2016-02-10 14:36:00

आमदर्शन समारोह में ईश्वर की करूणा पर धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार 10 फरवरी 2016, (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को, ईश्वर की करूणा पर अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए इतालवी भाषा में  कहा,

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात और चलीसा काल की शुभ यात्रा,

आज हम धर्मग्रन्थ के प्रचीन व्यवास्थान में जयन्ती मनाये जाने की प्रथा मनन पर करेंगे। इसका जिक्र हम लेवी ग्रंथ में पाते हैं जो हमारे लिए इस्रराएलों की धार्मिक और सामाजिक जीवन की पराकाष्ठा की चर्चा करता हैं।

हर “50 वर्ष” के बाद प्रायश्चित्त का दिवस होगा, जब ईश्वर की करूणा की घोषणा सभी लोगों के लिए तुरही बजाये जाने के साथ किया जायेगा। हम लेवी के ग्रन्थ में पढ़ते हैं, “यह पचासवाँ वर्ष तुम लोगों के लिए एक पुण्य-वर्ष होगा और तुम देश में यह घोषित करोगे कि सभी निवासी अपने दासों को मुक्त कर दें। यह तुम्हारे लिए जयन्ती-वर्ष होगा, प्रत्येक अपनी पैतृक सम्पत्ति फिर प्राप्त करेगा” (लेवी 25.10.13) इन व्यवास्थानों के अनुसार यदि किसी को अपनी जमीन और घर जबरदस्ती बेचनी पड़ी  हो तो वह जयन्ती वर्ष में उन्हें पुनः प्राप्त करेगा, और यदि कोई किसी के साथ ऋण का समझौता किया हो, उसे चुका पाने में असमर्थ हो और वह ऋण देने वाली की गुलामी करता हो तो वह अपने परिवार में लौट सकता है और अपनी सम्पति को पुनः प्राप्त कर सकता है। यह एक प्रकार का समान्य माफी है जो प्रत्येक को अपनी वास्ताविक स्थिति में वापस लौटने का एक अवसर प्रदान करता है। लोग अपने ऋणों से मुक्त हो, जमीन जायदाद को वापस पाकर ईश्वर की नयी प्रजा के रूप में आनन्द मानते सकते थे। इन सारी चीजों का सार यही है कि जमीन ईश्वर की हैं यह मनुष्यों को दी गई हैं (उत्प.1.28-29) और इस कारण कोई भी इसे दूसरों से जब्त नहीं कर सकता और न ही असमानता की स्तिथि उत्पन्न करते हुए उन्हें अपनी गुलामी में रख सकता है।

जयन्ती वर्ष में जो गरीब हो गये हैं उन्हें जीवन की चीजें प्राप्त होती हैं और जो धनी हो गये हैं वे गरीबों को वे सारी चीजें प्रदान करते हैं जो वे उनके यहाँ से ले गये थे। इन सारी चीजों के पीछे एक ही उद्देश्य था एक न्यायपूर्ण, स्वतंत्र समाज की स्थापना की जाये जहाँ कुछेक नहीं अपितु सब समानता और समुदायिकता के भागीदार हों। वास्तव में जयन्ती वर्ष का उद्देश्य लोगों को सचमुच आपसी भाईचारे के साथ रहने हेतु मदद करना था। हम कह सकते हैं कि धर्मग्रंथ में जयन्ती का वर्ष, “करूणा का जयन्ती वर्ष” था क्योंकि यह निष्ठापूर्ण तरीके से निर्धनों की भलाई करता था।

ठीक उसी तरह हमारे संस्थानों और नियम कानून के द्वारा लोग, ईश्वर की दया और करूणा का अनुभव करते हैं। पुराने व्यावस्थान के नियम अब भी वैध है। उदाहरण स्वरूप धर्मग्रन्थ का लेवी ग्रन्थ याजकवर्ग, भूमिहीन, गरीबों, अनाथों और विधवाओं हेतु “दशमांश” देने की बात कहता है। (लेवी 14.22-29) जनता से यह आशा की जाती थी कि भूमि और जो कुछ भी कार्यो हुए हो उसका दसवाँ भाग उनलोगों हेतु दान करना था जो असुरक्षित थे जिससे की देश में एक समानता बनी रहें और लोग आपस में भाईचारे के साथ रह सकें।

नयी फसल के विषय में भी एक नियम था, कि उपज का प्रथम भाग, सबसे उत्तम भाग को, याजकवर्ग और अपरिचितों से साथ बाँटना, जिससे जिनके पास जमीन नहीं थी वे भी भूमि की उपज के द्वारा जीवन प्राप्त कर सकें।(विधि.18.4-5,26.1-11) ईश्वर कहते हैं “भूमि मेरी है और तुम केवल एक अपरिचित, मेहमान हो।” हम सब ईश्वर के मेहमनगण हैं जो ईश्वर के निवास की प्रतिक्षा में हैं।(इब्र.11.13, 1पेत्रु.2.11) हमें जीवन इसलिए मिला है कि हम धरती को सबों के लिए एक निवास स्थान बना सकें। हममें से कितने लोग भाग्यशाली हैं जो “प्रथम उपज” को जरूरतमंद लोगों के साथ बाँट सकते हैं।प्रथम फल भूमि की उपज मात्र नहीं है वरन् हमारी मेहनत की दूसरी कमाई हमारी मजदूरी, वेतन, बचत बहुत सारी चोजें हैं जो आपके पास है और जो बहुधा व्यर्थ हो जाती हैं।

आप इस बात पर विचार कीजिए, धर्मग्रंथ बिना व्याज के उदारता पूर्वक ऋण देने की बात पर जोर देता है। “यदि तुम में कोई भाई इतना निर्धन हो जाये कि वह अपनी निर्वाह न कर सके, तो तुम उसकी सहायता करो, जिससे वह एक परदेशी या प्रवासी का तरह तुम्हारे पास रह सके। अपने ईश्वर पर श्रद्धा के कारण, तुम उससे न सूद लो और न लाभ उठाओ, जिससे वह तुम्हारे बीच निवास कर सकें। तुम जो द्रव्य उसे उधार दो, उसका व्याज उस से नहीं लो और न अधिक दामों में उसे खाद् पदार्थ दो।” (लेवी.25.35-37) यह शिक्षा हमेशा तर्कसंगत है। हम कितने ही टूटते परिस्थितियों को देखते हैं जो परिवारों में दुःख और तकलीफ लेकर आता है। यह ईश्वर की उपस्थिति में अपराध है। लेकिन ईश्वर हमें अपने आर्शीवाद की प्रतिज्ञा करते जो उदारतापूर्वक दूसरों के लिए अपना हाथ खोलते हैं।(विधि. 15.10)

संत पापा ने कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो धर्मग्रन्थ का संदेश सपष्ट हैं, सहासिक पूर्वक अपने को दूसरे परिवारों के बीच, लोगों, देशों के साथ बाँटें। गरीबी रहित ज़मीं का अर्थ है एक समानतापूर्ण समाज का निर्माण करना जहाँ भेदभाव न हो, जहाँ हम अपने जीवन में उपलब्ध चीजों को एक दूसरे के साथ न्याय और भाईचारे के साथ बाँटें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सबों का अभिवादन करते हुए कहा,
मैं अंग्रेजी बोलने वाले तीर्थयात्रियों और आज के आमदर्शन में भाग लेने आये विशेष रूप में इंग्लैंड, आयरलैंड, क्रोएशिया, ताइवान और संयुक्त राज्य अमेरिका से आगंतुकों का हृदय से स्वागत और अभिवादन करता हूँ । मैं आप सभो को चलीसा काल की शुभकमानाएँ अर्पित करता हूँ विशेष कर जयन्ती का यह वर्ष आपके करूणामय कामों से भरा रहें। सर्वशक्तिमान ईश्वर आप को अपनी आर्शीष से भर दे।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सब को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया।








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