2015-10-29 14:55:00

आदिवासी समुदाय अपनी पहचान खो देने के खतरे में


भोपाल, बृहस्पतिवार, 29 अक्टूबर 2015 (ऊकान): भारत के सैकड़ों आदिवासी नेताओं ने सरकार द्वारा बड़े व्यवसायों के लिए उनके पूर्वजों की भूमि एवं जंगलों पर कब्जा किये जाने के प्रयास का, विरोध करने का संकल्प किया।

ऊका समाचार के अनुसार 24 से 26 अक्टूबर तक झारखंड के राँची में आयोजित एक सम्मेलन में भारत के विभिन्न हिस्सों से करीब 500 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लेकर जमीन, जंगल तथा जल संसाधन के नुकसान पर चिंता जतायी।

दक्षिण एशियाई आदिवासियों के मिशन हेतु जेस्विट सम्मेलन में कहा गया कि भारत के आदिवासी प्राकृतिक संसाधनों के लिए सदियों से शोषण के शिकार रहे हैं। औद्योगीकरण में वृद्धि ने हाल के वर्षों में इस समस्या को और अधिक बढ़ा दिया है।

राँची प्रोविंस जेस्विट सोसाईटी के शीर्ष अधिकारी फादर जोसेफ मरियानुस कुजूर ने कहा, ″आदिवासियों का जीवन, जीविका एवं संस्कृति देश के औद्योगीकरण के कारण गम्भीर रूप से खतरे में पड़ गया है।″ उन्होंने कहा कि औद्योगिकरण ने बहुत से आदिवासियों को अपने परम्परागत घर से बेदखल कर, उन्हें विस्थापित मजदूर के रूप में खदानों एवं निर्माण कार्यों में कार्य करने के लिए मजबूर किया है।

ज्ञात हो कि भारत में लगभग 104 मिलियन आदिवासी रहते हैं जो विभिन्न जाति के हैं तथा देश के विभिन्न हिस्सों में निवास करते हैं। भारत में ख्रीस्तीयों की संख्या मुख्यतः उत्तर तथा पूर्वी भारत में है, खासकर, झारखंड, बिहार तथा मध्यप्रदेश राज्यों में, जहाँ आदिवासी समुदायों की बहुलता है। फादर कुजूर ने बतलाया कि पूरे भारत में 6 दशकों में 60 मिलियन आदिवासियों का विस्थापन हुआ है जो कुल आदिवासियों का लगभग 40 प्रतिशत है।

सम्मेलन के दौरान प्रतिनिधियों ने गौर किया कि भारत के संविधान में आदिवासी समुदायों को विशिष्ट क्षेत्रों के प्रशासनिक नियंत्रण का प्रावधान है किन्तु यह पूरी तरह लागू नहीं किया गया है।

इसके विपरीत कई सरकारों ने औपनिवेशिक युग के कानून को लागू किया है जिसके तहत अधिकारियों ने अपनी मर्जी से भूमि को जब्त करने का प्रयास किया है।

झारखंड वन सुरक्षा आयोग अधिकारी संजय बासू मल्लिक ने कहा, ″आदिवासियों का अस्तित्व जंगल तथा जमीन पर निर्भर है।″

जेस्विट फादर अलेक्स ने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य आदिवासियों के बीच जीविका तथा संस्कृति की सुरक्षा हेतु जागृति लाना है।

एक अन्य प्रतिभागी ने कहा कि विस्थापन आदिवासियों की शिक्षा, संस्कृति, भाषा तथा परम्परा को नष्ट कर देगा और इसी दबाव के साथ आदिवासी समुदाय अपनी पहचान एवं सब कुछ खो देने की जोखिम से होकर गुजर रहा है।








All the contents on this site are copyrighted ©.