों में से एक है। वे सामरिक कला में निपुण हैं तथा भारत, नेपाल, भूटान और तिब्बत में फैले हैं।
यात्रा के दौरान उन्होंने स्थानीय लोगों, सरकारी अधिकारियों और धार्मिक नेताओं से मुलाकात की तथा लिंग समानता, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व तथा पर्यावरण के प्रति सम्मान पर चर्चाएँ कीं।
धर्मबहनें ग़रीबों के लिए भोजन का वितरण करतीं तथा गाँव वालों को चिकित्सा सेवा प्रदान करती हैं। विगत बारह सालों के अंतराल में धर्मबहनों की संख्या 30 से 500 हो गयी है तथा वे समानता जैसे सामाजिक मूल्यों के प्रचार में प्रयासरत हैं। वे नेपाल में उन महिलाओं के लिए संघर्ष कर रही हैं जिन्हें तस्करों द्वारा नौकरी का प्रलोभन देकर यौन गुलाम के रूप में बेच दी जाती है और उन्हें वेश्यालयों एवं निजी घरों में देह व्यापार के लिए मजबूर किया जाता है।
2015 में आये भीषण भूकम्प के कारण भी लगभग 40 हज़ार बच्चे अनाथ हो गये थे जो अब मानव तस्करों के शिकार बन रहे हैं।
धर्मबहन जिगमें कोंकोक लहामो ने कहा, ″लोग सोचते हैं कि हमें मंदिरों में बंद होना और हर समय प्रार्थना करना चाहिए क्योंकि हम मठवासी हैं किन्तु प्रार्थना काफी नहीं हैं। ग्यालवांग ड्रुकपा हमें सिखलाती है कि हमें बाहर निकलना तथा हमारी प्रार्थनाओं को कार्य रूप देना चाहिए क्योंकि कथनी से अधिक करनी बोलती है।″
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