2016-02-03 15:39:00

आमदर्शन में संत पापा की करूणा पर धर्मशिक्षा


वाटिकन सिटी, बुधवार 03 फरवरी 2016, (सेदोक, वी. आर.) संत पापा फ्राँसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर, संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में जमा हुए हज़ारों विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को, ईश्वर की करूणा पर अपनी धर्मशिक्षा माला के दौरान संबोधित करते हुए इतालवी भाषा में  कहा,

अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात,

पवित्र धर्मग्रन्थ ईश्वर को न केवल दया सागर के रूप में प्रस्तुत करता अपितु सम्पूर्ण न्यायप्रिय ईश्वर के रूप में प्रर्दशित करता है। इन दोनों को कैसे जोड़ा जाए? न्याय की माँग के समक्ष करुणा की सत्यता कैसी है? ऐसा प्रतीत होता हैं कि ये दो सच्चाइयाँ हैं जो एक दूसरे के विपरीत हैं लेकिन वास्तव में यह सही नहीं है क्योंकि ईश्वर की करूणा न्यायप्रियता से भरी है। यह किस प्रकार का न्याय है?  

यदि हम इसे न्यायलय की कार्यवाही के रूप में देखें तो हम पायेंगे की जो अपने को अन्याय का शिकार पाते हैं वे न्यायाधीश के दरबार में न्याय दिलाने की याचना करते हैं। यह दंड देनेवाला न्याय है जो दोषी को सज़ा देता है, इस सिद्धान्त के अनुरूप प्रत्येक को उसके हकानुसार, जो उचित हैं उसे दिया जाये और जैसा की सूक्ति-ग्रन्थ कहा है, “धर्मिकता जीवन की ओर ले जाती है, किन्तु पाप करने वाला मृत्यु की ओर बढ़ता है।” विधवा के दृटान्त में येसु भी इसके बारे में कहते हैं जो बार-बार न्याय की अर्जी करने हेतु न्यायाधीश के पास जाती और कहती है, “मेरे मुद्दई के विरूद्ध न्याय दिलाइए।”  (लूका. 18.3)

संत पापा ने कहा कि यह रास्ता यद्पि सही न्याय की ओर नहीं ले जाती क्योंकि यह सही अर्थ में बुराई को खत्म नहीं करती वरन् इसकी अलोचना करती है। इसके विपरीत केवल अच्छी के माध्यम से ही बुराई पर विजय पाई जा सकती है। यह एक अलग प्रकार के न्याय की चर्चा है जिसका जिक्र धर्मग्रंथ हमारे लिए करता है। यह एक प्रकिया है जो न्यायालय  के उपयोग को हम से दूर करता है और दोषीदार को प्रत्यक्ष तौर से बदलाव लाने हेतु निमंत्रण देता है। यह उन्हें उनकी गलतियों को उनके अन्तकरण में समझने हेतु मदद करता है। इस तरह वह अपने गलतियों को स्वीकारता, पश्चताप करता और अपने को क्षमा के योग्य बनाता है जो क्षमा घायल व्यक्ति की ओर से आता है। यह एक तरीका है जिसके द्वारा हम परिवारों में विभिन्नताओं को सुलझाते, पति-पत्नी या बच्चों और माता पिता के बीच का संबंध, जहाँ एक घायल प्रियजन प्रेम से दूसरे की गलती को स्वीकारता है और अपने प्रेममय संबंध को बनाये रखने का प्रयास करता है जो उसे दूसरो से जोड़े रखता है।  

निश्चय ही, यह एक कठिन यात्रा है। ऐसा करने हेतु यह जरूरी है कि जो गलती का शिकार हुआ हो, वह दूसरे को क्षमा, मुक्ति की चाह और दूसरे की भलाई सोचे जिन्होंने उसे चोट पहुँचाया है। और ऐसा करने से न्याय स्थापित की जा सकती है क्योंकि यदि बुराई करने वाला बुराई का एहसास करे और वैसा करना बन्द करे तो वह बुराई खत्म हो जाती है और अन्याय, न्याय बन जाता क्योंकि क्षमा और हमारी सहायता उसे सही रास्ते में ले आती है।

ईश्वर पापियों के साथ ऐसा ही करते हैं। ईश्वर निरन्तर हमें क्षमा प्रदान करते हैं और अपने को स्वागत करने का मौका हमे देते हैं जिससे हम अपनी बुराइयों का अनुभव करें और उनसे बच सकें। ईश्वर हमारा विनाश नहीं बल्कि वे हमारी मुक्ति चाहते हैं। नबियों की सारी बातें प्रेम का आहृवान और प्रेम से भरी हैं जिनमें हमारी मुक्ति की चाह है। ईश्वर नबी एजेकिएल के मुख से कहते हैं,“क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूँ? बल्कि इससे कि दुष्ट अपना कुमार्ग छोड़ दे और जीवित रहे। (18.23. 33.11)

यह ईश्वर का हृदय है। यह पिता का हृदय है जो अपने बच्चों को प्यार करते और चाहते हैं की वे अच्छाई और न्याय की परिपूर्णतः में खुशी पूर्वक जीवन यापन करें। पिता का हृदय हमारी न्याय के विचार धाराओं से परे है जो हमारे लिए करूणा का असीमित क्षितिज खोल देता है जैसा कि स्तोत्र रचयिता लिखते हैं “वह सदा दोष नहीं देता और चिरकाल तक क्रोध नहीं करता। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवाहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है।”  यह पिता का हृदय है जिससे मिलने की चाह हम पापस्वीकार में करते हैं। पिता हमें जीवन को परिवर्तित करने और आगे बढ़ने हेतु हमें बल देते हैं। अतः पुरोहितों पापस्वीकार सुनना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि पुत्र और बेटी एक पिता चाह में आप के पास आते हैं। आप पापस्वीकार संस्कार में पिता की जगह होते हैं जो करूणा के साथ न्याय करते हैं।

इतना कहने के बाद संत पापा ने अपनी धर्मशिक्षा माला समाप्त की और सभों का अभिवादन करते हुए कहा,

मैं आज के आमदर्शन में सभी अंग्रेजी बोलने वाले तीर्थयात्रियों और संयुक्त राज्य अमेरिका से आये आप का अभिवादन करता हूँ। आप ईश्वर की करूणा के उपहार हेतु अपने जीवन को खोले जिससे आप करूणा के वरदान को अपने परिचितो के साथ साझा कर सकें। आप अच्छे पिता के बच्चे बन उनकी करुणा को अपने प्रेरितिक कामों में व्यक्त कर सकें। ईश्वर आप सब को अपनी आशीष प्रदान करे।

इतना कहने के बाद संत पापा ने सब को अपना प्रेरितिक आर्शीवाद दिया।








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