2016-07-14 11:32:00

बाईबिल कार्यक्रम, स्तोत्र ग्रन्थ भजन 74, चिन्तन


श्रोताओ, पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत इस समय हम बाईबिल के प्राचीन व्यवस्थान के स्तोत्र ग्रन्थ की व्याख्या में संलग्न हैं। स्तोत्र ग्रन्थ 150 भजनों का संग्रह है। इन भजनों में विभिन्न ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों को प्रस्तुत किया गया है। कुछ भजन प्राचीन इस्राएलियों के इतिहास का वर्णन करते हैं तो कुछ में ईश कीर्तन, सृष्टिकर्त्ता ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन और पापों के लिये क्षमा याचना के गीत निहित हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जिनमें प्रभु की कृपा, उनके अनुग्रह एवं अनुकम्पा की याचना की गई है। इन भजनों में मानव की दीनता एवं दयनीय दशा का स्मरण कर करुणावान ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि वे कठिनाईयों को सहन करने का साहस दें तथा सभी बाधाओं एवं अड़चनों को जीवन से दूर रखें। .........

"ईश्वर, तूने क्यों हमें सदा के लिये त्याग दिया है? तेरा क्रोध क्यों अपनी चरागाह की भेड़ों पर बना हुआ है? अपनी प्रजा को याद कर, जिसे तूने प्राचीन काल में अर्जित किया, जिसका तूने उद्धार किया, उस वंश को जिसे तूने विरासत के रूप में अपनाया था; सियोन के पर्वत को जिसे तूने अपना निवास स्थान बनाया था। इन पुराने खण्हरों पर दयादृष्टि कर। शत्रु ने पवित्र मन्दिर को उजाड़ दिया। तेरे बैरियों ने तेरे प्रार्थनागृह में शोर मचाया और वहाँ अपने विजयी झण्डे फहराये।"

श्रोताओ, ये थे स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के प्रथम चार पद। पवित्र धर्मग्रन्थ बाईबिल एक परिचय कार्यक्रम के अन्तर्गत विगत सप्ताह हमने इस भजन की भूमिका आपके समक्ष रखी थी जिसमें भक्त समुदाय राजा नबूखेदनज़र के शासनकाल में जैरूसालेम के मन्दिर के विनाश पर विलाप करता है। ईसा मसीह के आगमन से लगभग पाँच शताब्दियों पूर्व ईश्वर द्वारा चुने गये  जैरूसालेम शहर का मन्दिर नष्ट कर दिया गया था।

इस तथ्य की ओर हमने आपका ध्यान आकर्षित कराया था कि इसराएली जाति के लिये जैरूसालेम शहर उसका सन्दर्भ बिन्दु था। ईश प्रतिज्ञा के अनुसार जैरूसालेम शहर ही राष्ट्रों के मिलन बिन्दु तथा ईश प्रजा के प्रतिज्ञात शहर रूप में चुना गया था। यही था वह शहर जहाँ ईश्वरीय मुक्तियोजना की प्रमुख घटनाएँ घटी। 74 वें भजन के प्रथम चार पदों में ईश प्रजा ईश्वर की प्रतिज्ञा को याद करती है जिसमें प्रभु कहते हैं: "मैंने आकाश को स्थापित किया, पृथ्वी की नींव डाली और सियोन से कहा – तुम ही मेरी प्रजा हो।" वह विलाप करते हुए प्रभु ईश्वर को पुकारती है। प्रथम तीन पदों में ईश प्रजा विलाप ही नहीं शिकायत करती है, क्रुद्ध होते हुए वह कहती है, "तूने क्यों हमें सदा के लिये त्याग दिया है? तेरा क्रोध क्यों अपनी चरागाह की भेड़ों पर बना हुआ है?" वह मानों प्रश्न करती हैः "ईश्वर क्यों अपने शहर को अविश्वासी सेना द्वारा नष्ट होने देते हैं। प्रभु ईश्वर ने अपने लोगों के साथ हुई सम्विदा को क्यों भुला दिया है?"

वस्तुतः श्रोताओ, ईश प्रजा के इस विलाप से स्पष्ट है कि उस दिन बुराई की विजय हुई थी। प्रभु ईश्वर ने जिस शहर और जिस मन्दिर को अपना घोषित किया था उस पर प्रहार किया गया था। बुराई ने इतिहास में कदम रख लिया था जिसे अभिभूत करने के लिये पिता ईश्वर ने अपने इकलौते पुत्र को इस धरा पर भेजा। सन्त मारकुस रचित सुसमाचार के 13 वें अध्याय के 14 वें पद के अनुसार प्रभु येसु ख्रीस्त स्वयं महासंकट के विषय में कहते हैं: "जब तुम लोग उजाड़ का बीभत्स दृश्य देखोगे, जहाँ उसका होना उचित नहीं है – पढ़ने वाला समझ ले- तो, जो लोग यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जायें।" और फिर, "प्रार्थना करो कि यह सब जाड़े के समय घटित नहीं हो; क्योंकि उस समय वैसा घोर संकट होगा, जैसा ईश्वर की सृष्टि में, इस संसार में के प्रारम्भ से अब तक न कभी हुआ है और न कभी होगा।"  

बाईबिल विशेषज्ञों के अनुसार प्रभु ख्रीस्त  06 दिसम्बर 167 ईसा पूर्व की घटना के सन्दर्भ में बोल रहे थे जब विदेशी राजा अन्तियोखुस ने दूसरे मन्दिर के पुनर्निर्माण के अवसर पर बुतपरस्ती का घृणित बलिदान अर्पित किया था। यह इसलिये क्योंकि प्रभु येसु ख्रीस्त जानते थे कि बुराई के विरुद्ध संघर्ष अनन्त काल तक जारी रहनेवाला संघर्ष है। अस्तु, येसु ख्रीस्त पवित्र शहर के उस विनाश को इंगित कर रहे थे जो उनके आगमन के बाद होनेवाला था। वस्तुतः, रोमी शासकों ने सन् 70 ई. में जैरूसालेम को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया था तथा उसके मन्दिर को अपवित्र कर दिया था।

इसके अतिरिक्त, श्रोताओ, बाईबिल विशेषज्ञों के अनुसार, प्रभु येसु बुराई के विरुद्ध अनन्त युद्ध के उस बीभत्स प्रदर्शन का भी सन्दर्भ दे रहे थे जो गोलगोथा पर सम्पादित हुआ था और जिसमें मनुष्य की सारी हैवानियत प्रकट हुई थी। सन्त लूकस रचित सुसमाचार के  22 वें अध्याय के 53 वें पद के अनुसार गेथसेमनी की बारी में उन्हें गिरफ्तार करने पहुँचे महायाजक और मन्दिर-आरक्षियों से प्रभु येसु ख्रीस्त कहते हैं: "मैं प्रतिदिन मन्दिर में तुम्हारे साथ रहा और तुमने मुझपर हाथ नहीं डाला, परन्तु यह समय तुम्हारा है – अब अन्धकार का बोलबाला है।" इससे यही स्पष्ट है कि अच्छाई और भलाई के साथ-साथ बुराई का भी अस्तित्व है जिसके प्रति हम सबको प्रतिपल सतर्क रहना होगा। प्राचीन काल में भी ऐसा था आज भी है और भविष्य में भी यही सिलसिला जारी रहेगा।    

आगे, स्तोत्र ग्रन्थ के 74 वें भजन के पाँच से लेकर आठ तक के पदों में भी मन्दिर के विनाश का भयंकर दृश्य देखने को मिलता है जिसमें ईश विरोधी दुष्ट घृणा का बीभत्स प्रदर्शन कर जानबूझकर ईश्वर के पवित्र नाम को अपवित्र करने का दुस्साहस करते हैं, ये पद इस प्रकार हैं: "ऐसा लगा कि वे कुल्हाड़ी घुमाकर झाड़ झंकाड़ काट रहे हैं। उन्होंने कुल्हाड़ियों और हथौड़ों से मन्दिर के सभी उत्कीर्ण द्वार टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उन्होंने तेरे मन्दिर में आग लगाई, तेरे नाम का निवासस्थान ढा कर दूषित कर दिया। उन्होंने अपने मन में कहा, "हम उनका सर्वनाश करें; हम देश भर के सब सभागृह जला दें।" 

श्रोताओ, यह पाश्विक विनाश पवित्र स्थल पर हुआ। उस स्थल पर जो स्वयं सर्वोच्च प्रभु और न्यायप्रिय ईश्वर का पवित्रतम स्थान था। प्राचीन व्यवस्थान में कई स्थलों पर प्रभु को "पवित्र" नाम से पुकारा गया है। 99 वें भजन में हम पढ़ते हैं: "प्रभु सियोन में महान है, वह सब राष्ट्रों से ऊँचा है। वे उसके विराट एवं श्रद्धेय नाम का गुणगान करें।... हमारा प्रभु ईश्वर पवित्र है।"








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