2016-08-25 11:05:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, चिन्तन स्तोत्र ग्रन्थ भजन 74, 75


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"अपना विधान याद कर। देश की गुफाएँ हिंसा के अड्डे बन गयी हैं। पद् दलितों को निराश मत होने दे। दरिद्र और निस्सहाय तेरे नाम की स्तुति करें। ईश्वर उठ और अपने पक्ष का समर्थन कर। उन नासमझ लोगों की निरन्तर होने वाली निन्दा याद कर। अपने बैरियों की चिल्लाहट को, अपने विद्रोहियों के निरन्तर बढ़नेवाले कोलाहल को न भुला।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के अन्तिम तीन पद जिनकी व्याख्या से विगत सप्ताह हमने पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन का रचयिता प्रभु ईश्वर को सृष्टिकर्त्ता, सृजनहार एवं उद्धारकर्त्ता स्वीकार करता है तथा उनसे विनती करता है कि वे ईश भक्तों एवं धर्मपरायण लोगों की रक्षा करें, उन्हें उनके अत्याचारियों से बचायें। धूर्त, दुष्ट एवं कुकर्मी को सफल होते देख वह हैरान होता है कि प्रभु ईश्वर क्यों अपना सामर्थ्य प्रकट कर उनका विनाश नहीं करते।

20 से 23 तक के पदों में भी वह अपनी इस गुहार को जारी रखता है। वह प्रभु ईश्वर से अनुनय-विनय करता है कि वे अपना विधान याद करें, उस प्रतिज्ञा को याद करें जो उन्होंने हमारे पूर्वर्जों के समक्ष सिनई पर्वत पर की थी। उन शब्दों को याद करें जिनमें उन्होंने कहा था... "मैं तुम्हारा प्रभु होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।" अनर्थ की आशंका व्यक्त करते हुए कहता है कि प्रभु की महिमा ख़तरे में पड़ गई है क्योंकि देश की गुफाएं हिंसा के अड्डे बने गये हैं और प्रभु की स्तुति करनेवाले लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है। दम्भकारी एवं अहंकारी मनुष्यों के कृत्यों पर रोक लगाने तथा अपने पक्ष का समर्थन करने का वह आर्त निवेदन करता है ताकि ईश भक्तों के भले कार्य बैरियों की चिल्लाहट तथा विद्रोहियों के निरन्तर बढ़नेवाले कोलाहल के नीचे न दब जायें।

श्रोताओ, 74 वें भजन के इन शब्दों पर चिन्तन करते हुए हमने आपका ध्यान इस ओर आकर्षित कराया था कि कठिनाई में पड़ने पर विश्वासी मनुष्य सदैव ईश्वर को पुकारता है क्योंकि वह भलीप्रकार जानता है कि उसके संकटपूर्ण क्षण में उसका आसरा केवल ईश्वर हैं, ईश्वर ही उसका दुर्ग, उसकी शरणशिला और उसका रक्षक हो सकते हैं। इस सन्दर्भ में हमने आपके समक्ष नाज़ी काल के दौरान उत्पीड़न का शिकार बने यहूदियों एवं सोवियत संघीय साम्यवादी काल के दौरान उत्पीड़ित ख्रीस्तीयों का उदाहरण रखा था जो अपार कष्ट भोगने के बावजूद ईश्वर को पुकारते रहे थे। वस्तुतः, श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ का 74 वाँ भजन बाईबिल पाठकों के समक्ष एक बार फिर इस तथ्य की प्रकाशना करता है कि संसार में भलाई के साथ-साथ बुराई का अस्तित्व है इसलिये मनुष्य सदैव सतर्क रहे तथा बुराई को भलाई पर हावी न होने दे। वह प्रभु ईश्वर के नियमों पर चलता हुआ अपने दायित्वों का निर्वाह करे तथा बुराई को भलाई पर विजयी न होने दे। 

अब आइये स्तोत्र ग्रन्थ के 75 वें भजन पर दृष्टिपात करें। इस भजन में ईश्वर को संसार का न्यायकर्त्ता घोषित करते हुए भजनकार विनाश न करने की प्रभु से अपील करता है। इसके प्रथम दो पदों में वह कहता हैः "ईश्वर! हम तुझे धन्यवाद देते हैं। हम तेरा नाम लेते हुए और तेरे अपूर्व कार्यों का बखान करते हुए तुझे धन्यवाद देते हैं।"

इन शब्दों से स्पष्ट है कि 75 वाँ भजन प्रभु ईश्वर की महिमा में रचा गया गीत है। यह सृष्टिकर्त्ता ईश्वर की स्तुति करनेवाला प्रशस्ति गान है। जैसा कि हमने 74 वें भजन में देखा मनुष्यों के समक्ष प्रभु ईश्वर "इम्मानुएल" अर्थात् "ईश्वर हमारे साथ हैं", नाम से प्रकट हुए। प्राचीन व्यवस्थान के युग के लोग प्रभु ईश्वर के अपूर्व कार्यों को देख चुके थे जिसके परिणामस्वरूप   उनका विश्वास अटल रहा था कि चाहे जो भी कठिनाई आयेगी ईश्वर उन्हें उन कठिनाइयों से उभारेंगे और यही उनके धन्यवाद ज्ञापन का कारण बना। उस युग के लोग नबी इसायाह के ग्रन्थ के 30 वें अध्याय में निहित 26 वें पद से आश्वस्त हुए थे जिसमें लिखा हैः "जिस दिन प्रभु अपनी प्रजा के टूटे हुए अंगों पर पट्टी बाँधेगा और उसकी चोटों के घावों को चंगा करेगा, उस दिन चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य की तरह होगा और सूर्य का प्रकाश – सात दिनों के सम्मिलित प्रकाश के सदृश –सतगुना प्रचण्ड होगा।" इस प्रकार श्रोताओ, 75 वें भजन का रचयिता 74 वें भजन में निहित प्रश्नों का उत्तर देता है।

आगे, 75 वें भजन के तीन से लेकर आठ तक के पदों में प्रभु ईश्वर के वचनों को भजनकार इन शब्दों में व्यक्त करता हैः "निर्धारित समय आने पर मैं स्वयं निष्पक्षता से न्याय करूँगा। पृथ्वी अपने सब निवासियों के साथ ढह जायेगी। क्या मैंने उसके खम्भों को स्थापित नहीं किया? मैंने घमण्डियों से कहाः घमण्ड मत करो, और दुष्टों सेः अपना सिर मत उठाओ, अपना सिर उतना ऊँचा मत उठाओ, ईश्वर के सामने धृष्टता मत करो। क्योंकि न तो पूर्व से, न पश्चिम से और न मरुभूमि से उद्धार सम्भव है। ईश्वर ही न्यायकर्त्ता है; वह एक को नीचा दिखाता और एक दूसरे को ऊँचा उठाता है।"

श्रोताओ, भजनकार उक्त शब्दों से यह स्पष्ट कर देता है कि कहीं से भी उद्धार सम्भव नहीं है। उद्धारकर्त्ता केवल प्रभु ईश्वर हैं और प्रभु ही निर्धारित समय आने पर भक्त का उद्धार करते हैं। संकट कब टलेगा और कठिनाइयाँ कब पार होंगी यह निर्णय मनुष्य नहीं ले सकता क्योंकि केवल ईश्वर न्यायकर्त्ता है, प्रभु ही एकमात्र उद्धारकर्त्ता हैं वे मनुष्य को संकट से उबारने वाले हैं। अस्तु, मनुष्य इस भ्रम में कदापि न पड़े कि वह अपने जीवन का संचालन ख़ुद कर सकता है। इस भ्रम में न पड़े कि वह पीड़ाओं, रोगों, भूकम्पों एवं प्राकृतिक आपदाओं से भरे विश्व रूपी भँवर से स्वयं निकलने में समर्थ है अपितु याद रखे कि उसे प्रतिपल ईश्वर की ज़रूरत है इसलिये ईश्वर में अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करे, उनकी अनुकम्पा की याचना करे तथा ईश नियमों पर चलता हुआ प्रभु ईश्वर का गुणगान करे और उनकी ही महिमा का बखान किया करे।








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