2016-08-18 11:26:00

पवित्रधर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय, स्तोत्र ग्रन्थ, 74 वाँ भजन


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"प्रभु! याद कर कि शत्रु ने तेरी निन्दा की है और एक नासमझ राष्ट्र ने तेरे नाम का उपहास किया है। अपने भक्तों के प्राण जंगली पशुओं के हवाले मत कर, अपने दरिद्रों का जीवन कभी मत भुला।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के 18 वें एवं 19 वें पदों के शब्द। इन्हीं पदों पर चिन्तन से हमने विगत सप्ताह पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम समाप्त किया था। स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन का रचयिता अपने इस विश्वास की अभिव्यक्ति करता है कि प्रभु ईश्वर ने ही सृष्टि की रचना की तथा उनके सामर्थ्य से सृष्टि में अभूतपूर्व कार्य सम्पादित हुए। ईश्वर के सामर्थ्य से ही प्रकाश हुआ और उसे अन्धकार से अलग किया जा सका। अथाह गर्त से ईश्वर मनुष्यों के लिये भलाई को सींचकर ले आये थे ताकि मनुष्य सुखपूर्वक अपना जीवन यापन कर सके तथा प्राप्त कृपाओं के प्रभु का गुणगान किया करे।

18 वें एवं 19 वें पदों में भजनकार प्रभु ईश्वर से विनती करता है कि वे इस बात को याद करें कि उन्हीं ने इस्राएल को अपनी विशेष प्रजा चुना है, उन्हीं ने उन्हें विश्व में भलाई का अस्त्र बनाया, उन्हीं ने ईशप्रजा इस्राएल के माध्यम से प्रेमपूर्ण मानव समाज की रचना करने की योजना बनाई। इन पदों में वह ईश विरोधियों को जंगली पशुओं के सदृश बताकर प्रभु ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वे ईश भक्तों को जंगली पशुओं के हवाले न करें अपितु उनकी धर्मपरायणता एवं उनकी आस्था का ध्यान कर उन्हें ना भुलायें। ऐसी प्रार्थना वह इसलिये करता है क्योंकि वह जानता है कि केवल प्रभु ईश्वर ही उसे ईश विरोधियों और आततायियों के अत्याचारों  से बचा सकते हैं। तथापि, ईश विरोधियों के कुकर्मों के आगे प्रभु ईश्वर क्यों मौन धारण किये हुए हैं यह उसकी बुद्धि से परे है। 

श्रोताओ, इस बात का हम सिंहावलोकन कर चुके हैं कि प्रायः ऐसे क्षण हमारे जीवन में भी आते हैं। अपनी आँखों के समक्ष हम धूर्त, दुष्ट एवं कुकर्मी को सफल होते देखते हैं, उन्हें हम धर्मपरायण, सीधे सरल लोगों को प्रताड़ित करते देखते हैं और हमारे मन में यही प्रश्न बारम्बार उठता रहता है कि ईश्वर कहाँ है? ईश्वर क्यों चुप बैठा है? स्तोत्र ग्रन्थ का 74 वाँ भजन एक प्रकार समस्त दुःख उठाने वाले लोगों को आश्वासन प्रदान करता है और उन्हें याद दिलाता है कि शैतान अर्थात् दुष्ट की अवधि बहुत छोटी होती है, अन्त में विजय भलाई की ही होती है। 

आगे, 74 वें भजन के अन्तिम यानि कि 20 से लेकर 23 तक के पदों में भजनकार कहता हैः "अपना विधान याद कर। देश की गुफाएँ हिंसा के अड्डे बन गयी हैं। पद् दलितों को निराश मत होने दे। दरिद्र और निस्सहाय तेरे नाम की स्तुति करें। ईश्वर उठ और अपने पक्ष का समर्थन कर। उन नासमझ लोगों की निरन्तर होने वाली निन्दा याद कर। अपने बैरियों की चिल्लाहट को, अपने विद्रोहियों के निरन्तर बढ़नेवाले कोलाहल को न भुला।"

भजनकार प्रभु ईश्वर से विनय करता है कि वे उस विधान को याद करें, उस प्रतिज्ञा को याद करें जो उन्होंने हमारे पूर्वर्जों के समक्ष सिनई पर्वत पर की थी। उन शब्दों को याद करें जिनमें उन्होंने कहा था... "मैं तुम्हारा प्रभु होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।" मानों कह रहा हो... प्रभु तेरी प्रतिज्ञा के बावजूद सृष्टि के पहले जो अन्धकार ब्रहमाण्ड पर छाया था वह फिर से पृथ्वी पर आच्छादित हो रहा है, उसकी कालिमा प्रतिज्ञात देश और उस पर निवास करनेवाली ईश प्रजा पर फिर से आच्छादित होने लगी है। एक प्रकार से चेतावनी देता है कि प्रभु की महिमा ख़तरे में पड़ गई है क्योंकि देश की गुफाएं हिंसा के अड्डे बने गये हैं और प्रभु की स्तुति करनेवाले लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है। प्रभु से वह निवेदन करता है कि वे दुष्ट राजा नबूखेदनेज़र को याद करें जिसने खुद को राजाओं का राजा और स्वामियों का स्वामी बताया है जो कि किसी मनुष्य द्वारा किया गया सर्वाधिक दम्भकारी एवं अहंकारी कृत्य है। इसीलिये भजनकार प्रभु ईश्वर को पुकारता है और उनसे अपने पक्ष का समर्थन करने का आर्त निवेदन करता है ताकि ईश भक्तों के भले कार्य बैरियों की चिल्लाहट तथा विद्रोहियों के निरन्तर बढ़नेवाले कोलाहल के नीचे न दब जायें।

श्रोताओ, असाधारण, तीव्र, प्रतिबद्ध एवं पूर्ण रूप से समर्पित सुधारक मार्टिन लूथर ने जब अपने युग में बुराई की प्रतीयमान विजय को देखा तब वे मानों अपने अस्तित्व की गहराइयों में चले गये तथा उन्होंने अपने जीवन के एक खास अनभुव के विषय में लिखा, "मैंने अपना बोरा उसके द्वार पर पकट दिया और उसके कानों को उसकी ही प्रतिज्ञाओं से मला जिससे वह मेरी सुने और मैं उसपर विश्वास कर सकूँ।"  

श्रोताओ, इसी प्रकार नाज़ी नज़रबन्दी शिविरों में बन्द कितने ही ऐसे क़ैदी होंगे जिन्होंने मार्टिन लूथर की तरह ही हताश होकर प्रभु ईश्वर को पुकारा होगा। सोवियत संघ के काल में मनोरोग अस्पतालों में प्रताड़ित कितने ईश भक्त थे जिन्होंने निराशा की कठिन घड़ियों में प्रभु ईश्वर को याद किया था। आज भी हमारे अपने युग में धर्मपालन और विश्वास के ख़ातिर उत्पीड़ित कितने ऐसे लोग हैं जो निरन्तर प्रभु ईश्वर को पुकार रहे हैं और उनसे कह रहे हैं: "प्रभु, तू क्यों चुप है? क्यों हमसे दूर चला गया है? हमारे अत्याचारियों को क्यों विजयी होने दे रहा है? तूने हमें सर्वदा के लिये भुला क्यों दिया है?"    

श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ के भजन ख्रीस्तीय एवं यहूदी दोनों धर्मों के अनुयायियों के लिये अमृत वचन हैं। वे यहूदी जिन्होंने नाज़ी काल में अपनी धन-दौलत और अपना समस्त परिवार खो दिया था आज वे हम ख्रीस्तीयों से प्रश्न कर सकते हैं... "तुम तो कहते हो कि प्रभु येसु ख्रीस्त ने संसार को पाप से मुक्ति दिलाई है, उनका क्रूस मरण और पुनःरुत्थान मानव मुक्ति का प्रभावशाली अस्त्र है। फिर क्यों, क्यों आज भी विश्व में बुराई का बोलबाला है? क्यों आज भी हिंसा और क्रूरता लोगों के हृदयों में समाई हुई है? वस्तुतः, श्रोताओ, स्तोत्र ग्रन्थ का 74 वाँ भजन हम ख्रीस्तीय एवं यहूदी दोनों धर्मों के लोगों से इस मौलिक धर्मतत्ववैज्ञानिक और साथ बहुत ही व्यावहारिक विश्वास सम्बन्धी प्रश्न पर मनन-चिन्तन का आग्रह करता है।








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