2016-07-23 16:08:00

कलीसिया और दुनिया को मठवासियों की अब भी आवश्यकता है


वाटिकन सिटी, शनिवार, 23 जुलाई 2016 (एशियान्यूज़):  ″प्रकाशस्तम्भ″ जो मार्गदर्शन करता तथा मानव की यात्रा में उनका साथ देता है, दुनिया के लिए मार्ग, सत्य और जीवन, ख्रीस्त की ओर इंगित करने हेतु प्रातः की प्रहरी। जिन महिलाओं ने मठीय जीवन के लिए अपने आपको समर्पित किया है वे कलीसिया के लिए ‘अपरिहार्य और अनिवार्य उपहार’ हैं। उक्त बातें प्रेरितिक संविधान ″वूलतुम देई क्वाएरेरे″ (येसु के चेहरे को खोजना) में अंकित है।

वाटिकन ने शुक्रवार को महिलाओं के मठवासी धर्मसंघीय जीवन पर एक नई प्रेरितिक संविधान,  ″लतुम देई क्वाएरेरे (ईश्वर के चेहरे की खोज) को प्रकाशित किया। 18 पृष्ठों का यह दस्तावेज उन महिला धर्मसंघियों के लिए चिंतन एवं आत्मपरिक्षण हेतु 12 विषयवस्तुओं को प्रस्तुत करता है जिन्होंने समर्पित जीवन अपनाया है जो उन्हें समकालीन समाज में वार्ता की आवश्यकता से प्रेरित होकर, मननशील जीवन के बुनियादी मूल्यों को बनाये रखते हुए, मौन एवं तत्परता पूर्वक सुनने, आंतरिक जीवन गौर करने एवं स्थायित्व आदि की आधुनिक मानसिकता हेतु चुनौती दे सकता है। 

दस्तावेज इस बात पर बल देता है कि सबसे खतरनाक प्रलोभन जिसे एकान्तवासी पुरोहितों ने अनुभव किया था, एक ऐसा प्रलोभन है जिसके द्वारा व्यक्ति उदासीन हो जाता है, मात्र दिनचर्या पूरा करता, निरुत्साह एवं लकवा ग्रस्त के समान सुस्त हो जाता है।

दुनिया ईश्वर की खोज करती है, कई बार अनजाने ही, जिनके बीच समर्पित व्यक्ति एक विवेकशील वार्ताकार बनकर लोगों को उनके सवालों को समझने में मदद दे सकता है।

आत्म परीक्षण हेतु 12 विषयवस्तु में, ध्यानशील मठवासियों को उनकी बुलाहट को समझने में मदद हेतु प्रथम चिंतन बिन्दु है कि उनका बुलावा संख्या एवं दक्षता पर ध्यान देने के प्रलोभन में पड़े बिना बुलाहटीय एवं आध्यात्मिक जाँच पर विशेष ध्यान देते हुए होना चाहिए।

संत पापा द्वारा चुनी गयी दूसरी विषयवस्तु है, ″समर्पित जीवन का मर्म″। यह जीवन हृदय को इतना विशाल करे कि सारी मानवता का आलिंगन किया जा सके, विशेषकर, जो दुःखी हैं। मठवासियों का कर्तव्य है कि वे मानवता के भविष्य के लिए प्रार्थना एवं निवेदन करें। इस प्रकार यह समुदाय क्रूस से ऊर्जा प्राप्त कर प्रार्थना का सच्चा स्कूल बन जाए।

अगली विषयवस्तु है ″ईश वचन केंद्रित″। यह सभी आध्यात्मिकताओं एवं समुदायों में एकता के सिद्धांतों का पहला स्रोत है। संत पापा ने कहा कि पूरे दिन को व्यक्तिगत एवं सामूहिक दोनों रूपों में ईश वचन के अनुसार व्यतीत किया जाना चाहिए। संत पापा ने स्मरण दिलाया कि ‘लेक्सियो दिविना’ को एक कार्य के रूप में परिणत होना चाहिए जो उदारता में दूसरों के लिए उपहार बन जाता है। चौथे बिन्दु में पवित्र यूखरिस्त एवं मेल मिलाप संस्कार के महत्व पर चिंतन। पाँचवें में सामुदायिक जीवन में भाईचारा का मनोभाव और छटवें में मठों की स्वायत्तता। सातवेँ में उन्होंने मठों का अन्य मठों के साथ नजदीकी का संबंध पर बल दिया है। आठवाँ, कलीसिया के साथ गहरा संबंध एवं नौवाँ, शारीरिक कार्य। दसवाँ मौन जिसका उद्देश्य वचन को सुनना है। ग्यारहवाँ, संचार माध्यमों का प्रयोग विवेक के साथ करना एवं बारहवां है दुनियावी वस्तुओं से अनासक्त। 








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