2016-02-04 08:51:00

प्रेरक मोतीः वालोईस की सन्त जोन (1464-1505)


वाटिकन सिटी, 04 फरवरी सन् 2016

4 फरवरी को काथलिक कलीसिया वालोईस की सन्त जोन का पर्व मनाती है। फ्राँस के सम्राट लूईस 11 वें तथा सेवोय की शारलोट सन्त जोन के माता पिता थे। जोन का जन्म फ्राँस के नोजेन्त-ले-रॉए में 23 अफ्रैल सन् 1464 ई. को हुआ था। जब जोन दो माहों की थी तब ही उन्हें सम्राट के चचेरे भाई, ओरलीन्स के ड्यूक के सिपुर्द कर दिया था तथा जब वे केवल 2 वर्ष की थी तब ड्यूक को उनके साथ विवाह रचाने पर मज़बूर किया था। ओरलीन्स के ड्यूक ही बाद में जाकर सम्राट लूईस 12 वें हुए जिन्होंने सिंहासन मिलने के बाद जोन के साथ विवाह को रद्द घोषित कर जोन की जगह अन्ना ब्रिटनी नामक महिला से विवाह कर लिया था। अपने भाई चार्ल्स अष्टम के शासनकाल के बाद तथा अपने विवाह के रद्द होने के बीच जोन फ्राँस की रानी भी थीं।

जोन सादगी और सरलता में विश्वास करती थीं इसलिये सम्राट लूईस 12 वें के साथ अपने विवाह के रद्द होने का उन्हें कोई दुख नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन निर्धनों एवं ज़रूरतमन्दों की सेवा में व्यतीत कर दिया। निर्धन किशोरियों की शिक्षा दीक्षा का उन्होंने बीड़ा उठाया तथा प्रार्थना, बाईबिल पाठ एवं मनन चिन्तन में अपना अधिकाधिक समय बिताने लगी। मरियम के प्रति उनकी भक्ति प्रगाढ़ थी। ख्रीस्तीय युवतियों की शिक्षा दीक्षा के साथ साथ उन्होंने उन्हें समर्पित जीवन की भी राह दिखाई।

सन् 1502 ई. में जोन ने, वोलाईस में, मरियम को मिले देवदूत सन्देश को समर्पित धर्मसंघ की स्थापना की। इसी धर्मसंघ को "ऑर्डर ऑफ अननसियेशन"  नाम से जाना जाता है। 40 वर्ष की आयु में ही जोन बहुत कमज़ोर एवं बीमार हो चली थी। रोगावस्था में ही 04 फरवरी सन् 1505 ई. को उनका निधन हो गया। जोन द्वारा स्थापित धर्मसंघ के मठ में ही उन्हें दफना दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद कई चमत्कार होने लगे जिससे फ्राँस में दूर दूर तक जोन की भक्ति प्रचलित हो गई। 21 अफ्रैल सन् 1742 ई. को सन्त पापा बेनेडिक्ट 14 वें ने उन्हें धन्य घोषित किया था तथा 28 मई सन् 1950 ई. को सन्त पापा पियुस 12 वें जोन को सन्त घोषित कर वेदी का सम्मान प्रदान किया था। वालोईस की सन्त जोन का पर्व 04 फरवरी को मनाया जाता है।    

चिन्तनः "प्रभु ही प्रज्ञा प्रदान करता और ज्ञान तथा विवेक की शिक्षा देता है। वह धर्मियों को सफलता दिलाता और ढाल की तरह सदाचारियों की रक्षा करता है। वह धर्ममार्ग पर पहरा देता और अपने भक्तों का पथ सुरक्षित रखता है"   (सूक्ति ग्रन्थ 2:6-8)।








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