2016-07-18 14:29:00

हम दूसरों की सुने और उन्हें अपनी सेवा प्रदान करें


वाटिकन सिटी, सोमवार, 17 जूलाई 2016 (सेदोक) संत पापा फ्राँसिस ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में 17 जुलाई, रविवारीय देवदूत प्रार्थना के पूर्व सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों के साथ संत लूकस रचित सुसमाचार से एक विषयवस्तु “अतिथि सत्कार” पर अपना चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा,

प्रिय भाइयो एव बहनो, सुप्रभात।

आज के सुसमाचार में संत लूकस हमें बतलाते हैं कि येसु येरुसलेम के मार्ग, एक गाँव में प्रवेश करते हैं जहाँ उनका स्वागत दो बहनें, मार्था और मरियम के द्वारा होता है। वे येसु का अतिथि सत्कार करते हैं लेकिन उन दोनों के आतिथ्य सत्कार में अन्तर है। मरियम येसु के चरणों तले बैठ जाती और उनके वचनों का श्रवण करती है जबकि मार्था सारी चीजों की व्यवस्था और तैयारी में लग जाती है और एक समय येसु से कहती है, “प्रभु, क्या आप नहीं सोचते कि मेरी बहन ने सेवा के सारे कार्यों को मेरे ऊपर छोड़ा दिया है?, आप उनसे कहिये कि वह मेरी सहायता करे।” इस पर येसु उन्हें उत्तर देते हुए कहते हैं, “ मार्था, मार्था तुम बहुत-सी बातों के बारे में चिंतित और व्यस्त हो, लेकिन केवल एक ही चीज आवश्यक है। मरियम ने उत्तम भाग चुन लिया है और वह उससे नहीं लिया जायेगा।” ( 41-42)

संत पापा ने कहा कि अपनी व्यस्तता और दौड़ धूप में मार्था सबसे महत्वपूर्ण बात भूल गई कि येसु जो उनके मेहमान हैं उसके साथ हैं। वह येसु की उपस्थिति को भूल-सी गई है। मेहमान की सेवा न केवल खिलाने-पिलाने और पूरी तरह देख-रेख करने में ही होती वरन् इससे भी बढ़कर हमें उनकी बातों को सुनने की जरूरत होती है। हम इस बात का ख्याल करें कि हमें उन्हें सुनने की आवश्यकता है क्योंकि किसी भी अतिथि का स्वागत उनके हृदय की भावनाओं  और विचारों को सुनने के द्वारा होता है, जहाँ वह सहज महसूस करता और अपने को परिवार का अंग समझता है। लेकिन यदि हम किसी को अपने घर में मेहमान बुलाते और अपने को कामों में व्यस्त रखते हैं तो हम उस व्यक्ति को मूक बधिर की तरह, पत्थर की एक मूर्ति की तरह बैठा कर रख देते हैं। संत पापा ने कहा कि नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए। हमें अपने मेहमान की बातों को सुनने की जरूरत है।

संत पापा ने कहा, “मान लिया हम क्रूस के सामने प्रार्थना करने हेतु जाते हैं और हम सिर्फ अपनी ओर से अपनी ही बातें कहते जाते, करते जाते हैं तो हम येसु की बातों को नहीं सुनते हैं। हम उन्हें अपने हृदयों में कुछ कहने ही नहीं देते है। संत पापा ने जोर देते हुए कहा कि हम न भूलें, हमें सुनने की जरूरत है और यह हमारे लिए अति महत्वपूर्ण बात है। हम यह भी न भूले की मार्था और मरियम के घर में, येसु प्रभु और गुरु होने की अपेक्षा एक मेहमान और तीर्थयात्री के समान हैं। अतः मार्था को दिये गये जवाब में वे कहते हैं “मार्था, मार्था तुम इतनी सारी चीजों में व्यस्त हो की तुम्हें मेरी उपस्थिति का एहसास ही नहीं रहा, मैं पत्थर की मूर्ति की तरह रहा गया। इस मेहमान के स्वागतार्थ बहुत सारी चीजों की जरूरत नहीं अपितु केवल एक ही चीज आवश्यक और की महत्वपूर्ण है और वह है मेरी बातों को सुनना क्योंकि यह प्रेममय व्यवहार मुझे परिवार का एक अभिन्न अंग बनाता है।” 

संत पापा ने कहा कि इस तरह अतिथि सत्कार करुणा के कार्यों में से एक हैं जो एक ख्रीस्तीय गुण है जो हमें मानवीय बनाता है लेकिन वर्तमान परिवेश में इस गुण की अवहेलना की जा रही  है। आज सेवा केन्द्रों और आश्रमों में वृद्धि हुई है लेकिन उनमें सही सेवा-सत्कार के वातावरण देखने को नहीं मिलते हैं। आज हमारे बीच बहुत सारी संस्थाएँ हैं जो बीमारों, दुखियों, ग़रीबों की देखरेख करती हैं लेकिन इनमें लोगों की दर्द भरी घटनाओं और अनुभवों को स्वेच्छा पूर्वक सुनने वाला कोई नहीं है। यह तक कि ऐसी स्थिति हमारे परिवार के सदस्यों में भी है। आज हम अपनी ही समस्याओं में डूबे हुए हैं यद्यपि उनमें से कुछ महत्वपूर्ण नहीं हैं जिसके कारण हम एक दूसरे को सुन नहीं पाते हैं। हम अपने में इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास दूसरों की बातों को सुनने हेतु समय नहीं है। संत पापा ने अपने चिंतन के अंत में कहा, “मैं आप सब से एक सवाल पूछना चाहूँगा जिसका उत्तर आप अपने दिल में दें, “क्या पति को अपनी पत्नी की बातों को सुनने का समय है? और पत्नी क्या आप को पति की बातें सुनने हेतु समय है? माता-पिता क्या आप के पास समय है जिससे आप अपने बच्चों, दादा-दादियों और बुज़ुर्गों की बातों को सुनने हेतु खर्च कर सकें? लेकिन आप कहेंगे वे एक ही बात को बार-बार कहते हैं जो हमें निरस लगता है, लेकिन हमें उनकी बातों को सुनने की जरूरत है।” संत पापा ने कहा, “मैं आप से कहता हूँ आप सुनना सीखें और इसके लिए समय दें, क्योंकि सुनने की योग्यता शांति स्थापना की जड़ है।”  

और इतना कहने के बाद संत पापा ने कुंवारी मरियम की मध्यस्थता में अच्छी सेवा हेतु सबों के लिए विनय प्रार्थना की और देवदूत प्रार्थना का पाठ करते हुए सब को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।

देवदूत प्रार्थना के उपरान्त संत पापा ने सबों का अभिवादन करते हुए कहा, रोम के विश्वासियों और भिन्न देशों से आये आप सभों को मेरा स्नेहिल अभिवादन। मैं विशेष रूप से अयरलैण्ड के अरर्माग और डेरी धर्मप्रान्त के तीर्थयात्रियों के साथ एलफिल धर्मप्रान्त से आये अजीवन उपयाजक उम्मीदवारों का अभिवादन करता हूँ। मैं ईश शस्त्रीकरण हेतु गठित कोलाब्रो परमधर्मपीठ के अधिकारी और द्वितीय वर्षीय ईश शास्त्रियों, मिलान प्रेरितिक समुदाय के विद्यार्थियों, चीन के साहसी तीर्थयात्रियों का भी अभिवादन करता हूँ। इतना कहने के बाद संत पापा ने सभों को रविवारीय मगंलकामनाएँ अर्पित की।








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